महालवाड़ी व्यवस्था

महालवाड़ी व्यवस्था-
स्थाई बंदोबस्त और रैयतवाड़ी बंदोबस्त की तरह ही महालवाड़ी व्यवस्था भी भू राजस्व वसूल करने की एक प्रणाली थी। 1819 में हॉल्ट मैकेंजी ने प्रत्येक ग्राम अथवा महल को भू राजस्व के संग्रहण की इकाई मानते हुए महालवाड़ी प्रणाली को लागू किया। इसकी प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. इस पद्धति में भू राजस्व की व्यवस्था कृषक के साथ न करके प्रत्येक ग्राम अथवा महल के साथ स्थापित की जाती थी।
2. इस व्यवस्था में ग्राम समाज ही सम्मिलित भूमि तथा अन्य भूमि का स्वामी होता था।
3. इसके अंतर्गत अगर कोई व्यक्ति अपनी भूमि छोड़ देता था तो ग्राम समाज उस भूमि को संभाल लेता था।
4. व्यवस्था उत्तर प्रदेश( संयुक्त प्रांत), मध्य प्रदेश तथा कुछ परिवर्तनों के साथ पंजाब में लागू की गई।
5. यह व्यवस्था कुल ब्रिटिश भारत के 30% भाग पर लागू थी।
6. इस प्रकार इस व्यवस्था में भू राजस्व का निर्धारण संयुक्त रूप से किया जाता था।
  अन्य भू राजस्व व्यवस्थाओं की भांति यह व्यवस्था भी कृषकों के लिए हानिकारक ही सिद्ध हुई क्योंकि इसमें भू राजस्व का निर्धारण अनुमान के आधार पर किया जाता था जिससे अंग्रेज मनमाने तरीके से भू राजस्व का निर्धारण कर अधिक से अधिक कर वसूल करने की कोशिश करते थे।

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