• 30.11.18

    मनोवैज्ञानिक पावलव( Ivan Pavlov) के अधिगम सम्बन्धी प्रतिक्रिया या अनुक्रिया सिद्धांत और अंतर्दृष्टि (सूझ) द्वारा सीखने का सिद्धान्त


    दोस्तों आज महान मनोवैज्ञानिक पावलव( Ivan Pavlov) के अधिगम सम्बन्धी प्रतिक्रिया या अनुक्रिया सिद्धांत और अंतर्दृष्टि (सूझ) द्वारा सीखने का सिद्धान्त के पर चर्चा करेंगे, तो चलिए शुरू करते हैं आज के टॉपिक

    पावलव के अधिगम सम्बन्धी प्रतिक्रिया या अनुक्रिया सिद्धांत

    अधिगम के इस सिद्धान्त का प्रतिपादन रूसी मनोवैज्ञानिक आई पैवलव (I. Pavlov) ने किया। इन्होंने सबसे पहले उद्दीपन और अनुक्रिया के सम्बन्ध को अनुबन्ध द्वारा व्यक्त किया।

    पावलव का प्रयोग – पैवलव ने पशुओं पर कई प्रयोग किये। इनका प्रसिद्ध प्रयोग कुत्ते पर किया गया। कुत्ते को एक निश्चित समय पर भोजन दिया जाता था। भोजन देखते ही उसकी लार टपकने लगती थी। कुछ दिनों के बाद भोजन देने से पहले घण्टी बजाई जाने लगी। उन्होंने स्वाभाविक उद्दीपन भोजन को घण्टी बजने के कृत्रिम उद्दीपन से जोड़ दिया, जिसके फलस्वरूप कुत्ता लार टपकाता था। इसके बाद उसने कुत्ते को भोजन न देकर केवल घण्टी बजाई। घण्टी की आवाज सुनते ही बिना भोजन देखे कुत्ते ने स्वाभाविक प्रतिक्रिया (लार बहना) की। इस प्रकार अस्वाभाविक या कृत्रिम उद्दीपन (घण्टी) के प्रति भी स्वाभाविक प्रतिक्रिया लार बहने में परस्पर सम्बन्ध स्थापित हो गया। ये सम्बद्ध प्रतिक्रिया कहलाती है।


    • भोजन (स्वाभाविक उद्दीपन) – लार निकलना (स्वाभाविक प्रतिक्रिया)
    • भोजन (स्वाभाविक उद्दीपन) + घण्टी की आवाज (कृत्रिम उद्दीपन) – लार निकलना (स्वाभाविक प्रतिक्रिया)
    • घण्टी की आवाज (कृत्रिम उद्दीपन) – लार निकलना (स्वाभाविक प्रतिक्रिया)


    सम्बद्ध प्रतिक्रिया सिद्धान्त का शिक्षा में महत्व

    1. यह सीखने की स्वाभाविक विधि है।
    2. इसकी सहायता से बुरी आदतों और भय सम्बन्धी रोगो का उपचार कर सकते हैं।
    3. इससे अच्छे आचरण व अनुशासन की भावना का विकास किया जा सकता है।
    4. अनुकूल कार्य करवाने में इस सिद्धान्त का प्रयोग करना चाहिये।
    5. यह सिद्धान्त बालको के सामाजीकरण करने व वातावरण से सांमजस्य स्थापित करवाने में सहायक।
    6. यह सिद्धान्त उन विषयों की शिक्षा में उपयोगी है जिनमें चिन्तन की आवश्यकता होती है। जैसे सुलेख, अक्षर विन्यास आदि।
    7. इस प्रकार सम्बद्ध-प्रतिक्रिया के सिद्धान्त को ध्यान में रखकर अध्यापक शिक्षण कार्य करें, तो अपने विषयगत कठिनाइयों को दूर कर सकेंंगे।



    अंतर्दृष्टि (सूझ) द्वारा सीखने का सिद्धान्त


    व्यक्ति कुछ कार्यों को करके सीखता है और कुछ कार्यों को दूसरों को करते देखकर सीखता है। परन्तु कुछ कार्य हम बिना बताये अपने आप ही सीख लेते हैं। इस प्रकार के सीखने को सूझ द्वारा सीखना कहते हैं।

    गुड के अनुसार – “सूझ , वास्तविक स्तिथि का आकस्मिक और तात्कालिक ज्ञान है ”

    सूझ के इस सिद्धान्त के प्रतिपादक जर्मनी के गेस्टाल्टवादी है। इसलिए कोफ्का, कोहलर, वरदाईमर के इस सिद्धानत को ‘गेस्टाल्टवादी सिद्धान्त’ भी कहते हैं।  कोहलर के अनुसार किसी समस्या के आने पर व्यक्ति को अपनी मानसिक शक्ति द्वारा पूर्ण परिस्थिति का बोध हो जाता है और सूझ द्वारा अचानक उसका हल निकल आता है।

    प्रयोगः- कोहलर महोदय ने सिद्धान्त के प्रतिपादन के लिए चिम्पैंजी और बन्दर आदि पर प्रयोग किये। कोहलर ने सुल्तान नामक एक चिम्पैंजी पर प्रयोग किया। चिम्पैंजी को उसने पिंजड़े में बन्द कर दिया और पिंजड़े की छत से केला लटका दिये। पिंजड़े के अन्दर दो छडि़यां एक छोटी व एक बड़ी रख दी गई, जो एक दूसरे में जोड़ी जा सकती थी। चिम्पैंजी ने बारी बारी से छडि़यों द्वारा केले को गिराने का प्रयास किया। परन्तु असफल रहा और निराश होकर बैठ गया। परन्तु केलों को प्राप्त करने की समस्व्या मन में बनी रही। फिर वो छडि़यों से खेलने लगा, अचानक छडिया एक दूसरे में घुस गई और जुड़ते ही उसमें सूझ उत्पन्न हो गई और दोनो छडि़यां जोड़कर केलों को गिराने में सफल हो गया। दूसरी बार वैसी ही समस्या आने पर एक ही बार में हल निकालने में सफल हो गया।

    विशेषताएं
    • सूझ अचानक पैदा होती हैं।
    • सीखने की प्रक्रिया संज्ञानात्मक होती है।
    • सीखने की प्रकृति लगभग स्थायी होती है।
    • सूझ के लिए समस्यात्मक परिस्थिति का होना अनिवार्य है।
    • सूझ प्राणी के लक्ष्य और समाधान के बीच एक स्पष्ट सम्बन्ध की सूचक होती है।
    • सूझ में समस्या का समाधान स्वतः मानसिक चिन्तन करने से मिल जाता है।
    सूझ या अन्तर्दृष्टि का शिक्षा में महत्व
    • यह सिद्धान्त रचनात्मक कार्यों के लिए उपयोगी है।
    • इस सिद्धान्त से तर्क, कल्पना व चिन्तन शक्ति का विकास होता है।
    • विज्ञान, गणित जैसे विषयों के शिक्षण में यह बहुत उपयोगी है।
    • साहित्य, संगीत कला आदि की शिक्षा के लिए बहुत उपयोगी है।
    • यह सिद्धान्त बालकों को स्वयं खोज करके ज्ञान अर्जित करने के लिए प्र्रेरित करता है।
    • विद्यालय में बालक के समस्या समाधान पर आधारित अधिकांश सीखने में यह विधि उपयेागी है।
    अन्तर्दृष्टि का सीखने में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। परन्तु यह सूझ उच्चकोटि के पशुओं व मनुष्यों में ही सम्भव होती है क्योंकि सूझ द्वारा सीखने में बुद्धि का प्रयोग करना पडता है। सामान्यतया कोई भी समस्या आने पर उसका समाधान हम सूझ द्वारा ही करते हैं

    शिक्षक भर्ती नोट्स

    General Knowledge

    General Studies