क्षेत्रीय राज्य एवं ब्रिटिश साम्राज्यवाद-
उत्तर मुगल काल में भारत में अनेक क्षेत्रीय राज्यों का उदय होता है जो स्वतंत्र प्रांत के रूप में उभरते हैं, दूसरी तरफ अंग्रेज अपनी व्यापारिक एवं राजनीतिक गतिविधियों को भारत में बढ़ा रहे होते हैं जिससे उनके हित इन क्षेत्रीय राज्यों से टकराते हैं और अंग्रेज एक-एक करके इन पर अपना आधिपत्य स्थापित करना प्रारंभ कर देते हैं और धीरे धीरे सभी राज्यों को अपने अधीन कर लेते हैं। इनमें सबसे पहले बंगाल राज्य आता है-
बंगाल राज्य-
मुगलों के समय में बंगाल एक समृद्ध प्रान्त/सूबा था जिसके अंतर्गत बंगाल, बिहार और उड़ीसा के क्षेत्र सम्मिलित थे। मुगल शासक एक सूबेदार के माध्यम से यहां पर शासन करते थे औरंगजेब के समय में यहां का सूबेदार अजीमुशान था इसके अतिरिक्त वित्तीय कार्यों को देखने के लिए दीवान की नियुक्ति की जाती थी जो कि उस समय मुर्शिद कुली खां था।
1. वर्ष 1717 ई० में मुगल शासक फर्रूखसियर के द्वारा मुर्शिद कुली खां को बंगाल का सूबेदार बनाया जाता है, मुर्शिद कुली खां मुगल सम्राट द्वारा नियुक्त अंतिम सूबेदार/नबाब था जो यहां का वास्तविक और स्वतंत्र शासक बन बैठता है परंतु वह मुगल शासक को राजस्व अदायगी करता रहता है।
2. मुर्शीद कुली खान(1717- 27 ई०) बंगाल का शक्तिशाली नवाब था जिसने अनेक सुधार किए-
० छोटे जमीदारों की भूमि को खालसा भूमि घोषित किया
० किसानों के लिए तकावी ऋण देना
० कर व्यवस्था को सुदृढ़ करना
० इजारेदारी व्यवस्था की शुरुआत की
० राजधानी को ढाका से मुर्शिदाबाद स्थानांतरित करना।
5. 1717 ई० में ही फर्रूखसियर द्वारा एक शाही फरमान अंग्रेजों के लिए जारी किया जाता है जिसके अंतर्गत अंग्रेज 3000 रुपये वार्षिक कर देकर बंगाल में मुक्त व्यापार करने का दस्तक/पास प्राप्त कर लेते हैं।
6. इस दस्तक का अंग्रेजो के द्वारा दुरुपयोग किया जाने लगा जिसके अंतर्गत कंपनी के कर्मचारी निजी व्यापार करने लगे और दस्तक को भारतीय व्यापारियों के लिए बेच देते थे जिससे बंगाल में व्यापार सम्बन्धी अनेक समस्याएं उत्पन्न होने लगी और नवाब को राजस्व हानि होती थी लेकिन मुर्शिद कुली खां से लेकर अली वर्दी खां तक किसी नबाब ने यह जानते हुए भी कि इससे राजस्व हानि होती है ,इसका विरोध नहीं किया।
7. मुर्शीद कुली खान के बाद शुजाउद्दीन(1727- 39 ई०) नवाब बनता है जिसके बाद सरफराज(1739- 40 ई०)।
8. सरफराज की हत्या बिहार के नायब सूबेदार अलीवर्दी खां द्वारा 1740 में गिरिया के युद्ध में कर दी जाती है और अली वर्दी खां बंगाल का नवाब बन जाता है।
9. अलीवर्दी खां(1740- 56 ई०) ने अंग्रेजों की तुलना मधुमक्खी के छत्ते से की और कहा कि अगर इनको प्यार से सहलाते रहो तो यह शहद देंगे और यदि छेड़ोगे तो यह खतरनाक होकर बर्बाद कर देंगे। इसने अंग्रेजों को स्थाई दुर्ग बनाने की अनुमति प्रदान कर दी थी।
10. अली वर्दी खां के बाद उसकी पुत्री का पुत्र सिराजुद्दौला(1756- 57 ई०) बंगाल का नवाब बनता है। इसने प्रारंभ से ही अंग्रेजों को दिए जाने वाले दस्तक/पास का विरोध किया। सिराज को अपने परिवार एवं कुलीन वर्ग से संघर्ष करना पड़ा था।
11. सिराज ने फ्रांसीसियों(चंद्रनगर में) तथा अंग्रेजों(फोर्ट विलियम में) द्वारा अपनी बस्तियों में की जा रही किलेबंदी को रोकने के लिए कहा। इसके आदेश का फ्रांसीसियों ने पालन किया और चंद्रनगर की किलेबंदी को रोक दिया, परंतु अंग्रेजों ने अपनी किलेबंदी को नहीं रोका।
12. सिराज ने इस आज्ञा के उल्लंघन के लिए जून 1756 ईस्वी में फोर्ट विलियम पर आक्रमण कर उसे अपने अधिकार में ले लिया तथा अंग्रेजों को भागकर फुल्टा द्वीप पर शरण लेनी पड़ी।
13. इसी समय ब्लैक होल की घटना होती है जिसका वर्णन जॉन होल्वेल द्वारा किया गया है उसके अनुसार सिराजुद्दौला ने 20 जून 1956 को146 अंग्रेजों को एक छोटे कमरे में बंद कर दिया और जब 3 दिन बाद दरवाजा खोला तो उसमें केवल 23 लोग ही जीवित बचे थे इस घटना को ब्लैक होल नाम दिया गया है।
14. रॉबर्ट क्लाइव और वाट्सन जनवरी 1757 में फोर्ट विलियम(कलकत्ता) पर पुनः कब्जा कर लेते हैं और फरवरी 1757 में अंग्रेजों और सिराजुद्दौला के बीच अलीनगर की संधि होती है जिसके तहत अंग्रेजों को अपने सिक्के चलाने, एक दूसरे के मामले में हस्तक्षेप न करने और बंगाल में अंग्रेजों को मुक्त व्यापार की अनुमति की बात इस संधि में की जाती है। परंतु इसके बाद अंग्रेज सिराज के खिलाफ षड्यंत्र करने लगे और उन्होंने सिराज की मौसी घसीटी बेगम ,सेनापति मीर जाफर, दीवान रायदुर्लभ,व्यापारी अमीनचंद और बैंकर जगत सेठ आदि को अपने पक्ष में मिला लिया। अब दोनों पक्षों के बीच एक युद्ध के बादल मंडराने लगे थे।
प्लासी का युद्ध(23 जून 1757)-
1.प्लासी पश्चिम बंगाल में हुगली नदी के किनारे स्थित था।
2. इसमें अंग्रेजों का नेतृत्व रॉबर्ट क्लाइव ने किया था।
3. दूसरी तरफ बंगाल का नवाब सिराजुद्दौला था जिसकी कुछ मदद फ्रांसीसियों ने की थी।
4. इस युद्ध का प्रमुख कारण आर्थिक था जिसके अंतर्गत कम्पनी की बढ़ती राजनीतिक एवं आर्थिक महत्वाकांक्षाएं, उनके द्वारा दस्तक का दुरूपयोग करना,बुलियन की प्राप्ति आदि थे। तात्कालिक कारणों में अलीनगर की संधि का उल्लंघन कर अंग्रेजों द्वारा फ्रांसीसी क्षेत्र चंद्रनगर पर आक्रमण करना था।
5. इस युद्ध में सिराजुद्दौला की हार हुई जिसका प्रमुख कारण क्लाइव के द्वारा षड्यंत्र रचकर सिराज के सेनापति मीरजाफर, दीवान राय दुर्लभ ,व्यापारी अमीन चंद आदि को अपने पक्ष में पहले से ही मिला लेना था।इसके अतिरिक्त सैन्य अयोग्यता,नबाब का युद्ध मैदान से भाग जाना आदि थे।
6. इस युद्ध में सिराज के दो सेनानायक मीर मदान और मोहनलाल सिराज के प्रति वफादार रहें परंतु अंग्रेजों द्वारा मार दिए गए।अन्ततः सिराजुद्दौला को पकड़कर बंदी बना लिया गया और उसे गोली मार दी गई।
7. यह युद्ध भारतीय इतिहास में निर्णायक साबित हुआ और इसके बाद बंगाल के आर्थिक संसाधनों पर अंग्रेजों का नियंत्रण स्थापित हो गया तथा मीर जाफर को एक कठपुतली नवाब के रूप में स्थापित कर दिया गया जिसने 24 परगना क्षेत्र की जमींदारी अंग्रेजों को दे दी तथा उसने 1करोड़ 70 लाख रुपए कंपनी को तथा 20 लाख रुपए क्लाइव को दिये।
प्लासी युद्ध के बाद मीर जाफर(1757- 60 ई०) को नया नवाब बनाया गया जो मात्र कठपुतली नवाब था और अंग्रेजों उससे निरंतर वसूली करने लगे जब वह अंग्रेजों की अनुचित मांगों को पूरा नहीं कर पाया तब उसे हटाकर मीरकासिम को नया नवाब बना दिया।
मीरकासिम(1760- 63 ई०)-
मीर कासिम अंग्रेजों से समझौता कर नबाब बना था कि यदि वह नवाब बना तो अंग्रेजों को और भी ज्यादा रियायतें देगा परंतु वह मीर जाफर की तुलना में योग्यता सिद्ध हुआ।जिसने निम्नलिखित कार्य किये-
० राजधानी को मुर्शिदाबाद से मुंगेर स्थानांतरित किया जिससे वह अंग्रेजों के षड्यंत्र से बच सकें।
० भारतीय व्यापारियों को भी रियायतें देना शुरू किया।
० करव्यवस्था में सुधार कर आर्थिक सुधार किए।
उसके इन कार्यों से अंग्रेज खुश नहीं थे इसी दौरान 1763 ई० में एलिस नामक अंग्रेज अधिकारी ने पटना पर आक्रमण कर दिया जवाब में मीरकासिम ने पटना पर हमला बोलकर अंग्रेजों को हरा दिया और पटना पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। इस घटना से रुष्ट होकर अंग्रेजों ने मीर कासिम को नवाब के पद से हटा दिया और 1763 ई ० में मीर जाफर को पुनः नबाब बनाया जो 1765 तक नबाब बना रहा।
बक्सर का युद्ध(22 अक्टूबर 1764 ई०)-
नवाब पद से हटाए जाने के बाद मीर कासिम अंग्रेजों से बदला लेने के लिए अवध के नवाब शुजाउद्दौला से मिलता है वहीं पर उसकी मुलाकात मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय से होती है और तीनों मिलकर अंग्रेजो के खिलाफ मोर्चा तैयार करने के लिए सहमत हो जाते हैं।
इस प्रकार इस युद्ध में एक तरफ मीर कासिम,शुजाउद्दौला तथा शाहआलम द्वितीय था तो दूसरी तरफ अंग्रेजी सेना 'हेक्टर मुनरो' के नेतृत्व में युद्ध कर रही थी।
यह युद्ध बिहार में बक्सर नामक स्थान पर लड़ा गया जिसमें अंग्रेजों की सेना ने मीर कासिम एवं उसके सहयोगियों को परास्त कर दिया। यह युद्ध भारतीय इतिहास में युगान्तकारी साबित हुआ क्योंकि इसमें अंग्रेजों ने बंगाल,अवध एवं मुगल सत्ता को परास्त किया तथा अब यह निश्चित हो गया था कि अंग्रेज भारत से जाने वाले नहीं है और अंग्रेजों ने भारत में अपनी प्रभुसत्ता स्थापित कर दी, इस दृष्टि से बक्सर का युद्ध ,प्लासी से अधिक महत्वपूर्ण युद्ध सिद्ध हुआ। प्लासी का युद्ध जहां एक षड्यंत्र था वहीं बक्सर का युद्ध अंग्रेजों की सैनिक विजय थी।
इलाहाबाद की संधि(1765 ई०)-
बक्सर युद्ध के बाद इलाहाबाद की संधि होती है जिसमें दो संधियां सम्मिलित होती हैं-
प्रथम- अंग्रेजों एवं मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय के बीच संधि, जिसके अंतर्गत अंग्रेजों को बंगाल,बिहार एवं उड़ीसा का क्षेत्र दे दिया जाता है तथा इलाहाबाद और कड़ा का क्षेत्र(जो अवध प्रान्त का हिस्सा था) मुगलों को दे दिया जाता है इसके अतिरिक्त 26 लाख पेंशन मुगल बादशाह को देना तय हुआ।
द्वितीय- अंग्रेजों एवं अवध के नवाब के बीच संधि,जिसके अंतर्गत अवध के नवाब को 50 लाख रुपए क्षतिपूर्ति के रूप में अंग्रेजों को देने पड़े तथा इलाहाबाद और कड़ा के क्षेत्र मुगलों को देने पड़े।
इलाहाबाद की संधि के बाद बंगाल का नवाब नज़मुद्दौला को बनाया जाता है जो कि नाम मात्र का नवाब था तथा सारी शक्तियां कंपनी के पास थी।
इस प्रकार 1765 ईस्वी में बंगाल में द्वैध शासन अर्थात दोहरे शासन की व्यवस्था प्रारंभ होती है जिसकी शुरुआत रॉबर्ट क्लाइव द्वारा की जाती है जिसके अंतर्गत सभी अधिकार जैसे भू राजस्व एवं दीवानी का अधिकार कंपनी के पास था जबकि उत्तरदायित्व एवं प्रशासन का भार नवाब के पास था। यह व्यवस्था बंगाल में 1772 ईस्वी तक चलती रही, वारेन हेस्टिंग्स ने इसका अंत किया।
No comments:
Post a Comment