• 18.6.20

    भारतीय शास्त्रीय नृत्य

    भारतीय शास्त्रीय नृत्य-
    नृत्य एक प्रदर्शनकारी कला है ,जिसकी परम्परा भारत में  प्राचीनकाल से ही रही है। भरतमुनि का नाट्यशास्त्र  भारतीय शास्त्रीय नृत्य पर  अत्यंत प्राचीन एवं महत्वपूर्ण पुस्तक है। वर्तमान में 8 शास्त्रीय नृत्य है जिन्हें संगीत नाटक अकादमी मान्यता प्रदान करती है, ये शास्त्रीय नृत्य इस प्रकार हैं-
    1. भरतनाट्यम
    2. मोहिनीअट्टम 
    3.कुचीपुड़ी
    4.कथकली
    5.ओडिसी  
    6.मणिपुरी 
    7.कत्थक
    8.सत्रीया
    ये नृत्य अनेक नियमों एवं निर्देशों का पालन करते नृत्यकारों द्वारा किए जाते हैं जिनकी विशेषताएं इस प्रकार हैं-
                            -भरतनाट्यम-
    1. यह तमिलनाडु का शास्त्रीय नृत्य है
    2.ये अत्यंत प्राचीन नृत्य है जिसकी जड़ें संगम साहित्य में प्राप्त होती हैं इस नृत्य परंपरा के विकास में देवदासियों का योगदान महत्वपूर्ण है।
    3. यह एक ऐसा शास्त्रीय नृत्य है जिसमें भाव,रस और ताल के बराबर समायोजन के साथ प्रस्तुत किया जाता है इसे स्त्री एवं पुरुष दोनों प्रस्तुत कर सकते हैं।
    4. इसका मूल विषय धार्मिक है जिसके तहत नृतक रामायण ,महाभारत एवं कृष्ण लीला की कथाओं को नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं।
    5.इस नृत्य को नर्तक कदम,ताल, मुख के विभिन्न हाव भाव, हाथो की विभिन्न मुद्राओं केेे माध्यम से प्रस्तुत करता है।
    6.इसमें कुल 7 चरण होते हैैं। प्रथम चरण को अलारिपुु एवं अंतिम चरण को श्लोका कहते हैैं।
    7. इसमें बांसुरी,वीणा,मृदंग ,वायलिन आदि का प्रयोग किया जाता है तथा नर्तको द्वारा काफी आकर्षक परिधान पहने जाते हैं वर्तमान में के मुख्य नर्तककार रुकमणी देवी, यामिनी कृष्णमूर्ति, सोनल मानसिंह ,लीला सैमसन आदि हैं।
                             -मोहिनीअट्टम-
    1.केरल का शास्त्रीय नृत्य है।
    2.यह नृत्य भगवान विष्णु के 'मोहिनी' अवतार पर आधारित है जिससे इसका नाम मोहिनीअट्टम पड़ा।
    3.यह एकल नृत्य होता है जिसे केवल महिलाएं प्रस्तुत करती हैं, इसमें महिलाएं कदम ताल, गोलाकार गतियों एवं आंखों का मनमोहक प्रयोग करते हुए नृत्य करती हैं।
    4.इसमें नृत्य की 'लस्य शैली' का प्रयोग किया जाता है जिसमें कोमल भावों को विभिन्न मुद्राओं के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
    5.इसमें पौराणिक कथाओं का नृत्य के माध्यम से प्रस्तुतीकरण किया जाता है
    6.इस नृत्य के दौरान पहने जाने वाली वेशभूषा काफी सरल एवं आकर्षक होती है ।इसमें नृत्यांगनाये केरल की कसाबु साड़ी(सिल्क की साड़ी) पहनती हैं गले में हार, बालों में चमेली की माला तथा कानों में बालियां धारण करती हैं।
                             -कुचिपुड़ी-
    1.यह आंध्र प्रदेश का शास्त्रीय नृत्य है इसका विकास आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले कुचीपुड़ी गांव से माना जाता है।
    2.मूल रूप से यह नृत्य ब्राह्मण समुदाय के पुरुषों द्वारा किया जाता था इसे पुनः विकसित करने का कार्य सिद्धेश्वर होगी द्वारा किया गया इस नृत्य को अब स्त्री-पुरुष दोनों प्रस्तुत करते हैं।
    3.प्रारंभ में इन्हें केवल मंदिरों में किया जाता था लेकिन 16वीं शताब्दी से यह दरबारों में भी प्रस्तुत किया जाने लगा जिससे इसकी दो शैलियों का विकास हुआ प्रथम नटुवा मेला-यह एकल नृत्य है एवं देवदासियों द्वारा मंदिर में प्रस्तुत किया जाता है द्वितीय नाट्य मेला- दरबारी नृत्य है तथा समूह में प्रस्तुत किया जाता है।
    4.इस नृत्य में कृष्ण एवं रुक्मणी की कथा का नाटक की भावना के साथ प्रस्तुतीकरण किया जाता है।
    5.कुचिपुड़ी में मटका नृत्य काफी प्रसिद्ध है जिसमें नर्तक पानी से भरी मटकी को सिर के ऊपर रखकर पीतल की थाली पर नृत्य करता है।
                             -कथकली-
    1.कथकली केरल का शास्त्रीय नृत्य है। इसकी शुरुआत 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से मानी जाती है इसके मूल विषय रामायण एवं महाभारत से दिए गए हैं।
    2.इस नृत्य में नर्तक कथाओं का नाटकीय भावनाओं के साथ प्रस्तुतीकरण करते हैं जिसे काफी वैज्ञानिक माना जाता है क्योंकि इसमें नृतक शरीर एवं भावनाओं पर काफी नियंत्रण करते हुए नृत्य करते हैं।
    3.इसमें नर्तक बोलते नहीं हैं बिना बोले ही वे विभिन्न मुद्राओं एवं हाव-भाव के द्वारा नृत्य प्रस्तुत करते हैं।
    4.यह मुख्यतः पुरुषों द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला नृत्य है।
    5.इसके नृतक काफी रंगीन पोशाक पहनते हैं चेहरे पर विशेष साज-सज्जा का प्रयोग करते हैं हरा ,लाल, पीला एवं काले रंगों का लेप किया जाता है ,सिर पर मुकुट भी धारण करते हैं।
    6.शंकरकुट्टी कुंजुस्वरूप ,माधव पणिक्कर इसके प्रमुख कलाकार हैं।
                             -ओडिसी-
    1.उड़ीसा राज्य का शास्त्रीय नृत्य है यह एक प्राचीन नृत्य  है जिसके साक्ष्य नाट्यशास्त्र कथा रानीगुम्फा अभिलेख में मिलते हैं।
    2.आधुनिक समय में इसको पुनः विकसित केलुचरण महापात्रा द्वारा किया गया।
    3.वास्तव में इस विकास उड़ीसा के मंदिरों में देवदासी द्वारा किया गया प्रारंभ में इसे मंदिरों में ही प्रस्तुत किया जाता था बाद में दरबारों में भी प्रस्तुत किया जाने लगा।
    4.इस नृत्य का उल्लेख ब्रह्मेश्वर मंदिर के शिलालेखों तथा कोणार्क के सूर्य मंदिर के केंद्रीय कक्ष में मिलता है।
    5.इस नृत्य में मुख्यतया पौराणिक कथाओं जैसे कृष्ण एवं राधा की प्रेम कथा का प्रस्तुतीकरण किया जाता है तथा इस नृत्य के माध्यम से भगवान जगन्नाथ की महिमा का वर्णन किया जाता है।
    6.इस नृत्य की मुख्य विशेषता त्रिभंग की मुद्रा है जिसमें नर्तक सिर, शरीर तथा पैरों को लचीले ढंग से मोड़ते हुए नृत्य करते हैं इस नृत्य को स्त्री एवं पुरुष दोनों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।
    7.इस नृत्य के प्रमुख कलाकार माधुरी मुग्दल, सोनल मानसिंह ,इंद्राणी रहमान आदि हैं।
                             -मणिपुरी-
    1.भारत के उत्तरी पूर्वी राज्य मणिपुर का शास्त्रीय नृत्य है।
    2.ऐसा माना जाता है की 15 वीं सदी के पूर्व यह केवल वन देवता से संबंधित नृत्य था तथा 16वीं सदी से वैष्णव एवं शैव परंपरा के प्रभाव से श्री कृष्ण लीला से संबंधित विषयों एवं कथाओं का प्रदर्शन किया जाने लगा।
    3. इस नृत्य को स्त्री-पुरुष दोनों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है यह एकल एवं समूह दोनों प्रकार का नृत्य है सामान्यता महिलाएं समूह में नृत्य करती हैं जबकि पुरुष एकल एवं समूह दोनों में नृत्य करते हैं।
    4.यह नृत्य तांडव एवं लास्ट दोनों रूपों में प्रस्तुत किया जाता है।
    5. मणिपुरी नृत्य में महिलाओं की पोशाक काफी आकर्षक होती है जिसमें यह चमकीला घाघरा पहनती हैं जिसमें गोलाकार गत्ता लगा होता है जिसे कुमीन कहा जाता है पुरुष साधारण धोती कुर्ता पहनते हैं तथा माथे पर चंदन का लेप लगाते हैं।
    6. झावेरी बहिनें इस नृत्य की प्रमुख कलाकार हैं।
                              -कत्थक-
    1.उत्तर भारत का शास्त्रीय नृत्य है कत्थक शब्द का अर्थ कथा होता है अर्थात यह कथाओं के माध्यम से प्रस्तुत किए जाने वाला नृत्य है।
    2.यह नृत्य काफी प्राचीन है रामायण तथा महाभारत में इसके साक्ष्य मिलते हैं।
    3.उत्तर भारत में कत्थक का विकास हिंदू तथा मुस्लिम दोनों परंपरा के मेल से हुआ है प्राचीन समय में कत्थक मुख्यतः धार्मिक उत्सव एवं मंदिरों में प्रस्तुत किया जाता था लेकिन मध्यकाल में ये मुस्लिम परंपरा के अंतर्गत दरबारों में प्रस्तुत किया जाने लगा।
    4.इस नृत्य में नर्तक पैरों में घुंघरू धारण करते हैं तथा इसे सीधे पैरों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।
    5.इस नृत्य के मूल रूप से तीन तत्व हैं- नृत-ताल एवं लय नृत्य -कथा वर्णन के साथ नृत्य करना नाटक -अभिनय करना।
    6.यह तांडव एवं लास्य दोनों भावों से किया जाता है इसे स्त्री और पुरुष दोनों प्रस्तुत करते हैं इस नृत्य में नृतकों की पोशाक काफी चमकीली होती है महिलाएं हिंदू प्रभाव के तहत लहंगा ,चोली धारण करती हैं जबकि पुरुष मुस्लिम प्रभाव के तहत चूड़ीदार पायजामा ,कमीज आदि धारण करते हैं।
    7.कत्थक के प्रमुख घराने निम्नलिखित हैं -लखनऊ घराना, जयपुर घराना, बनारस घराना ,रायगढ़ घराना।
    8.लखनऊ के नवाबों द्वारा इसे विशेष संरक्षण दिया गया। हिंदी फिल्मों में भी कत्थक नृत्य काफी लोकप्रिय रहा है।
    9.बिरजू महाराज, लच्छू महाराज ,सितारा देवी ,शोभा नारायण आदि इसके प्रमुख कलाकार हैं।
                                   -सत्रीया-
    1.सत्रीया का शाब्दिक अर्थ मठ होता है ,अतः पारंपरिक रूप से वैष्णव मठों में यह नृत्य भोकोट(पुरूष भिक्षुओं) द्वारा अपने दैनिक अनुष्ठान के रूप में प्रस्तुत किया जाता था वर्तमान में यह सार्वजनिक मंचो पर प्रस्तुत किया जाने लगा है।
    2.असम का शास्त्रीय नृत्य है जिसे वर्ष 2007 में शास्त्रीय नृत्य का दर्जा दिया गया।
    3.इस नृत्य का विकास 15-16वीं शताब्दी में वैष्णव संत आचार्य शंकरदेव द्वारा किया गया था इसके तहत शंकरदेव एवं अन्य संतों जैसे कबीरदास,तुलसीदास द्वारा रचित गीतों को गाया जाता था। इस नृत्य में पौराणिक कथाओं जैसे कृष्ण लीला का प्रस्तुतीकरण किया जाता है।
    4.इस नृत्य को स्त्री और पुरुष दोनों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। इसमें कलाकार असम प्रदेश की स्थानीय वेशभूषा को पहनते हैं महिलाएं साड़ी एवं पुरुष धोती तथा कमीज़ धारण करते हैं।
    6.इस नृत्य के कई भाग होते हैं जैसे दशावतार नृत्य ,अप्सरा नृत्य,मंचोक नृत्य,छली नृत्य,बेहार नृत्य आदि।


    No comments:

    Post a Comment

    शिक्षक भर्ती नोट्स

    General Knowledge

    General Studies