• 12.2.22

    आर्द्रभूमियों(wetlands) का संरक्षण

    आर्द्रभूमियों(wetlands) का संरक्षण-
    आर्द्रभूमि जैव विविधता की दृष्टि से अतिसम्पन्न क्षेत्र होते हैं। आर्द्रभूमि ऐसा क्षेत्र होता है जहां जल का जमाव पूरे वर्ष या फिर किसी मौसम विशेष में रहता है इस प्रकार दलदलीय क्षेत्र,तालाब,झील,छिछले जलीय भाग आदि आर्द्रभूमि की श्रेणी में आते हैं।आर्द्रभूमियों के संरक्षण एवं उनके गुणवत्तापूर्ण उपयोग के लिये वर्ष 1971 में ईरान में रामसर कन्वेंशन का आयोजन किया गया,
    इसके अनुसार-दलदल,पंकभूमि,पीटभूमि या जल,प्राकृतिक या कृत्रिम,स्थायी या अस्थायी,स्थिर जल या गतिमान जल तथा ताजा,खारा व लवणयुक्त जल क्षेत्रों को आर्द्रभूमि कहते हैं।इसके अंतर्गत सागरीय क्षेत्रों को भी सम्मिलित करते हैं जहां निम्न ज्वार के समय भी गहराई 6 मीटर से अधिक नही होती है।
    इस प्रकार आर्द्रभूमियों को 2 भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
    1.प्राकृतिक आर्द्रभूमि
    2. मानवीकृत आर्द्रभूमि
    प्राकृतिक आर्द्रभूमियों के अंतर्गत निम्नलिखित आर्द्रभूमि आती हैं-
    अन्तःस्थलीय आर्द्रभूमि- इसमें झील,तालाब,अनूप,कच्छ,स्वच्छ जल के स्रोत,क्रीक आदि आते हैं।
    तटीय आर्द्रभूमि- कोरलरीफ,छिछले जलीय सागरीय भाग,एस्चुरी,मैंग्रोव,लैगून आदि आते है।
    मानवीकृत आर्द्रभूमि- ये आर्द्रभूमि मानव द्वारा निर्मित होती हैं इसमें नहरे,जलक्रांत क्षेत्र,तालाब,मानवनिर्मित बांध आदि आते हैं।
    आर्द्रभूमियों का महत्व-
    1.आर्द्रभूमियों को पारिस्थितिक तंत्र के फेफड़ों के रूप में जाना जाता है।
    2. ये जैव विविधता से परिपूर्ण होते हैं ।
    3. ये स्वच्छ जल,भोजन,ईंधन व अन्य संसाधनों की पूर्ति करने में सहायक है।
    4. भौमजल के रिचार्ज के लिये अतिउपयोगी क्षेत्र हैं।
    5. आर्द्रभूमि विविध प्रकार की सांस्कृतिक सेवाएं प्रदान करती हैं जैसे-पर्यटन,मनोरंजन,सौंदर्य तथा शैक्षिक आदि।
    6. इनके समीप कई आदिवासी समुदाय निवास करते हैं जो इन क्षेत्रों में परंपरागत ज्ञान,जीवन निर्वाह व्यवस्था,प्रकृति प्रेम को महत्व देते हैं।
    7. प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा प्रदान करने में सहायक जैसे- बाढ़,सूखा,मृदा अपरदन आदि से निपटने में महत्वपूर्ण।
    8. प्रदूषण नियंत्रण में सहायक। 
    9. जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये महत्वपूर्ण।
    10. मृदा निर्माण,पारिस्थितिक उत्पादन,पोषक तत्त्वों के चक्रण में भी महत्वपूर्ण भूमिका।
    11. प्रवासी पक्षियों के लिये आश्रयस्थल के रूप में भूमिका।

    आर्द्रभूमि के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिये प्रतिवर्ष 2 फरवरी को विश्व आर्द्रभूमि दिवस मनाया जाता है।भारत आर्द्रभूमि के संरक्षण के लिये 1982 में रामसर कन्वेंशन का सदस्य बना।रामसर कन्वेंशन आर्द्रभूमि के संरक्षण के लिये एक अंतरसरकारी एवं बहुउद्देश्यीय समझौता है।इस समझौते को विभिन्न देशो ने अपनी स्वीकृति प्रदान की है।इस समझौते के पक्षकार देशों के प्रमुख दायित्व इस प्रकार हैं-
    1.अपने यहाँ स्थित आर्द्रभूमियों को अंतरराष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमियों के सूची में नामित करना।
    2. आर्द्रभूमियों का गुणवत्तापूर्ण उपयोग करना।
    3. सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थित आर्द्रभूमियों(दो या अधिक देशों की सीमाओं पर),साझा जल व्यवस्थाओं में अंतरराष्ट्रीय सहयोग करना।
    4.आर्द्रभूमि रिज़र्व बनाना।

    भारत में आर्द्रभूमि संरक्षण-
    भारत में रामसर साइट्स की कुल संख्या वर्तमान में 37 (हाल ही में 10 नई साइट्स को शामिल किया गया) है। सबसे अधिक क्षेत्रफल की रामसर साइट्स सुंदरवन(पश्चिम बंगाल) है।भारत में यह आर्द्रभूमियां अन्तःस्थलीय तथा तटीय दोनों क्षेत्रों में फैली हुई हैं।
    रामसर स्थलों का वितरण-
    1. दीपोर बिल- असम
    2. रुद्रसागर झील- त्रिपुरा
    3. लोकटक झील- मणिपुर
    4. नलसरोवर पक्षी अभ्यारण्य- गुजरात
    5. भोज आर्द्रभूमि - मध्यप्रदेश
    6. ऊपरी गंगा नदी- उत्तरप्रदेश
    7. कोल्लेरु झील- आंध्रप्रदेश
    8. चिल्का झील- ओडिशा
    9. भितरकनिका मैंग्रोव - ओडिशा
    10. पूर्वी कोलकाता आर्द्रभूमि- पश्चिम बंगाल
    11. सुंदरवन- पश्चिम बंगाल
    12. अष्टईमुडी - केरल
    13. बेम्बनाद झील- केरल
    14. षष्ठमकोट्टा- केरल
    15. हरिके झील- पंजाब
    16. रोपड़ झील- पंजाब
    17. कांजली झील- पंजाब
    18. वूलर झील - जम्मू- कश्मीर
    19. सुरिन्सर-मानेसर झील- जम्मू-कश्मीर
    20. सोमोरीरी(Tsomoriri) झील- लद्दाख
    21. होकरा वेटलैंड- जम्मू-कश्मीर
    22. चंद्रताल आर्द्रभूमि- हिमाचल प्रदेश
    23. रेणुका वेटलैंड- हिमाचल प्रदेश
    24. पोंग बांध- हिमाचल प्रदेश
    25. सांभर झील- राजस्थान
    26. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान- राजस्थान
    27. पॉइन्ट कैलिमरे वन्य एवं पक्षी अभ्यारण्य- तमिलनाडु

    इस वर्ष(2020) में दस नए रामसर साइट्स को शामिल किया गया-
    28. नंदूर मधमेश्वर- महाराष्ट्र
    29. केशोपुर मियानी- पंजाब
    30. व्यास संरक्षण रिज़र्व- पंजाब
    31. नांगल वन्यजीव अभ्यारण्य- पंजाब
    32. नबाबगंज पक्षी अभ्यारण्य- उत्तरप्रदेश
    33. पार्वती-अरगा पक्षी अभ्यारण्य- उत्तरप्रदेश
    34. समन पक्षी अभ्यारण्य- उत्तरप्रदेश
    35. समसपुर पक्षी अभ्यारण्य- उत्तरप्रदेश
    36. सांडी पक्षी अभ्यारण्य- उत्तरप्रदेश
    37. सरसई नवार झील- उत्तरप्रदेश

    मोन्ट्रेक्स रिकॉर्ड-
    रामसर कन्वेंशन के अंतर्गत मोन्ट्रेक्स रिकॉर्ड एक रजिस्टर है जिसमे उन रामसर साइट्स को शामिल किया जाता है जो  पर्यावरण प्रदूषण एवं मानवीय हस्तक्षेप के कारण अत्यधिक निम्नीकृत हो गयी हैं।यह कोई स्थायी रजिस्टर नही है क्योंकि इसमें शामिल की जाने वाली साइट्स को इससे बाहर भी निकाला जा सकता है यदि उस आर्द्रभूमि को पर्यावरण संरक्षण प्रदान कर उसे प्रदूषण से मुक्त कर दिया जाये।
    वर्तमान में भारत की 2 रामसर साइट्स मोन्ट्रेक्स रिकॉर्ड में शामिल हैं-
    1. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान(1990 में शामिल)
    2. लोकटक झील(1993 में शामिल)
    चिल्का झील(1993 में) को भी मोन्ट्रेक्स रिकॉर्ड में शामिल किया गया था परंतु  इसको पर्यावरण संरक्षण प्रदान करके 2002 में इसे इस सूची से बाहर निकाल दिया गया।

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