• 29.7.20

    भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन-प्रथम चरण(1885- 1905) 【बंगाल विभाजन,स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन】

                       भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन
    देश की आज़ादी के लिये हमारे महान स्वन्त्रता सेनानियों को अंग्रेजों के विरुद्ध एक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी।अंग्रेजो के खिलाफ चलाए गए इस राष्ट्रीय आंदोलन का विकास तीन चरणों में हुआ-
    1.प्रथम चरण(1885- 1905)- उदारवादी चरण
    2. द्वितीय चरण(1905- 1919)- उग्रवादी राष्ट्रवादी चरण
    3. तृतीय चरण(1919- 1947)- गांधीवादी चरण

    इन तृतीय चरणों के साथ ही क्रांतिकारी राष्ट्रवादियों का देश की आजादी में अहम योगदान था।राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान क्रांतिकारी राष्ट्रवाद के दो चरणों का विकास होता है जिसमें प्रथम चरण लगभग 1905-1914 के मध्य और दूसरा चरण लगभग 1922 से 1930 के मध्य विकसित होता है।

       -प्रथम चरण(1885- 1905)- उदारवादी चरण-
    राष्ट्रीय आंदोलन के प्रथम चरण की शुरुआत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की 1885 में स्थापना से होती है। आगे चलकर कांग्रेस राष्ट्रीय आंदोलन का पर्याय बन गई तथा इसके नेतृत्व में अखिल भारतीय स्तर पर आंदोलन चलाया गया।

    इस चरण में कांग्रेस पर नरमपंथी नेताओं का प्रभुत्व था जिसमें दादाभाई नौरोजी,दीनशा वाचा,फिरोजशाह मेहता, गोपाल कृष्ण गोखले, सुरेंद्रनाथ बनर्जी,बदरुद्दीन तैयबजी इत्यादि प्रमुख थे।
    ये नरमपंथी नेता वैचारिक एवं सैद्धांतिक दृष्टि से उदार थे और इन्हें ब्रिटिश न्यायप्रियता में पूरा विश्वास था।
    इन्होंने अपनी मांगों को अंग्रेजों के समक्ष रखने के लिये संवैधानिक उपायों का सहारा लिया।
    इन्होंने प्रार्थना पत्र,याचिका,शपथ पत्र,स्मरण पत्र एवं प्रतिनिधिमंडलों के माध्यम से अपनी मांगो को सरकार के समक्ष रखा।
    नरमपंथियों की प्रमुख मांगें थी-
       1. सेवाओं का भारतीयकरण करना।
       2. सैन्य खर्च में कमी करना।
       3. प्रतिनिधिमूलक विधायिका का गठन।
       4. सिविल सर्विसेज की परीक्षा भारत में भी आयोजित की जाए।
        5. कार्यपालिका और न्यायपालिका का पृथक्करण
        6. काश्तकारी कानूनों में परिवर्तन करना।
        7. भू राजस्व तथा नमक कर को कम करना
        8. हस्तशिल्प एवं भारतीय उद्योगों को बढ़ावा देने वाली नीतियों का निर्माण किया जाये।
        9. शिक्षा,स्वास्थ्य,रोजगार जैसे जनकल्याणकारी कार्यक्रमों को पर बल देना।

    उदारवादियों की इन मांगों पर अंग्रेज सरकार ने विशेष ध्यान नहीं दिया तथा 1887 तक अंग्रेजों ने कांग्रेस का समर्थन किया परंतु इसके बाद उनके रुख में कांग्रेस के प्रति बदलाव आने लगता है।
    उदारवादियों की प्रमुख सफलताएं/योगदान-
      1. उनके प्रयासों से भारत परिषद अधिनियम 1892 पारित होता है जिसमें केंद्रीय एवं प्रांतीय विधायिकाओं में गैर-सरकारी सदस्यों की संख्या बढ़ाकर उनका आकार बढ़ाया जाता है।तथा परिषद के सदस्यों को बजट पर बहस करने का अधिकार मिलता है।
    2. इसके अतिरिक्त एक संकल्प पारित किया जाता है जिसके अंतर्गत सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन लंदन के साथ-साथ भारत में भी किया जाएगा।
    3. इन्होंने भारतीयों को महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार विमर्श करने के लिए एक मंच प्रदान किया।
    4. इन्होंने लोगों को राजनीतिक शिक्षा प्रदान कर आगे के राष्ट्रीय आंदोलन के लिए महत्वपूर्ण आधारशिला रखी।
    5. धन निष्कासन का सिद्धांत देकर अंग्रेजों के वास्तविक चरित्र को उजागर किया।
    6. इनके प्रयासों से आर्थिक गतिविधियों की समीक्षा के लिए  वेल्बी आयोग का गठन किया गया।

    उदारवादियों की सीमायें-
    1. उदारवादी अंग्रेजों के वास्तविक चरित्र को समझने में असफल रहे।
    2. उग्रवादी राष्ट्र वादियों ने इनकी राजनीति को "राजनीतिक भिक्षावृत्ति' की संज्ञा दी।
    3. कांग्रेस तथा राष्ट्रीय आंदोलन को जनता का आंदोलन बनाने में असफल रहे।

    प्रारंभ में अंग्रेजों ने उदारवादियों का समर्थन किया था परंतु धीरे-धीरे अंग्रेजों को एहसास हो जाता है की उदारवादी राष्ट्रीय आंदोलन को गति देने का कार्य कर रहे हैं जो भविष्य में उनके लिए घातक साबित हो सकता है। इसलिए अंग्रेज शिक्षा एवं प्रेस पर कड़े कानूनों को लागू करना प्रारंभ कर देते हैं-
    1898 में लार्ड कर्जन एक अधिनियम पारित कर ब्रिटिश शासकों के खिलाफ भड़काने वाली गतिविधियों को अपराध घोषित कर देता है।
    कर्जन भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम,1904 पारित कर विश्वविद्यालयों पर कड़ा नियंत्रण स्थापित करता है।

                   - बंगाल का विभाजन(1905) -
    इस समय तक बंगाल राष्ट्रीय एकता एवं आंदोलन का महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु बनता जा रहा था और अंग्रेज इस बढ़ती एकता को तोड़कर राष्ट्रीय आंदोलन को कमज़ोर चाहते थे इसी क्रम में लार्ड कर्जन द्वारा बंगाल का विभाजन किया जाता है।
    1. वायसराय कर्जन के अनुसार बंगाल एक बड़ा राज्य है जिससे इसके प्रशासन में असुविधा होती है इसलिए इसका विभाजन आवश्यक है।परन्तु विभाजन का वास्तविक कारण अंग्रेजों की "फूट डालो और राज करो" की नीति थी जिसके अंतर्गत वह भाषा एवं धर्म के आधार पर बंगाल को विभाजित करके राष्ट्रवाद को कमजोर करना चाहते थे।
    2. बंगाल विभाजन का निर्णय 20 जुलाई 1905 को लिया जाता है और 20 अक्टूबर 1905 को बंगाल विभाजन प्रभावी हो जाता है।जिसके अंतर्गत पूर्वी बंगाल एवं असम को मिलाकर एक नया प्रान्त बनाया गया, जिसकी राजधानी ढाका थी जोकि मुस्लिम बाहुल्य था जबकि पश्चिम में स्थित बंगाल हिंदू बाहुल्य राज्य हो गया। इस तरह हिंदू एवं मुस्लिमों के बीच दरार डालने की कोशिश अंग्रेजों द्वारा की गई।
    3. विभाजन की घोषणा के बाद 7 अगस्त 1905 को कलकत्ता के टाउन हॉल में एक ऐतिहासिक बैठक हुई, जहां पर स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन का प्रस्ताव पारित हुआ।
    4. 16 अक्टूबर 1905 का दिन बंगाल में शोक दिवस के रुप में मनाया गया तथा लोगों ने  विरोध प्रदर्शन किए एवं जुलूस निकाले। रवींद्रनाथ टैगोर के आवाहन पर इस दिन लोगों ने एक दूसरे की कलाई पर राखी बांधकर(राखी दिवस) अपनी एकता को प्रदर्शित किया।इसके अतिरिक्त विभिन्न स्थानों पर वंदेमातरम गीत गाया गया और उपवास रखे गए।

    बंगाल विभाजन के विरोध में बंग-भंग आंदोलन चलाया जाता है जिसके अंतर्गत स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन एक व्यापक रूप धारण कर लेते हैं।
          
    स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन:-
    1. इस आंदोलन के पक्ष में पूरे बंगाल में जनसभाएं प्रारंभ हो गई जिसमें लोगों से स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल की अपील की गई तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया जाने लगा।
    2. 1905 में कांग्रेस के बनारस अधिवेशन में स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन का अनुमोदन किया गया, इस अधिवेशन की अध्यक्षता गोपाल कृष्ण गोखले ने की थी।
    3. इस आंदोलन में विदेशी वस्तुओं की दुकानों पर धरने दिए गए, विदेशी सामानों की होली जलाई गई तथा सरकारी प्रतिष्ठानों, स्कूलों, कॉलेजों एवं उपाधियों का बहिष्कार किया गया।
    4. जनता को आंदोलन के प्रति जागरूक करने के लिए बारीसाल में अश्वनी कुमार दत्त द्वारा "स्वदेश बांधव समिति" स्थापित की गई।
    5. स्वदेशी को बढ़ावा देने के लिए स्वदेशी उद्योग धंधे,बैंक,बीमा कंपनियां इत्यादि खोले गए। प्रफुल्ल चंद्र राय ने बंगाल केमिकल्स एवं फार्मास्यूटिकल्स की स्थापना की।
    6. छात्रों ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया तथा स्वदेशी विद्यालय व अन्य शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की गई ,इसी समय सदगुरु दास बनर्जी द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा परिषद स्थापना की गई।
    7. बांग्ला साहित्य के लिए यह स्वर्णिम काल था रविंद्र नाथ टैगोर ने "आमार सोनार बांग्ला" गीत लिखा जो 1971 में बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान भी बना।
    8. अवनींद्रनाथ टैगोर ने स्वदेशी पारंपरिक कला से प्रेरणा लेकर चित्रकारी की शुरुआत की तथा परंपरागत लोकनाट्य शालाओं के द्वारा लोगों के बीच जागरूकता फैलाने का कार्य किया गया।
    9. इस आंदोलन में पहली बार महिलाओं ने सक्रिय भागीदारी की तथा धरना प्रदर्शन में भाग लिया।
    10. स्वदेशी आंदोलन केवल बंगाल तक ही सीमित नही रहा बल्कि इसने अखिल भारतीय स्वरूप ग्रहण कर लिया इस आंदोलन  के प्रसार में  बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय,बिपिन चंद्र पाल एवं अरविंद घोष ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
    11. दिल्ली में स्वदेशी आंदोलन का नेतृत्व सैयद हैदर रजा तथा मद्रास में चिदंबरम पिल्लै ने किया था।

    नोट:- बंगाल विभाजन 1911 ई० (दिल्ली दरबार) में वायसराय लार्ड हॉर्डिंग के समय रद्द कर दिया गया।

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