मंदिर निर्माण की परंपरा भारत में प्राचीन काल से ही रही है लेकिन यह मंदिर देश के एक स्थान से दूसरे स्थान पर अलग-अलग तर्ज एवं अलग-अलग शैली में बनाये जाते थे क्योंकि इन मंदिरों के निर्माण में स्थानीय तकनीकी,मान्यताओं, कच्चे पदार्थों एवं अन्य संसाधनों का प्रयोग किया जाता था।
भारत में मंदिर निर्माण की 3 शैलियाँ पाई जाती हैं-
1.नागर शैली
2.द्रविड़ शैली
3.बेसर शैली
इनका विवरण इस प्रकार है-
-नागर शैली की विशेषताएं-
भारत में हिमालय पर्वत से लेकर विंध्य पर्वत के बीच नागर शैली के मंदिर बनाए गए हैं जिनकी प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं-
1. इन मंदिरोंं का निर्माण ऊंचे चबूतरे पर किया जाता है इनका गर्भगृह वर्गाकार होता है जिसके ऊपर का शिखर एक रेखा के रूप में वक्राकार ढंग से खींचा जाता है इसलिए इसके शिखर को रेखीय या नागर शिखर कहा जाता है।
2. शिखर के सबसे ऊपरी भाग पर आमलक तथा कलश बनाए जाते हैं।
3. गर्भगृह के चारों ओर एक अंतराल होता है जो प्रदक्षिणा पथ के रूप में प्रयोग किया जाता है ।
4. गर्भगृह के सामन सामने महामंडप,अर्ध मंडप,नृत्य मंडप आदि संरचनाएं बनी होती हैं परंतु यह संरचनाएं मुख्यता बड़ेे मंदिरों मेंं ही दिखाई देती हैं।
5. कभी-कभी कुछ नागर मंदिरोंं को पंचायतन शैली मेंं बनाया जाता है।
पंचायतन शैली- इस शैली केेे मंदिर में मुख्य देवता का मंदिर प्रांगण केे मध्य में होता है जो कि काफी विशाल एवंं भव्य होता है एवं चारों कोनों पर चार छोटे-छोटे सहायक देवी देवताओं के मंदिर बने होते हैं। इस शैली के प्रमुख उदाहरण हैं- दशावतार मंदिर( देवगढ़ ,यूपी) कंदरिया महादेव मंदिर (खजुराहो) ब्रह्मेश्वर मंदिर (भुवनेश्वर) लिंगराज मंदिर(भुवनेश्वर) आदि।
6. मंदिरोंं के बाहरी भाग में ताखा या आला काटकर अनेक प्रकार की मूर्तियों से सजाया जाता है ये मूर्तियां आम स्त्री पुरुष, लोक विषय से संबंधित जैसे मिथुन,नाग आदि की बनी होती हैं।
-द्रविड़ शैली की विशेषताएं-
इस शैली के मंदिरों का निर्माण मुख्य रूप से कृष्णा नदी से कन्याकुमारी के बीच तमिलनाडु ,केरल, आंध्र प्रदेश आदि क्षेत्रों में किया गया है। जिसकी मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. इस शैली के मंदिर धरातल के निचले हिस्से से बनाए जाते हैंं तथा इनमें नागर मंदिरों की तरह कोई चबूतरा नहींं होता है।
2. इनका गर्भगृह वर्गाकार/आयताकार होता है जिसके ऊपर पिरामिडाकार शिखर होता है शिखर के सर्वोच्च भाग पर स्तूपिका बनी होती है। पिरामिडाकार विमान इसकी प्रमुख विशेषता है। इस विमान में मंजिल के ऊपर मंजिल क्रमशः बड़े से छोटे क्रम में बनी होती है।
3.गर्भगृह के चारों ओर स्थित अंतराल को प्रदक्षिणा पथ के रूप में प्रयोग किया जाता है ।
4.गर्भगृह के सामने बहुसंख्यक स्तंभों पर टिका महामंडप, अर्द्धमंडप, नंदीमंडप (शिव मंदिर में), गरुड़ मंडप (बिष्णु मंदिर में )जैसी संरचनाएं होती हैं। द्रविड़ स्थापत्य में स्तंभ और प्लास्टर का अधिक प्रयोग होता है।
5. ये मंदिर चारदीवारी के भीतर बने होते हैं अधिकांश मंदिरों में प्रांगण के भीतर तालाब तथा चारों कोनों पर सहायक देवी देवताओं के मंदिर बने होते हैं।
6. मंदिरों का प्रवेश द्वार काफी भव्य होता है जिसे गोपुरम कहा जाता है।
7. इन मंदिरों के बाहरी भागों में मंडप से लेकर शिखर तक अनेक देवी देवताओं तथा लोक विषयों से संबंधित मूर्तियों से अलंकरण किया जाता है।
उदाहरण- कांची का कैलाश मंदिर ,मदुरई का मीनाक्षी मंदिर, केरल का श्री पदमनाभास्वामी मंदिर आदि।
-बेसर शैली की विशेषताएं-
इस शैली के मंदिरों का निर्माण मुख्य रूप से कृष्णा नदी से लेकर विंध्य पर्वतों के बीच के क्षेत्र में हुआ है वास्तव में यह एक मिश्रित शैली है जिसमें नागर तथा द्रविड़ शैलियों दोनों की विशेषताएं पाई जाती हैं। इस शैली का विकास पूर्व मध्यकाल में हुआ है इन मंदिरों की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. बेसर मंदिरोंं की धरातल योजना,गर्भगृह, मंडप ,विमान योजना तथा सर्वोच्च भाग पर स्तूपिका आदि द्रविड़ मंदिरो की भांति हैं। विमान एक दूसरे से अपेक्षाकृत कम दूरी पर होते हैं जिसके कारण उनकी ऊंचाई द्रविड़ मंदिरो से कुछ कम होती है।
2. बेसर मंदिरों मेंं अलंकरण एवं सजावट नागर मंदिरोंं की तरह की जाती है।
3.अधिकांश मंदिरों में गर्भगृह वर्गाकार होता है। लेकिन कभी-कभी बहुकोणीय आकार के गर्भगृह बनाये गए हैं मुख्यतः होयसल शासकों के द्वारा बनवाए गए मंदिरों में।
4.उदाहरण- एहोल का मंदिर, सोमनाथपुरम का मंदिर ,बेलूर का द्वारसमुद्र मंदिर ,एलोरा का कैलाश मंदिर आदि।
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