कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व(CSR)

कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व(CSR)-
कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व का तात्पर्य है की कंपनी एवं उद्योग अपने लाभ का एक हिस्सा सामाजिक कार्यों पर खर्च करें तथा अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को समझें। कंपनीज एक्ट 2013 में यह प्रावधान कर दिया गया है की कंपनियां अपने शुद्ध लाभ का 2% प्रतिवर्ष सामाजिक कार्यों जैसे गरीबी उन्मूलन शिक्षा,स्वास्थ्य,पर्यावरण आदि पर खर्च करें।
इसके अंतर्गत उन कंपनियों को सम्मिलित किया गया है जो किसी वित्तीय वर्ष में निम्नलिखित शर्तें पूरी करती हूं-
1. जिनका शुद्ध मुनाफा 5 करोड़ या उससे अधिक हो अथवा
2. टर्नओवर 1000 करोड़ से अधिक हो अथवा
3. कुल संपत्ति 500 करोड़ या उससे अधिक हो।

कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत निम्नलिखित क्षेत्रों के विकास के लिए कार्य किए जाते हैं-
1. शिक्षा सुधार संबंधी प्रयास
2. स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करना
3. गरीबी उन्मूलन
4. पर्यावरण संरक्षण
5. आदिवासी समुदाय का विकास
6. महिला सशक्तिकरण
7. ग्रामीण विकास
8. रोजगारपरक कौशल विकास
9. स्वच्छता संबंधी प्रयास आदि।

भारत विश्व का ऐसा पहला देश है जहां पर सामाजिक उत्तरदायित्व से संबंधित  कंपनियों के लिए बाध्यता संबंधी प्रयास किए गए हैं।

प्रमुख लाभ:-
कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रावधान से निम्नलिखित लाभ होते हैं-
1. प्राइवेट सेक्टर के सामाजिक जिम्मेदारी निभाने से सरकार पर  बोझ कुछ कम हो जाता है।
2. ग्रामीण विकास, शिक्षा एवं स्वास्थ्य का विकास, गरीबी उन्मूलन एवं पर्यावरण स्वच्छता जैसे कार्यों से सामाजिक एवं सामुदायिक विकास को बढ़ावा मिलता है
3. सामाजिक विषमता में या असमानता में कमी आती है।
4. सुदूरवर्ती क्षेत्रों में विकास कार्य संभव पाते हैं।
5. आदिवासी,पिछड़े एवं आदिवासी समुदायों का विकास संभव होता है क्योंकि यह उद्योग एवं कंपनियां इन क्षेत्रों में कार्यरत होती हैं।
6. इससे कंपनियों की एक ब्रांड वैल्यू बनती है तथा उसकी सामाजिक छवि सुधरने से उसके उत्पादों की बिक्री भी सता बढ़ जाती है।
7. सरकार की विकासात्मक योजनाओं के पूरक के रूप में सीएसआर कार्य कर सकता है।

समस्याएं-
1. कई कंपनियां इस धनराशि को केवल अपने प्रचार एवं व्यक्तिगत लाभ का माध्यम समझती हैं जिससे वह विकासात्मक क्षेत्रों में पैसा खर्च नहीं करती हैं।
2. स्थानीय समुदाय में भी जागरूकता की कमी के कारण यह चार गतिविधियां ढंग से संपन्न नहीं हो पाती हैं।
3. कंपनियों के पास सामाजिक उत्तरदायित्व को पूरा करने के लिए प्रशिक्षित मानव शक्ति का अभाव होने से यह प्रभावी नहीं हो पाती है।
4. इसमें मॉनिटरिंग संबंधी समस्याएं देखी गई हैं।
5. कंपनियों में इच्छाशक्ति का अभाव।
6. सीएसआर के लिए आवंटित धनराशि कुछ निश्चित क्षेत्रों जैसे शिक्षा ,स्वास्थ्य में ही खर्च की जाती है जिससे इसके व्यय में असंतुलन पैदा होता है।

इन्हीं समस्याओं एवं चुनौतियों को दूर करने के लिए अब "सोशल लाइसेंस टू ऑपरेट"(SLO) अर्थात सामाजिक अनुज्ञप्ति की अवधारणा को महत्व दिया जा रहा है। इसमें कंपनियों को प्रोत्साहित किया जाता है कि वे सामाजिक कार्यों को सही ढंग से करें तथा उनकी पहचान जन समुदाय में एक अच्छी सेवा प्रदाता के रूप में स्थापित हो। इसमें कंपनी के कर्मचारियों,हितधारकों  और स्थानीय समुदाय द्वारा कंपनियों की गतिविधियों को स्वीकृति प्रदान की जाती है।

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