• 12.7.20

    मौर्योत्तर काल-(भाग-2)

    मौर्योत्तर काल-(विदेशी आक्रान्ता)-
    मौर्य वंश के पतन के बाद एक शक्तिशाली एवं केंद्रीय शासन का अंत हो जाता है जिसके कारण देशी राज्यों के उदय के साथ-साथ भारत की उत्तर पश्चिमी सीमा से विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण  प्रारंभ हो जाते हैं और वह भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी सत्ता स्थापित कर लेते हैं।इन विदेशी शक्तियों में सर्वप्रथम भारत पर आक्रमण हिंद-यवन करते हैं उसके बाद क्रमशः शक,पहलव,कुषाण आक्रमणकारी भारत पर आक्रमण करते हैं।

                          - हिंद- यवन/बैक्ट्रियाई-
    1. भारत पर सबसे पहले आक्रमण हिंद-यवन(यूनानी) या बैक्ट्रियाई शासक डेमेट्रियस(युथीडेमस वंश) द्वारा किया जाता है।यह अफगानिस्तान, पंजाब एवं सिंध प्रांत पर विजय प्राप्त कर लेता है।
    2. इन्होंने अपनी राजधानी साकल(वर्तमान स्यालकोट)को बनाया।
    3. यवनों में सबसे प्रमुख शासक मिनांडर या मिलिंद(165 ई०पू०- 145 ई० पू०) था।
    4. पुष्यमित्र शुंग में मिनांडर को पराजित किया था।
    5. मिनांडर ने बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया था। मिलिंदपन्हो नामक ग्रंथ में मिनांडर और नागसेन के बीच दार्शनिक वाद- विवाद तथा प्रश्न-उत्तर का संकलन किया गया है।
    6. हिंद यवन शासकों ने ही सर्वप्रथम भारत में सोने के सिक्के जारी किए थे तथा इन्होंने ही सर्वप्रथम सिक्कों पर राजा के चित्र एवं उसके कालखंड को अंकित किया था।
    7. इस दौरान गांधार कला का विकास हुआ जो यूनानी एवं भारतीय कला का सम्मिश्रण है। 
    8. नाटकों ने पर्दा 'यवनिका' का प्रचलन यूनानियों की देन है।

    नोट:- भारत के पश्चिमोत्तर प्रांत में दो यवन वंशो ने अपनी सत्ता स्थापित की थी।प्रथम- युथीडेमस वंश,जिसका पहला शासक डेमेट्रियस था। द्वितीय- युक्रेटाईडीज़ वंश,जिसके प्रसिद्ध शासक एण्टियालकिड्ज और हर्मियस थे।

                   -शक शासक/सीथियन-
    1. शक मध्य एशिया की खानाबदोश जनजाति थी जो चारागाह की तलाश में भारत की ओर आते हैं।
    2. भारत में प्रथम शक शासक 'मोगा' था।
    3. शक राजा अपने को क्षत्रप कहते थे।
    4. शकों की 5 शाखाएं थीं जिसमें सबसे प्रमुख शाखा पश्चिमी शाखा थी।इस शाखा का सबसे प्रतापी शासक रुद्रदामन था।
    5. रुद्रदामन ने संस्कृत भाषा में जूनागढ़ अभिलेख का निर्माण कराया था। यह भारत में संस्कृत भाषा का प्रथम अभिलेख है।
    6. रुद्रदामन(130 ई०- 150 ई०) ने सौराष्ट्र की सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार कराया था।इस झील का निर्माण मौर्य काल में चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा करवाया गया था।
    7. रुद्रदामन उच्च कोटि का विद्वान था तथा इसे राजनीति, संगीत दर्शन, आदि में रुचि थी।

    नोट:- उज्जैन के एक स्थानीय शासक ने शकों को पराजित किया था इस उपलक्ष्य में उसने 'विक्रमादित्य' की उपाधि धारण की तथा  'विक्रम संवत'(58 ई०पू०) प्रारंभ किया।

                            - पहलव/पार्थियन -
    1. शकों के बाद भारत आने वाले विदेशी 'पहलव' थे।
    2. पहलवों का सबसे प्रतापी शासक गोंडोफर्निस था। इसके समय में ही पादरी 'सेंट टॉमस' भारत में ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिए आया था। इसकी जानकारी तख़्तेबही अभिलेख से मिलती है। यह भारत आने वाला प्रथम ईसाई पादरी था।
    3. पहलवों की राजधानी तक्षशिला में थी।

                            - कुषाण वंश -
    1. पार्थियाई लोगों के बाद भारत आने वाले विदेशी कुषाण थे यह चीन की यूची या तोचेरियन (तोखारी) जाति से संबंधित थे और मध्य एशिया से होकर भारत आए थे।
    2. कालांतर में यूची कबीला 5 भागों में विभाजित हो जाता है जिसमें सबसे प्रमुख शाखा कुषाणों की थी।
    3. कुषाण वंश के संस्थापक को 'कुजुल कडफिसस' थे।
    4. इसके बाद 'विम कडफिसस' कुषाणों का महत्वपूर्ण राजा हुआ जिसने कुषाणों में सर्वप्रथम सोने के सिक्के चलवाये। यह शैवमत का अनुयायी था तथा इसने महेश्वर की उपाधि धारण की थी।

    कनिष्क(78 ई०- 101 ई०)-
    1. यह कुषाण वंश का सबसे महान एवं प्रतापी शासक था। यह 78 ईसवी में राजा बनता है और अपने राज्यारोहण के समय शक संवत(78 ई०) की शुरुआत करता है। शक संवत भारत के राष्ट्रीय कैलेंडर के रूप में प्रयोग किया जाता है।
    2. कनिष्क ने कश्मीर पर विजय प्राप्त की और वहां कनिष्कपुर नामक एक नगर बसाया।
    3. कनिष्क ने चीन के हान वंशी राजा "हो-ती" के सेनापति को दूसरे युद्ध में पराजित कर(प्रथम में कनिष्क पराजित हुआ था) काशगर,खोतान और यारकंद पर अधिकार कर लिया था। 
    4. कनिष्क ने अपना साम्राज्य मध्य एशिया के ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान से लेकर कश्मीर,मथुरा एवं सारनाथ(वाराणसी) तक फैला दिया था।
    5.  कुषाणों ने अपनी प्रथम राजधानी पुरुषपुर(पेशावर) को बनाया था एवं बाद में राजधानी मथुरा को बनाया।
    6. चीन को मध्य एशिया से जोड़ने वाले रेशम मार्ग पर कनिष्क का नियंत्रण था और वह यहां से चुंगी वसूलता था।
    7. कनिष्क के समय सर्वाधिक शुद्ध सोने के सिक्के जारी किए गए थे।
    8. कनिष्क ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था और इसके समय में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन बसुमित्र की अध्यक्षता में कुंडलवन,कश्मीर में हुआ था।
    9. कनिष्क के समय ही गांधार कला और मथुरा कला का विकास होता है।
    नोट:- गांधार कला का विकास भारत के उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर भारतीय तथा यूनानी कलाओं के सम्मिश्रण से होता है जबकि मथुरा कला पूर्णतया भारतीय कला है।
    10. कनिष्क के दरबार में अश्वघोष,चरक,सुश्रुत और नागार्जुन जैसे विद्वान रहते थे।
       नोट:- अश्वघोष बौद्ध भिक्षु था जिसने बुद्धचरित की रचना की थी कनिष्क ने इसको पाटलिपुत्र संघर्ष के दौरान प्राप्त किया था।
       चरक महान चिकित्सा आचार्य थे और उन्होंने चरक संहिता की रचना की थी।
       सुश्रुत को शल्य चिकित्सा का जनक माना जाता है इन्होंने सुश्रुत संहिता की रचना की थी।
       नागार्जुन शून्यवाद के सिद्धांत के प्रतिपादक हैं इन्हें भारत का आइंस्टीन कहा जाता है।

    अन्य महत्वपूर्ण तथ्य:-
    1. कुषाणों ने सर्वाधिक शुद्ध सोने के सिक्के चलाए थे जबकि  सर्वाधिक मात्रा में इन्होंने तांबे के सिक्के जारी किए थे।
    2. कुषाण वंश का अंतिम शासक वासुदेव द्वितीय था।
    3. कनिष्क के शासन काल में वसुमित्र ने महाविभाषसूत्र की रचना की थी जिसे बौद्ध धर्म का विश्वकोश कहा जाता है।
    4. कनिष्क के राज दरबार का महान राजनीतिज्ञ "मधर" था।
    5. कुषाण राजा "देवपुत्र" कहलाते थे। इस देवपुत्र की उपाधि को चीनियों से लिया था।


       
       


          

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