• 29.7.20

    क्रांतिकारी आंदोलन का प्रथम चरण

         क्रांतिकारी आंदोलन का प्रथम चरण
    जहां उदारवादी तथा उग्र राष्ट्रवादी ने अंग्रेजों के विरुद्ध अहिंसात्मक संघर्ष किया वही क्रांतिकारी राष्ट्रवादी का मुख्य उद्देश्य हिंसा के माध्यम से ब्रिटिश सरकार में डर पैदा करना था।
    उदय के कारण-
    1. ब्रिटिश सरकार की शोषणपरक एवं दमनकारी नीतियां
    2. उदारवादी नेताओं की असफलता तथा युवाओं का उनसे मोहभंग होना।
    3. भयंकर अकाल,प्लेग,भुखमरी के दौर में भी अंग्रेजों का निरंतर शोषण।
    4. लार्ड कर्जन की प्रतिक्रियावादी नीतियां।
    5. युवा वर्ग में शीघ्र परिणाम प्राप्त करने का जोश।
    6. बंगाल विभाजन के बाद स्वदेशी आंदोलन में युवा वर्ग ऊर्जा एवं शक्ति से परिपूर्ण था परन्तु स्वदेशी नेताओं इनकी ऊर्जा को सही दिशा में प्रयोग करने में असफल रहे।
    7. क्रांतिकारियों को बाल गंगाधर तिलक के द्वारा प्रारंभ किये गए गणेश उत्सव(1893) और शिवाजी उत्सव(1895)  से भी प्रेरणा मिली।
    8. विदेशी तत्वों की भूमिका- क्रांतिकारियों को आयरिश आतंकवादी तथा रूसी निहालिस्टो से भी हथियार उठाने की प्रेरणा मिली।

    क्रांतिकारियों के कार्यक्रम-
    1. अलोकप्रिय अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कर जनता का विश्वास जीतना।
    2. आत्मशक्ति एवं आत्मबलिदान/आत्मोत्सर्ग पर बल देना।
    3. लूटपाट,डकैती द्वारा धन एवं अस्त्र-शास्त्र एकत्र करना।
    4. हिंसात्मक गतिविधियों द्वारा सरकार को आंतकित करना तथा भारतीय जनता में अंग्रेजों का डर खत्म करना

    भारत में क्रांतिकारी आंदोलन की शुरुआत महाराष्ट्र से होती है तथा क्रांतिकारी राष्ट्रवाद का पिता वासुदेव बलवंत फड़के को माना जाता है।
    1897 में चापेकर बंधुओं( बालकृष्ण चापेकर तथा दामोदर चापेकर) द्वारा दो प्लेग कमिश्नर रैंड एवं एमहर्स्ट की पूना में हत्या कर दी जाती है।यह भारत में क्रांतिकारी आंदोलन की पहली घटना थी तथा रौलेट कमीशन द्वारा इस घटना को क्रांतिकारी आतंकवाद प्रथम विस्फोट कहा गया।भारत में यूरोपियों की यह पहली राजनीतिक हत्या थी।
    तिलक अपने पत्र केसरी में इस घटना की तुलना शिवाजी द्वारा अफजल खान की हत्या से की।
    नोट- 1896 में गुना में चापेकर बंधुओं ने "व्यायाम मंडल" की स्थापना की थी।
    मित्रमेला- महाराष्ट्र में 1899 में इस संगठन स्थापना की गई।
    अभिनव भारत- 1904 में वी.डी सावरकर द्वारा नासिक में इस गुप्त संगठन स्थापना की गई वास्तव में यह मित्रमेला का ही परिवर्तित रूप था। अभिनव भारत के क्रांतिकारी पांडुरंग महादेव रूसी निहालिस्टो से बम बनाने की तकनीक सीखने पेरिस गए थे।
    अभिनव भारत संस्था के प्रमुख सदस्य "अनन्त लक्ष्मण करकरे" ने नासिक के जिला मजिस्ट्रेट 'जैक्सन' की हत्या 1909 में कर दी, जिसके बाद इस हत्याकांड से जुड़े लोगों पर नासिक षड्यंत्र केस के तहत मुकदमा चलाया, इस केस में वी.डी.सावरकर पर भी आरोप लगाए गए तथा वी.डी.सावरकर और उनके भाई गणेश सावरकर को कालापानी की सजा देकर अंडमान भेज दिया गया।

                 बंगाल में क्रांतिकारी आंदोलन
    बंगाल क्रांतिकारी गतिविधियों का एक बड़ा केंद्र था। यहां पर क्रांतिकारी गतिविधियों की शुरुआत भद्रलोक समाज द्वारा की गई।
    1902 में ज्ञानेन्द्र नाथ बसु द्वारा मिदनापुर में गठित "अनुशीलन समिति" बंगाल का प्रथम क्रांतिकारी संगठन था तथा कलकत्ता में इस समिति को स्थापित करने का श्रेय पी.मित्रा को जाता है।
    ० अनुशीलन समिति का उद्देश्य 'खून के बदले खून' था।
    कलकत्ता में अनुशीलन समिति के प्रमुख सदस्य बारीन्द्र कुमार घोष और भूपेंद्र नाथ दत्त थे। बंगाल में क्रांतिकारी राष्ट्रवाद को बढ़ाने में बारीन्द्र कुमार घोष और भूपेंद्र नाथ दत्त का मुख्य योगदान था। 
    युगांतर- 1906 में युगांतर नामक गुप्त संस्था का गठन बारीन्द्र कुमार घोष और भूपेंद्र नाथ दत्त ने किया जो बंगाल में सक्रिय थी। खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी युगांतर के प्रमुख सहयोगी थे।यह संस्था बम बनाने में सक्रिय थी तथा इन्होंने "युगांतर" नामक साप्ताहिक पत्र के माध्यम से बंगाल में क्रांतिकारी विचारों को फैलाया।
    बारीन्द्र कुमार घोष(अरविंद घोष के भाई) ने अपनी पुस्तकों "भवानी मंदिर" और "वर्तमान रणनीति" के द्वारा क्रांतिकारी विचारों का प्रचार प्रसार किया।
    'संध्या' नामक पत्र ने भी अंग्रेजों के विरोध में मुख्य भूमिका निभाई।इस पत्र प्रकाशन ब्रह्मबांधव उपाध्याय ने किया था
    मुजफ्फरपुर बम कांड(अप्रैल 1908)- खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने मुजफ्फरपुर के जिला जज किंग्सफोर्ड की हत्या करने के उद्देश्य से उसकी बग्घी पर बम फेंका परंतु इसमें किंग्सफोर्ड बच गया लेकिन दुर्भाग्य से भारत समर्थक उसके सहयोगी केनेडी की पत्नी और पुत्री की मृत्यु हो जाती है। इस घटना के बाद खुदीराम बोस को पकड़कर फांसी दे दी जाती है तथा प्रफुल्ल चाकी आत्महत्या कर अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं।
    नोट:- खुदीराम बोस सबसे कम उम्र में फांसी(15 वर्ष) की सजा पाने वाले क्रांतिकारी थे।
    बंगाल में बढ़ती क्रांतिकारी घटनाओं को देखते हुए सरकार ने मानिकतल्ला पर छापा मारकर अवैध हथियार रखने के आरोप में 34 लोगों को गिरफ्तार किया जिसमें अरविंद घोष,बारीन्द्र घोष भी सम्मिलित थे इन सभी पर "अलीपुर षड्यंत्र" के तहत मुकदमा चलाया गया।
    इस केस में सरकारी गवाह 'नरेंद्र गोसाईं' बन गए ,जिनकी जेल में ही सत्येंद्र बोस और कन्हाई लाल दत्त ने गोली मारकर हत्या कर दी।
    चितरंजन दास के प्रयासों से अरविंद घोष जेल से रिहा हो गए और क्रांतिकारी जीवन छोड़कर पांडिचेरी चले गए और वहाँ "ऑरिविले आश्रम" की स्थापना कर आध्यात्मिक जीवन जीने लगे  तथा इन्होंने 'कर्मयोगिन' नामक पत्र अंग्रेजी में प्रकाशित किया।

    नोट:- 1.अरविंद घोष ने अपने समाचार पत्र "वंदे मातरम" के माध्यम से क्रांतिकारी विचारों को फैलाया था।
    2. माणिकतल्ला में बम बनाने का कारखाना हेमचंद्र कानूनगो द्वारा स्थापित किया गया था ,हेमचंद्र बम बनाने की कला सीखने पेरिस गए थे।


                       दिल्ली षड्यंत्र केस
    23 दिसंबर 1912 को राजधानी कलकत्ता से दिल्ली परिवर्तित होने के समय वायसराय लॉर्ड हार्डिंग द्वितीय पर दिल्ली में प्रवेश के समय बम फेंका गया। इसकी योजना रासबिहारी बोस ने बनाई थी।इस बमकांड को अंजाम मास्टर अमीर चंद, अवध बिहारी और बसंत कुमार विश्वास ने दिया। इस घटना के बाद दिल्ली षड्यंत्र केस के तहत मास्टर अमीर चंद, अवध बिहारी और बसंत कुमार विश्वास मुकदमा चलाकर फाँसी दे दी गयी। जबकि रासबिहारी बोस इस घटना के बाद जापान चले गए।

                  पंजाब में क्रांतिकारी आंदोलन
    क्रांतिकारी गतिविधियों से पंजाब भीअछूता नहीं रहा यहां पर अंग्रेजों के दमन और शोषण के खिलाफ संघर्ष किया गया।
    1904 में पंजाब में "भारत माता सोसायटी" की स्थापना जतिन मोहन चटर्जी द्वारा की जाती है। इसमें इनके सहयोगी लाला हरदयाल,अजीत सिंह और सूफी अंबा प्रसाद थे आगे चलकर यही लोग पंजाब में क्रांतिकारी आंदोलन को आगे बढ़ाते हैं।
    इस आंदोलन के विरोध में ब्रिटिश सरकार कठोर कार्यवाही प्रारंभ कर देती है तथा अजीत सिंह और लाला लाजपत राय को पंजाब से निर्वासित कर दिया जाता है। दूसरी तरफ लाला हरदयाल अमेरिका जाकर क्रांतिकारी गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं।
    आगे इस क्षेत्र में लाला अमीरचंद्र द्वारा क्रांतिकारी आंदोलन को आगे बढ़ाने का कार्य किया जाता है।
    ० लाहौर षड्यंत्र केस- क्रांतिकारियों द्वारा संपूर्ण उत्तर भारत में 21 फरवरी 1915 को क्रांति का एक साथ बिगुल बजाने की योजना बनाई गई परंतु इस योजना के बारे में अंग्रेजों को पहले ही पता लग जाता है और क्रांतिकारियों जैसे पृथ्वी सिंह,करतार सिंह तथा परमानंद आदि को गिरफ्तार कर उन पर लाहौर षड्यंत्र केस के तहत मुकदमा चलाया जाता है।

               मद्रास में क्रांतिकारी आंदोलन
    ० मद्रास में नीलकंठ ब्रह्मचारी और वंची अय्यर द्वारा "भारत माता समिति" नामक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की गई।
    जून 1911 में वंची अय्यर द्वारा तिरुनेलवेली के जिला मजिस्ट्रेट आशे की हत्या कर दी जाती है परंतु बाद में अय्यर आत्महत्या कर लेते हैं।

                      विदेशों में क्रांतिकारी आंदोलन
    क्रांतिकारी आंदोलन केवल भारत की सीमा तक ही सीमित नहीं रहे अपितु विदेशों में भी भारतीय क्रांतिकारियों ने क्रांति का बिगुल बजाया।
    श्यामजी कृष्ण वर्मा- इन्होंने ब्रिटेन में क्रांतिकारी आंदोलन के माध्यम से अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी तथा भारतीय क्रांतिकारियों की मदद की-
        ० इनके लंदन स्थित घर को "इंडिया हाउस" कहा जाता था।  
        ० इन्होंने 1905 में लन्दन में "इंडियन होमरूल सोसायटी" की स्थापना की थी।
        ० इनकी प्रसिद्ध पत्रिका 'इंडियन सोशियोलिस्ट' थी।
    इंडिया हाउस के सदस्य मदन लाल ढींगरा द्वारा जून 1909 में भारत सचिव के राजनीतिक सलाहकार 'कर्जन वाइली' की हत्या कर दी जाती है। जिसके आरोप में गिरफ्तार कर ढींगरा को फांसी दे दी गई।

    मैडम भीकाजी कामा
    मैडम भीकाजी कामा ने लंदन में रहकर क्रांतिकारियों की सहायता की।
    यह पारसी थी तथा इनके पति रुस्तमजी कामा थे।
    भीकाजी कामा दादा भाई नौरोजी की निजी सचिव भी थी।
    इन्होंने पेरिस में वंदे मातरम नामक पत्र से अपने विचारों को फैलाया।
    1907 में जर्मनी के स्टुटगार्ट में आयोजित द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस में भारत का प्रतिनिधित्व भीकाजी कामा ने किया था। यही इन्होंने प्रथम बार भारतीय राष्ट्रीय झंडे को फैराया था जिसका डिजाइन इन्होंने स्वयं तैयार किया था।
    मैडम भीकाजी कामा को भारतीय क्रांति की माता या जननी कहा जाता है।

                           गदर आंदोलन
    19 वीं शताब्दी के अंत में बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीय  अमेरिका और कनाडा में बस गए थे और यहां से क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया।
    1913 में सोहन सिंह भाकना ने "हिंद एसोसिएशन आफ अमेरिका" की स्थापना की तथा 1857 की क्रांति की स्मृति में 'गदर' नामक सप्ताहिक पत्र निकाला, इस पत्र के ही नाम पर इसका नाम 'गदर आंदोलन' पड़ा।
    गदर पत्रिका अंग्रेजों के विरुद्ध प्रचार-प्रसार करती थी तथा इसके ऊपर ही लिखा होता था - "अंग्रेजी राज का दुश्मन"
    गदर पार्टी की स्थापना "लाला हरदयाल" ने सैन फ्रांसिस्को में 1 नवंबर 1913 को की। इस पार्टी के अध्यक्ष सोहन सिंह भाकना थे।
    इस पार्टी के अन्य सहयोगी रामचंद्र, बरकतुल्ला,करतार सिंह सराबा तथा भाई परमानंद आदि थे।
    गदर पार्टी के प्रमुख उद्देश्य- विदेशों में रह रहे भारतीयों में अंग्रेज विरोधी भावना जगाना ,विदेशों में नियुक्त भारतीय सैनिकों के सहयोग से कार्य करना, ब्रिटिश सरकार विरोधी साहित्य का प्रकाशन ,हथियारों एवं धन का संग्रह तथा अंग्रेज अधिकारियों की हत्या करना आदि थे।
    गदर पार्टी के नेताओं ने विदेशों में रह रहे प्रवासी भारतीयों में क्रांतिकारी विचारों के बीज़ बोये।
    गदर पार्टी ने जैसे ही अपनी गतिविधियां प्रारंभ की वैसे ही 1914 में कामागाटामारू प्रकरण तथा प्रथम विश्व युद्ध ने गदर पार्टी के नेताओं को उत्तेजित कर दिया।
    इन घटनाओं के बाद गदर दल के नेताओं ने भारत में अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए उस पर आक्रमण की योजना बनाई तथा इसके लिए धन एवं अस्त्र-शस्त्र इकट्ठा करना प्रारंभ कर दिया। 21 फरवरी 1915 को अंग्रेजों के खिलाफ एक साथ विद्रोह की योजना थी।
    परंतु इस योजना के बारे में अंग्रेजों को पहले से ही पता चल गया और उन्होंने भारत रक्षा अधिनियम 1915 के अंतर्गत कार्यवाही करके विद्रोही नेताओं को गिरफ्तार कर लिया तथा उन्हें कड़ी सजाएं दी गईं जिससे यह आंदोलन समाप्त हो गया।
    नोट:- 1. गदर पत्र का प्रकाशन अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू ,पंजाबी ,गुजराती और मराठी भाषाओं में होता था।
          2. तारकनाथ दास ने " फ्री हिंदुस्तान" तथा रामनाथ पुरी ने "सर्कुलर ए आजादी" नामक पत्र प्रकाशित कर अंग्रेजों के विरुद्ध प्रचार किया था।

    अन्य आंदोलन
    1. यूरोप में 1915 में जर्मन सरकार के सहयोग से "जिम्मेरमैन योजना" के अंतर्गत "बर्लिन कमेटी फॉर इंडियन इंडिपेंडेंस" की स्थापना की गयी जिसमे मुख्य भूमिका भूपेंद्र नाथ दत्त,वीरेंद्र चट्टोपाध्याय,लाला हरदयाल आदि ने निभाई थी। जिसका प्रमुख उद्देश्य विदेशों में रहने वाले भारतीयों को अंग्रेजों के विरुद्ध संगठित करना तथा उन्हें भारत जाकर क्रांति करने के लिए प्रोत्साहित करना था।
    2. अफगानिस्तान के काबुल में राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नेतृत्व  में 1915 में देश के बाहर भारत की प्रथम निर्वासित सरकार (अस्थायी सरकार) का गठन किया जाता है जिसके राष्ट्रपति स्वयं राजा महेंद्र प्रताप बने तथा प्रधानमंत्री बरकतुल्ला को नियुक्त किया गया।

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