• 21.7.20

    सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन(भाग-1)

    सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन-
    भारत में 19वीं शताब्दी को सामाजिक एवं धार्मिक पुनर्जागरण का काल कहा जाता है क्योंकि इस समय समाज एवं धर्म में उपस्थित कुरीतियों को दूर करने के लिए अनेक आंदोलन चलाए गए।भारत में समाज एवं धर्म एक दूसरे से जुड़े हुए हैं अतः सामाजिक सुधार के लिए धर्म में सुधार आवश्यक है।
    सुधार आंदोलन को प्रेरित करने वाले कारक-
    1. समाज एवं धर्म में व्याप्त कुरीतियां व दोष - सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह निषेध, बहुपत्नी प्रथा,छुआछूत,बालिका वध,पर्दा प्रथा,मूर्ति पूजा,अंधविश्वास,पाखंड आदि।
    2. पाश्चात्य शिक्षा प्राप्त नवीन बुद्धिजीवी वर्ग का उदय- तर्कवाद,मानववाद,धर्मनिरपेक्षतावाद,विज्ञानवाद के परिपेक्ष्य में समाज का मूल्यांकन।
    3. ईसाई मिशनरियों द्वारा जबरन धर्मांतरण एवं भारतीय धर्म की कटु आलोचना।
    4. भारतीयों में शिक्षा का प्रसार एवं विश्व ज्ञान संबंधी जागरूकता।
    5. औपनिवेशिक शोषण
    6. लोकतंत्र एवं राष्ट्रवादी विचारधारा का विकास।
    7. समाचार पत्र-पत्रिकाओं एवं साहित्य का योगदान।
    इन सभी कारकों के प्रभाव से अनेक सामाजिक एवं धार्मिक आंदोलन चलाए गए,जिसमें मध्यम वर्ग एवं बुद्धिजीवियों की भूमिका महत्वपूर्ण रही,जिनका विवरण इस प्रकार है-

                       - राजा राम मोहन राय-
    राजा राममोहन राय को "आधुनिक भारत का निर्माता" एवं "नवजागरण का अग्रदूत" कहा जाता है इन्होंने ही भारत में सर्वप्रथम सामाजिक एवं धार्मिक सुधारों की नींव रखी। वह हर प्रकार की जड़ता,रूढ़िवादिता,अंधविश्वास,पाखंडवाद इत्यादि के विरोधी थे।

    1. उन्होंने अपना पहला ग्रंथ फ़ारसी भाषा में "तोहफ़त-उल-मुहद्दीन"(एकेश्वरवाद को उपहार) लिखा जिसमें कहे बहुदेववाद की आलोचना कर एकेश्वरवाद को मानने पर बल देते हैं तथा मूर्तिपूजा का भी विरोध करते हैं।
    2. आत्मीय सभा- इसकी स्थापना राजा राममोहन राय ने 1815 ने की थी इसके माध्यम से वह हिंदू धर्म में व्याप्त कुरीतियों पर चोट करते हैं और एकेश्वरवाद का प्रचार प्रसार करते हैं।
    3. 1816 ई० इन्होंने वेदांत सोसाइटी की स्थापना की।
    4. प्रीसेप्ट्स ऑफ जीसस- राजा राममोहन राय ने 1820 में यह पुस्तक लिखी जिसमें उन्होंने ईसाई धर्म पर प्रकाश डाला है,इस पुस्तक का प्रकाशन लंदन में 1823 में "जॉन डिग्बी" के द्वारा कराया गया।
    5. ब्रह्म सभा- 1828 में राजा राममोहन राय ने कलकत्ता में ब्रह्म सभा की स्थापना की जिसे 1830 में ब्रह्म समाज के नाम से जाना गया। इस संगठन के माध्यम से उन्होंने हिंदू धर्म में सुधार लाने का प्रयास किया तथा जाति प्रथा,सती प्रथा,वेश्यागमन,बहुपत्नी प्रथा इत्यादि का विरोध कर इन कुरीतियों को दूर करने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह का समर्थन तथा स्त्री-पुरुष समानता पर बल दिया।
    6. हिन्दू कॉलेज- शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 1817 में हिंदू कॉलेज की स्थापना राजा राममोहन राय ने कलकत्ता में घड़ीसाज "डेविड हेयर" की सहायता से की।
    7. वेदान्त कॉलेज- मोहन राय ने इस कॉलेज की स्थापना 1825 में की।
    8. सती प्रथा पर प्रतिबंध- राजा राममोहन राय सती प्रथा के विरुद्ध थे इन्ही के प्रयासों से 1829 ईसवी में लॉर्ड विलियम बैंटिक ने सती प्रथा पर रोक लगा दी।
    9. पत्रकारिता के क्षेत्र में योगदान- राजा राममोहन राय विभिन्न भाषाओं के ज्ञाता एवं विद्वान थे ,उन्होंने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य किया उन्हें "भारतीय पत्रकारिता का अग्रदूत" कहा जाता है।
          ० संवाद कौमुदी- यह मोहन राय की प्रथम पत्रिका थी जिसका प्रकाशन 1821 बांग्ला भाषा में हुआ था।
          मिरातुल अखबार- इसका प्रकाशन 1822 में फ़ारसी भाषा में किया गया।
          ब्रह्मनिकल मैगजीन- 1822 में अंग्रेजी में इसका प्रकाशन किया गया।
    10. राजा राममोहन राय को "राजा" की उपाधि 1830 ईस्वी में मुगल शासक 'अकबर द्वितीय' द्वारा प्रदान की गई। अकबर द्वितीय ने उन्हें अपने दूत के रूप में ब्रिटेन भेजा, जहां 1833 ई० में ब्रिस्टल में इनकी मृत्यु हो जाती है।

    नोट:- राजा राममोहन राय प्रथम भारतीय थे जिन्होंने समुद्र पार की यात्रा की थी।

                            -: ब्रह्म समाज :-
    ब्रह्म समाज की स्थापना 1828 में राजा राममोहन राय ने हिन्दू धर्म में सुधार लाने के उद्देश्य से की थी तथा 1830 तक उन्होंने इसे नेतृत्व प्रदान किया।1830 में मोहन राय के ब्रिटेन जाने के बाद रामचंद्र बीघा बागीश(1830-33) ने ब्रह्म समाज का नेतृत्व किया। 
    ० 1833 में राजा राममोहन राय की मृत्यु के बाद  ब्रह्म समाज  का दायित्व द्वारकानाथ टैगोर ने संभाला।
    1843 में द्वारकानाथ टैगोर के बाद देवेंद्र नाथ टैगोर ब्रह्म समाज के दायित्व को संभालते हैं।
    केशव चन्द्र सेन एवं ब्रह्म समाज- देवेंद्र नाथ टैगोर ने केशव चंद्र सेन को ब्रह्म समाज का आचार्य बनाया ,केशव चंद्र सेन उदारवादी व्यक्ति थे तथा इनके समय में ब्रह्म समाज अखिल भारतीय स्वरूप ग्रहण करता है।केशव के देवेंद्र नाथ टैगोर से मतभेद के कारण 1865 ईसवी में ब्रह्म समाज दो भागों में विभाजित हो गया-
    1. ब्रह्म समाज- देवेंद्र नाथ टैगोर के नेतृत्व में यह ब्रह्म समाज ही कहलाया।
    2. आदि ब्रह्मसमाज- केशव चंद्र सेन के नेतृत्व में इसे आदि ब्रह्म समाज या भारतीय ब्रह्मसमाज कहा गया।

    केशव चंद्र सेन के प्रयासों से ही 1872 में "सिविल मैरिज एक्ट", जिसे "ब्रहम विवाह अधिनियम"  भी कहा जाता है,पारित किया गया। इस एक्ट में लड़की की विवाह की न्यूनतम उम्र 14 वर्ष और लड़के की 18 वर्ष निर्धारित की गई।
    परंतु केशव चंद्र सेन द्वारा अपनी 12 वर्षीय पुत्री का विवाह कूचबिहार के राजा से कर देने पर भारतीय ब्रह्म समाज में मतभेद उत्पन्न हो गए तथा इसका पुनः विभाजन हो गया और शिवनाथ शास्त्री के नेतृत्व में साधारण ब्रह्म समाज की स्थापना हुई।

              -स्वामी दयानंद सरस्वती और आर्य समाज-
    स्वामी दयानंद सरस्वती भारत के महान समाज सुधारक एवं मार्गदर्शक थे। इनके बचपन का नाम मूलशंकर था तथा पूर्णानंद जी ने इन्हें 'दयानंद सरस्वती' नाम प्रदान किया,इनके गुरु का नाम 'स्वामी बिरजानंद' था।
    1. दयानंद ने हिंदू धर्म में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए धर्म सुधार पर बल दिया तथा सभी धार्मिक अंधविश्वास एवं पाखंड से बचने के लिए इन्होंने 1863 ईस्वी में आगरा में "पाखण्ड-खण्डिनी पताका" पहराई।
    2. इनका सामाजिक सुधार आंदोलन "पुनरुत्थानवादी" कहलाता है तथा यह हिंदू धर्म और संस्कृति की प्रतिष्ठा स्थापित करना करने का प्रयास करते हैं।
    3.आर्य समाज- 
        इसकी स्थापना 1875 ई० में दयानंद सरस्वती ने मुंबई में की
       ० इसका मुख्यालय 1877 में लाहौर में बनाया।
        इसका मुख्य धर्म मानव धर्म था तथा इन्होंने छुआछूत,जाति-पात,भेदभाव,बहुदेववाद,मूर्तिपूजा इत्यादि का विरोध किया।
      इन्होंने वेदों को शाश्वत मानते हुए 'वेदों की ओर लौटो' का नारा  दिया।
      इन्होंने वर्ण व्यवस्था का समर्थन किया परंतु वर्ण भेद का विरोध करते हैं।
      आर्य समाज सर्वाधिक लोकप्रिय पंजाब तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में हुआ।
     
    4. दयानंद ने धर्म परिवर्तन से लोगों की रक्षा करने के लिए 'शुद्धि आंदोलन' चलाया।
    5. इन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने का समर्थन किया तथा 1874 ईसवी में इन्होंने हिंदी में  'सत्यार्थ प्रकाश' की रचना की।
    6. दयानंद सरस्वती ने ही सर्वप्रथम 'स्वराज' का नारा दिया था जिसे लोकप्रिय बनाने का कार्य बाल गंगाधर तिलक ने किया।
    7. इन्होंने 1882 में 'गौ रक्षा समिति' की स्थापना की थी।
    8. दयानंद सरस्वती वैदिक शिक्षा के समर्थक थे।इनकी मृत्यु 1883 ईसवी में हो जाती है इसके बाद इनके समर्थक दो भागों में विभाजित हो जाते हैं-
       प्रथम - जो पाश्चात्य एवं भारतीय पद्धति दोनों की शिक्षा का समर्थन करते हैं इसके अंतर्गत 'लाला हंसराज' द्वारा 1886 ई० लाहौर में डी.ए.वी (दयानंद एंग्लो वैदिक) स्कूल की स्थापना की जाती है।
       द्वितीय- जो पूर्णतया वैदिक शिक्षा पद्धति का समर्थन करते हैं इसके अंतर्गत स्वामी श्रद्धानंद और मुंशीराम द्वारा 1902 में हरिद्वार में 'गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय' की स्थापना की जाती है।
    9. 1907 में वैलेंटाइन शिरोल ने अपनी पुस्तक "इंडियन अनरेस्ट" में आर्य समाज को 'भारतीय अशांति का जन्मदाता' कहा है।

            -स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण मिशन-
    1. स्वामी विवेकानंद आधुनिक भारत के महान चिंतक,दार्शनिक एवं समाज सुधारक थे इनके बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था।
    2. विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस थे जो कलकत्ता में काली मंदिर के एक पुजारी थे। चूंकि रामकृष्ण परमहंस मूर्ति पूजा के समर्थक थे इसलिए उनके शिष्य विवेकानंद भी मूर्ति पूजा का समर्थन करते हैं।
    3. 'खेतड़ी के राजा' की सलाह पर नरेंद्र दत्त ने अपना नाम "स्वामी विवेकानंद" रखा
    4. 1893 ई० में शिकागो के हुए प्रथम "विश्व धर्म सम्मेलन" में स्वामी विवेकानंद ने भारत का नेतृत्व किया।
    5. स्वामी विवेकानंद ने धर्म दर्शन के प्रचार के लिए न्यूयॉर्क में 'वेदांत सोसाइटी' की स्थापना की।
    6. रामकृष्ण मिशन- 
        इस मिशन की स्थापना 1897 ई० में कलकत्ता में स्वामी विवेकानंद ने की
        ०  इसके अनुसार गरीब एवं असहायों की सेवा ही ईश्वर की सेवा है।
        यह मिशन विभिन्न धर्मों के बीच सामंजस्य एवं सौहार्द बढ़ाने की बात करता है।
        वेदांत का प्रचार प्रसार करना तथा लोगों का नैतिक उत्थान कर आत्मसम्मान एवं देशसेवा पर बल देना ,इस मिशन का मुख्य उद्देश्य है।
    7. 1900 ई० में पेरिस में आयोजित दूसरे विश्व धर्म सम्मेलन में भी विवेकानंद ने भारत का नेतृत्व किया था।
    8. सुभाष चंद्र बोस ने स्वामी विवेकानंद को आधुनिक भारत का आध्यात्मिक पिता कहा है।

                      -यंग बंगाल आंदोलन-
    19वीं शताब्दी के चौथे दशक में यंग बंगाल आंदोलन का उदय हुआ,इस आंदोलन में सम्मिलित बुद्धिजीवी क्रांतिकारी पाश्चात्य विचारों से युक्त थे अर्थात यह युवा रेडिकल विचारधारा से ओत-प्रोत थे।
    ० इस आंदोलन को नेतृत्व ऐंग्लो-इंडियन 'हेनरी विवियन डेरोजियो' ने प्रदान किया था, जो कलकत्ता के हिंदू कॉलेज में 1826 से 1831 तक प्राध्यापक रहे थे।
    डेरोजियो फ्रांस की क्रांति से प्रभावित थे तथा अतिवादी विचारों का समर्थन करते थे।
    ये सभी प्रकार के रूढ़िवादी विचारों, रीति रिवाजो,धार्मिक अनुष्ठानों की निंदा करते थे।
    ये नारी अधिकारों,शिक्षा एवं स्त्री-पुरुष समानता के पक्के समर्थक थे।
    डेरोजियो ने 'डिबेटिंग क्लब', "बंगहित सभा" , तथा "सोसाइटी फ़ॉर द एक्वीजिशन ऑफ जनरल नॉलेज" नामक संस्थाओं की स्थापना की थी।
         इनके अतिवादी विचारों का कट्टर हिंदूओं ने तीव्र विरोध किया परिणामस्वरूप डेरोजियो को हिंदू कॉलेज के प्रवक्ता पद से हटा दिया गया।

                   -ईश्वरचंद्र विद्यासागर-
    ईश्वर चंद्र विद्यासागर आधुनिक भारत के महान समाज सुधारक,शिक्षाशास्त्री, एवं दार्शनिक चिंतक थे। यह तत्कालीन भारत के पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं की सशक्त आवाज थे।
    इन्होंने स्त्री पुरुष समानता, नारी शिक्षा एवं विधवा पुनर्विवाह के लिए 19 वीं सदी के मध्य में बंगाल में एक सशक्त आंदोलन चलाया।
    नारी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए इन्होंने 35 बालिका विद्यालयों की स्थापना की थी।
    बालिकाओं को पाश्चात्य शिक्षा प्रदान किए जाने के लिए इनके प्रयासों से कलकत्ता में "बैथून कॉलेज" की स्थापना की गई।
    इनके द्वारा किए गए संघर्ष एवं प्रयत्नों का ही परिणाम था कि  1856 में "विधवा पुनर्विवाह एक्ट" पारित हुआ। इस समय भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग था।

                            -वेद समाज-
    1. इसकी स्थापना 1864 में मद्रास में श्रीधरालू नायडू ने की थी।
    2. केशव चंद्रसेन की प्रेरणा से इसकी स्थापना हुई थी तथा इसे दक्षिण भारत का ब्रह्म समाज भी कहा जाता है।
    3. इसने ब्रह्म समाज की तरह ही दक्षिण भारत में समाज सुधार को बढ़ावा दिया तथा सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया।

                   -थियोसोफिकल सोसाइटी-
    1. इसकी स्थापना 1875 में न्यूयॉर्क में मैडम ब्लावात्स्की और कर्नल एच.एस. ऑलकाट द्वारा की गयी थी।
    2. यह भारतीय धर्म एवं दर्शन से अत्यधिक प्रभावित थे।
    3. थियोसोफिकल सोसायटी का अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय मद्रास के निकट अडयार में 1882 में स्थापित किया गया।
    4. 1893 ई० में आयरिश महिला एनी बेसेंट भारत आकर थियोसॉफिकल सोसायटी का कार्यभार संभालती हैं।
    5. एनी बेसेंट ने हिंदू धर्म का महिमा मण्डन कर भारत के लिए इसे सबसे महत्वपूर्ण बताया। इन्होंने सभी प्रकार के भेदभाव, जाति-पात ,छुआछूत आदि का विरोध किया तथा विश्व बंधुत्व,प्रेम, आध्यात्मिक शांति इत्यादि का समर्थन किया।
    6. एनी बेसेंट ने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए 1898 में "सेंट्रल हिंदू कॉलेज" की स्थापना की।जो 1916 में मदन मोहन मालवीय के प्रयासों से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के रूप में  विकसित हुआ।

                  -महाराष्ट्र में सुधार आंदोलन-
    महाराष्ट्र में पाश्चात्य शिक्षा की पहली उपज 'बालशास्त्री' को माना जाता है जो महाराष्ट्र के धर्म सुधार आंदोलन में अग्रणी थे। बाल शास्त्री ने 1837 में मुंबई दर्पण तथा 1840 में  दिग्दर्शन नामक पत्रिकाएं निकाली। इनके अतिरिक्त शुरुआत में जगन्नाथ शंकर सेठ,कृष्ण चिपलुणकर और विष्णु शास्त्री महाराष्ट्र में धर्म सुधार आंदोलन के प्रणेता कहे जा सकते हैं।
    परमहंस मंडली- इसकी स्थापना 1849 में आत्माराम पांडुरंग द्वारा की गई थी। जिसमें इनके सहयोगी बालकृष्ण जयकर और दादोबा पांडुरंग थे। इनका विश्वास एकेश्वरवाद में था तथा यह ऊंच-नीच ,जातीय भेदभाव का विरोध करते थे।

    महाराष्ट्र में सामाजिक सुधारों को प्रारंभ करने का श्रेय गोपाल हरि देशमुख को जाता है जो लोकहितवादी के नाम से भी जाने जाते हैं।इन्होंने सामाजिक-धार्मिक समस्याओं एवं उनके समाधान पर अनेक लेख(शतपत्रे) लिखे, जिनका प्रकाशन साप्ताहिक पत्र "प्रभाकर" में किया गया। इस साप्ताहिक पत्र की शुरुआत 1848 में गोपालहरि द्वारा की गयी थी।

    प्रार्थना समाज-
     प्रार्थना समाज की स्थापना 1867 में बम्बई में आत्माराम पांडुरंग के द्वारा मुंबई में की गई। इसको स्थापित करने की प्रेरणा पांडुरंग को केशव चंद्र सेन से मिली थी।
     बाद में महादेव गोविंद रानाडे और आरजी भंडारकर इस समाज से जुड़े। इस समाज को प्रसिद्धि दिलाने का कार्य रानाडे  ने ही किया था।
     प्रार्थना समाज ने समाज में व्याप्त बुराइयों जैसे बाल विवाह, जाति-पात,विधवा विवाह निषेध इत्यादि का विरोध किया।
     महादेव गोविंद रानाडे को "पश्चिमी भारत का सामाजिक पुनर्जागरण का अग्रदूत" कहा जाता है।
     दक्कन एजुकेशनल सोसायटी- इसका गठन महादेव गोविंद रानाडे द्वारा 1884 ई० में पुणे में किया गया था।
     विडो रीमैरिज एशोसिएशन- रानाडे ने विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा देने के लिए 1891 में महाराष्ट्र में इस एसोसिएशन की स्थापना की थी।
     रानाडे की पत्नी पंडिता रमाबाई ने महिला उत्थान के कार्य किए तथा "आर्य महिला समाज" की स्थापना में महत्वपूर्ण सहयोग किया।

    डी.के.कर्वे- कर्वे महाराष्ट्र प्रसिद्ध समाज सुधारक एवं उद्धारक थे। इन्होंने महिला शिक्षा तथा विधवा पुनर्विवाह के लिए अत्यधिक प्रयास किए थे।
     इन्होंने शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए चंदा एकत्र कर 50 से अधिक प्राइमरी विद्यालयों की विभिन्न गांवों में स्थापना की।
     कर्वे ने 1893 में "विधवा विवाह संघ" की स्थापना की तथा स्वयं एक विधवा से विवाह किया था।
     इन्होंने 1899 में पूना में "विडो होम(विधवा आश्रम)" की स्थापना की थी।
     महिला शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिये देते इन्होंने 1906 में मुंबई में "भारतीय महिला विश्वविद्यालय" की स्थापना की थी। यह भारत का प्रथम महिला विश्वविद्यालय था।

             -ज्योतिबा फुले एवं सत्यशोधक समाज-
     ज्योतिबा फुले का जन्म 'माली' जाति में हुआ था तथा इन्होंने निम्न एवं पिछड़ी जातियों के पक्ष में ब्राह्मण विरोधी आंदोलन चलाया।
     1873 में फुले ने सत्यशोधक समाज की स्थापना की जिसका मुख्य उद्देश्य निम्न जातियों को अपने अधिकारों के प्रति सजग करना, स्त्री एवं निम्न जातियों में शिक्षा का प्रसार एवं सामाजिक सेवा था।
    ० इन्होंने स्त्री शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अपनी पत्नी के सहयोग से पुणे में एक बालिका विद्यालय की स्थापना की।
    ० फुले ने गुलामगिरी तथा सार्वजनिक सत्यधर्म जैसी पुस्तकों की रचना की।
                       






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