• 9.7.20

    1857 की क्रांति

    1857 की क्रांति- 
    1857 की क्रांति स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई थी।यह विद्रोह  अंग्रेजी सेना के भारतीय सिपाहियों द्वारा प्रारंभ किया गया था परंतु जल्द ही इसमें किसान,मजदूर,जमीदार आदि जुड़ गए और देखते ही देखते यह उत्तर तथा मध्य भारत के एक विशाल क्षेत्र में फैल गया।हालांकि इस विद्रोह को अंग्रेजों द्वारा दबा दिया गया परंतु अंग्रेजो के खिलाफ जिस लड़ाई की शुरुआत 1857 में होती है उसकी परिणिति हमें 1947 की आजादी में दिखाई देती है।1857 की क्रांति कोई एकाएक प्रारंभ हुई घटना नहीं थी बल्कि इसके पीछे अनेक कारण थे।
     
                                -प्रमुख़ कारण-
    1. राजनीतिक कारण- राजनीतिक कारणों में अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीतियां थी जिसके अंतर्गत उन्होंने भारतीय राज्यों एवं क्षेत्रों पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया था जिससे राजा,रजवाड़े एवं जनता क्रोधित हो उठी, यह नीतियां थी-
     ० डलहौजी की हड़प नीति- इसके अंतर्गत इसने सातारा, संभल नागपुर,झांसी,अवध आदि को अंग्रेजी राज्य में मिलाया।
     ० वारेन हेस्टिंग्स की घेरे की नीति तथा वेलेजली की सहायक संधि।
     ० ब्रिटिश शासन का विदेशी चरित्र- अंग्रेजों ने कभी भी अपने को भारतीयता से नहीं जुड़ा इसलिए जनता,जमीदार 
     ,राजा सभी इनको शक की निगाह से देखते थे
     ० अंग्रेजों की न्याय व्यवस्था भेदभावपरक थी तथा यह अंग्रेजो जमीदार, महाजन आदि के पक्ष में झुकी हुई थी और किसान मजदूर ,गरीब इसमें शोषित था।
     ० मुगल बादशाह को भारतीय जनता सम्मान की नजर से देखती थी परंतु अंग्रेजों ने उसके साथ अपमानजनक व्यवहार किया और उसे पेंशनभोगी बना दिया जिससे जनता में आक्रोश था।
     इसके अतिरिक्त प्रशासनिक स्तर पर भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार एवं भेदभाव किया जाता था और परंपरागत भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था को समाप्त कर दिया था।
     
    2. आर्थिक कारण- 
      ० अंग्रेजों द्वारा लागू की गई भू राजस्व व्यवस्थाओं- स्थाई बंदोबस्त,रैयतवाड़ी और महालवाड़ी ने किसानों की हालत बद से बदतर कर दिया था तथा कृषि बर्बाद हो गई थी।
      ० अंग्रेजों की व्यापारिक नीति के कारण स्थानीय हस्तशिल्प उद्योग तथा शिल्पकार,दस्तकार बर्बाद हो गए थे।
      ० साहूकार ,महाजन, जमीदार के रूप में नए बिचौलिए उत्पन्न हुए जिन्होंने गरीब जनता एवं किसानों का अत्यधिक शोषण किया।
      ० अंग्रेजों ने भारत को कच्चे माल का निर्यातक तथा तैयार माल का आयातक बना दिया जिससे यहाँ उद्योग-धंधे बर्बाद हो गए और बड़े पैमाने पर बेरोजगारी,गरीबी फैली।

    3. सामाजिक तथा धार्मिक कारण
        ० अंग्रेज अपनी जाति को सर्वश्रेष्ठ मानते थे तथा भारतीयों को नीचा मानकर उनके साथ दुर्व्यवहार करते थे। उन्होंने 'श्वेत व्यक्ति का बोझ सिद्धांत' की थ्योरी पर बल दिया अर्थात यह अंग्रेजों की जिम्मेदारी है कि वह भारतीयों को सभ्य बनाएं।
        ० अंग्रेजों द्वारा लागू किए गए सामाजिक सुधार जैसे विधवा पुनर्विवाह ,सतीप्रथा का अंत आदि के कारण रूढ़ीवादी समाज उनसे नाराज था।
        ० 1813 के चार्टर एक्ट द्वारा ईसाई मिशनरी भारत आने की अनुमति मिलती है तथा वह लोगों को ईसाई धर्म स्वीकार करने का दबाव डालने लगे,इससे जनता क्रोधित हो उठी।
        ० भारतीय शासक कला एवं संस्कृति के संरक्षक थे तथा धर्मगुरुओं, विद्वानों को राजाओं से संरक्षण मिलता था परंतु जब राजे रजवाड़े समाप्त हो गए तब इनका संरक्षण समाप्त हो गया और इनमें असंतोष की भावना पैदा हुई।

    4. सैनिक कारण-
       ० अंग्रेज अधिकारियों द्वारा भारतीय सैनिकों के साथ अनुचित व्यवहार एवं भेदभाव।
       ० भारतीय सैनिकों को कम वेतन दिया जाता था तथा उच्च पदों पर उनकी नियुक्ति नहीं होती थी।
       ० सुदूर क्षेत्रों में लड़ने जाने पर मिलने वाला विदेश सेवा भत्ता बंद कर दिया गया।
       ० लॉर्ड कैनिंग के समय सैनिकों को युद्ध के लिये विदेश में जाने का प्रावधान किया गया जबकि ग्रामीण समाज में समुद्र पार यात्रा धार्मिक आस्था पर चोट के समान थी।

     5. तात्कालिक कारण- 
      1856 में भारत सेना में एनफील्ड राइफलों का प्रयोग प्रारंभ हुआ,जिसमें चर्बी लगे कारतूस(गाय तथा सुअर की चर्बी) का प्रयोग किया जाता था तथा चलाने से पहले इस कारतूस को मुंह से खोलना पड़ता था। इसे सैनिकों ने अपनी धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ समझा और विद्रोह कर दिया।
      
    विद्रोह का प्रारम्भ एवं विस्तार-
    1. सर्वप्रथम 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी में (34वीं एनआई रेजिमेंट) सैनिक मंगल पांडे द्वारा लेफ्टिनेंट बाग और जनरल ह्यूरसन की हत्या कर दी जाती है। इस घटना के आरोप में 8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को फांसी दे दी जाती है।
    2.विद्रोह की वास्तविक शुरुआत 10 मई 1857 को मेरठ के सैनिकों द्वारा होती है जब वे मेरठ सैन्य छावनी में विद्रोह करके शस्त्रागार को लूट लेते हैं तथा दिल्ली की ओर कूच करके 12 मई को दिल्ली पर अधिकार कर लेते हैं। फिर मुगल बादशाह बहादुर शाह द्वितीय को नेतृत्व सौंपते हैं जिसे बादशाह स्वीकार कर लेता है परन्तु दिल्ली में सैन्य नेतृत्व बादशाह की तरफ से 'वख्त खां' संभालते हैं।परंतु कैप्टन हडसन के नेतृत्व में अंग्रेज़ सितम्बर 1857 तक दिल्ली पर अधिकार कर लेते हैं।
    3. इसके बाद यह विद्रोह समस्त उत्तर तथा मध्य भारत में फैल जाता है। विद्रोह के प्रमुख केंद्र कानपुर,लखनऊ,आरा,ग्वालियर,झांसी,भरतपुर,फैज़ाबाद,बरेली,इंदौर आदि थे।
    4. लखनऊ में विद्रोह का नेतृत्व बेगम हज़रत महल ने किया था वह अपने पुत्र बिरजिस कादिर को लखनऊ का नबाब घोषित कर देती है परन्तु कैम्पबेल और आउट्रम द्वारा इस विद्रोह को दबा दिया जाता है परन्तु बेगम अंग्रेजों के सामने समर्पण नही करती है और नेपाल चली जाती है।
    5. कानपुर में विद्रोह का नेतृत्व नाना साहब(धोंदू पंत)ने किया था जो अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र थे। नाना साहब का सहयोग तात्या टोपे ने किया था,जो उनके लेफ्टिनेंट थे।परन्तु हैवलॉक के नेतृत्व में कानपुर के विद्रोह को दिसंबर 1857 तक दबा दिया जाता है।

     नोट:- तात्या टोपे का वास्तविक नाम रामचंद्र पांडुरंग था तथा वह गोरिल्ला युद्ध पद्धति में माहिर था।कानपुर के बाद वह ग्वालियर में अंग्रेजो से संघर्ष करता है परन्तु मानसिंह के विश्वासघात के कारण पकड़ जाता है और उसे फांसी दे दी जाती है।
    6. झांसी में विद्रोह का नेतृत्व रानी लक्ष्मीबाई ने किया था जो गंगाधर राव की विधवा थी। इन्होंने अपने पुत्र दामोदर राव को सत्ता दिलवाने के लिए संघर्ष किया था, परंतु अंग्रेज सर ह्यूरोज़ द्वारा उनके विद्रोह को दबा दिया जाता है और लक्ष्मीबाई लड़ते हुए 17 जून 1858 को वीरगति को प्राप्त होती हैं।

    नोट:- रानी लक्ष्मीबाई का जन्म बनारस में हुआ था और इनके बचपन का नाम मणिकर्णिका(मनु) था।
    7. बिहार में विद्रोह का नेतृत्व कुंवर सिंह ने किया था(80 बर्ष की उम्र में विद्रोह) जो जगदीशपुर के जमींदार थे।इन्होंने बिहार के क्षेत्रों के पूर्वी उत्तर प्रदेश के आजमगढ़,बलिया,गाजीपुर आदि क्षेत्रों में विद्रोह का बिगुल बजाया।इस प्रकार विद्रोह के दौरान इन्होंने सर्वाधिक विस्तृत क्षेत्र पर विजय दर्ज की परंतु अंग्रेज विलियम टेलर द्वारा इनके विद्रोह को दबा दिया जाता है।
    8. फैज़ाबाद में विद्रोह का बिगुल मौलवी अहमदुल्ला ने बजाया तथा ये अंग्रेजों से संघर्ष करता रहा परन्तु 15 जून 1858 को इसे धोखे से मार दिया गया।
    9. इलाहाबाद में विद्रोह का नेतृत्व लियाकत अली ने किया था जिसे जनरल नील द्वारा दबाया गया। बनारस के विद्रोह को भी नील ने दबा दिया।
    10. बरेली में विद्रोह के नेतृत्वकर्ता खान बहादुर खान थे परन्तु यहां कैम्पबेल ने उनके विद्रोह को दबा दिया।

    असफलता के कारण-
    1. विद्रोह भारत के एक सीमित क्षेत्र में ही हुआ था,पश्चिम तथा दक्षिण भारत इसके प्रभाव से अछूते रहे।
    2. नेतृत्व का अभाव- राष्ट्रीय स्तर पर कोई सशक्त नेतृत्व नही,स्थानीय नेतृत्व में आपसी तालमेल का अभाव।
    3. सीमित संसाधन,पुराने अस्त्र-शस्त्र,संचार सुविधाओं की कमी,संगठन का अभाव आदि।
    4. अधिकांश राजे रजवाड़ों का उदासीन चरित्र या विद्रोह को दबाने में अंग्रेजों की मदद करना।
    5. किसी निश्चित योजना का अभाव एवं अस्पष्ट उद्देश्य।
    6. इसके विपरीत अंग्रेजों के पास आधुनिक अस्त्र शस्त्र,संचार-रेल की सुविधा,अच्छा तालमेल एवं नेतृत्व, तथा प्रशिक्षित सेना आदि का होना।

    परिणाम-
    1. भारत पर कंपनी का शासन समाप्त हो गया तथा सत्ता ब्रिटिश क्राउन के हाथों में आ गयी।
    2. बोर्ड ऑफ कंट्रोल और कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स को समाप्त कर भारत सचिव तथा 15 सदस्यीय इंडिया कौंसिल का गठन किया गया।
    3. 1 नवंबर 1858 को महारानी विक्टोरिया की उद्घोषणा को लार्ड कैनिंग इलाहाबाद में पढ़ता है जिसके अनुसार अब गवर्नर जनरल को वायसराय कहा जाने लगा
    4. विजय तथा विलय की नीति का अंग्रेजों द्वारा परित्याग।
    5. पील कमीशन की सिफारिशों के आधार पर सेना का पुनर्गठन किया जिसके अनुसार भारतीय एवं यूरोपीय सैनिको का अनुपात 5:1 से घटाकर 2:1 कर दिया गया।

    विद्रोह का स्वरूप-
    1857 के विद्रोह के स्वरूप को लेकर विभिन्न विद्वानों में मतभेद है। जहां ब्रिटिश इतिहासकार इस विद्रोह को मात्र सैनिक विद्रोह कहते हुए इसकी आलोचना करते हैं वहीं भारतीय इतिहासकारों ने इसको स्वतंत्रता की लड़ाई की संज्ञा दी है।कुछ विद्वानों के मत इस प्रकार हैं-
    1. वी.डी.सावरकर ने 1857 के विद्रोह को "प्रथम स्वतंत्रता संग्राम" कहा है।
    2. अशोक मेहता और डिजरैली ने इसे "राष्ट्रीय विद्रोह" की संज्ञा दी है।
    3. टी.आर.होम्स ने इस विद्रोह को "बर्बरता और सभ्यता के बीच युद्ध" कहा है।
    4. एल.ई.आर.रीज के अनुसार यह "धर्मान्धों का ईसाईयो के विरुद्ध युद्ध" था
    5. आर.सी.मजूमदार ने कहा " यह न तो राष्ट्रीय,न तो प्रथम और न ही स्वतंत्रता संग्राम था।"
    6. लारेंस और सीले के अनुसार यह "सैनिक विद्रोह" था।

    अन्य महत्वपूर्ण तथ्य:-
    1. 1857 के विद्रोह के समय गवर्नर जनरल लार्ड कैनिंग था।
    2. इस समय ब्रिटेन का प्रधानमंत्री पार्मस्टन था।
    3. इस विद्रोह का प्रतीक चिन्ह कमल-रोटी था।

     

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