क्रांतिकारी राष्ट्रवाद का द्वितीय चरण
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान लगभग 1922 से लेकर 1930-31 तक क्रांतिकारी राष्ट्रवाद का द्वितीय चरण दिखाई देता है जो कि लगभग असहयोग आंदोलन के बाद लेकर सविनय अवज्ञा आंदोलन के के बीच का समय था।
उदय के कारण:-
1. असहयोग आंदोलन के बाद राजनीतिक गतिविधियों का अभाव एवं युवा वर्ग में उत्पन्न निराशा।
नोट:- 1919 के बाद जेलों से रिहा किए गए क्रांतिकारियों एवं युवा वर्ग ने बढ़ चढ़कर असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया था परंतु गांधी जी द्वारा इस आंदोलन को एकाएक वापस लिए जाने के कारण यह युवा वर्ग निराश एवं दिशाहीन हो गया।
2. प्रथम विश्व युद्ध के बाद उत्पन्न मजदूर वर्ग एवं श्रमिक संगठनों को क्रांतिकारियों द्वारा राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ना।
3. विभिन्न क्रांतिकारी विचारों से युक्त पत्र-पत्रिकाओं से प्रेरित होना जैसे बिजली,आत्मशक्ति आदि।
नोट:- इन युवाओं को शरद चंद्र चटर्जी के "पाथेर दबी' और सचिन सान्याल के "बंदी जीवन" में बहुत प्रभावित किया।
4. 1917 की रूसी क्रांति से प्रेरणा लेना।
5. द्वितीय चरण का क्रांतिकारी आंदोलन समाजवाद, मार्क्सवाद एवं सर्वहारा सिद्धांतों से बहुत अधिक प्रभावित था और इस समय विश्व एवं देश में इन विचारधाराओं का प्रभाव अधिक था।
6. युगांतर तथा अनुशीलन जैसी समितियों का बंगाल में प्रादुर्भाव।
इस चरण में क्रांतिकारियों की दो शाखाएं मुख्य रूप से विकसित हुई जिसमें एक शाखा पंजाब,संयुक्त प्रांत और बिहार में कार्यरत थी तथा दूसरी शाखा बंगाल से संबंधित थी। इस समय क्रांतिकारियों ने विभिन्न संगठनों के माध्यम से अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया।
पंजाब,संयुक्त प्रांत और बिहार में क्रांतिकारी आंदोलन
उत्तर भारत में क्रांतिकारियों ने संगठन बनाकर अंग्रेजो के खिलाफ मोर्चा खोल दिया-
हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन(HRA)
1. इसकी स्थापना उत्तर प्रदेश के कानपुर में 1924 में हुई।
2. इसके संस्थापक सचिंद्र सान्याल और योगेश चटर्जी थे।
3. इसके अतिरिक्त भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और भगवती चरण बोहरा इस संगठन से जुड़े हुए थे।
4. इस संगठन मुख्य उद्देश्य-
० गांधीजी के अहिंसात्मक आंदोलन एवं नीतियों का विरोध करना।
० सशस्त्र क्रांति के माध्यम से औपनिवेशिक सत्ता को उखाड़ फेंकना।
० भारत में संघीय गणतंत्र के रूप में संयुक्त राज्य भारत की स्थापना करना।
5. इस संगठन के द्वारा अपने क्रांतिकारी विचारों के प्रचार के लिए 1925 में "रिवॉल्यूशनरी" नामक एक पर्चा भी निकाला गया।
नोट:- भगवती चरण वोहरा ने "फिलासफी आफ बम" नामक पुस्तक लिखी थी।
काकोरी कांड(9 अगस्त 1925)
1. हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्यों द्वारा क्रांतिकारी गतिविधियों के संचालन के लिए धन इकट्ठा करने के उद्देश्य से काकोरी नामक स्थान पर सहारनपुर लखनऊ पैसेंजर(8 डाउन) ट्रेन के सरकारी खजाने को लूट लिया गया।
2. इस कांड में मुख्य रूप से राम प्रसाद बिस्मिल अशफाक उल्ला खां,राजेंद्र लाहिड़ी, चंद्रशेखर आजाद, ठाकुर रोशन सिंह जैसे क्रांतिकारी सम्मिलित थे।
3. इस घटना के बाद सरकार द्वारा क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर उन्हें फांसी एवं लंबी सजाएं दी गई।
4. राम प्रसाद बिस्मिल(गोरखपुर में), अशफाक उल्ला खान( फैजाबाद में) ,ठाकुर रोशन सिंह(नैनी, इलाहाबाद में) तथा राजेंद्र लाहिड़ी(गोंडा में) फांसी पर लटका दिया गया।
5. अशफाक उल्ला खां देश की आजादी के लिए फांसी पाने वाले प्रथम मुसलमान थे।
नोट:- इस घटना में चंद्रशेखर आजाद ऐसे व्यक्ति थे जो गिरफ्तार नहीं किये जा सके।
काकोरी कांड की जांच स्कॉटलैंड के इंस्पेक्टर तसदुदुक हुसैन ने की थी तथा इसकी सरकारी वकील जगत नारायण मुल्ला थे।
काकोरी की घटना के बाद हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन सरकार समाप्त हो जाता है।
हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन(HSRA)
1. 1928 में दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में इस संगठन की स्थापना की जाती है वास्तव में यह हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का पुनर्गठित रूप था।
2. इस संगठन की स्थापना में चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह प्रमुख भूमिका निभाई थी।
3. इसके अन्य सक्रिय सदस्य शिव वर्मा, विजय कुमार सिन्हा जयदेव कपूर, भगवती चरण वोहरा,सुखदेव आदि थे।
4. इस संगठन का प्रमुख उद्देश्य समाजवादी लोकतंत्र की स्थापना करना तथा क्रांतिकारी गतिविधियों द्वारा अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकना था।
सांडर्स हत्याकांड (17 दिसंबर 1928)
1. भगत सिंह ,चंद्रशेखर आजाद और राजगुरु द्वारा लाहौर रेलवे स्टेशन पर सहायक पुलिस अधीक्षक सांडर्स की हत्या कर दी जाती है।
2. सांडर्स की हत्या लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए की जाती है क्योंकि साइमन कमीशन का विरोध कर रहे लाला जी पर पुलिस द्वारा लाठियां बरसाई जाती है जिससे उनकी मौत हो जाती है।
नोट:-क्रांतिकारियों द्वारा लाला जी की मृत्यु के जिम्मेदार "जेम्स ए स्कॉट' की हत्या की योजना बनाई गई थी परंतु इसमें लाठीचार्ज के दौरान सहायक रहे पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या हो जाती है।
सेंट्रल असेंबली बम कांड (8 अप्रैल 1929)
1. भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा दिल्ली में सेंट्रल असेंबली में अंग्रेजों तक क्रांतिकारियों की बात पहुंचाने के उद्देश्य से बम फेंका तथा इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए।
2. जिस समय सेंट्रल असेंबली में बम फेंका गया उस समय पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल पर चर्चा चल रही थी।
इस घटना के बाद भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त एवं अन्य क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया जाता है।
लाहौर षड्यंत्र केस
1. सेंट्रल असेंबली घटना और सांडर्स की हत्या के बाद क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर उन पर लाहौर षड्यंत्र केस के तहत मुकदमा चलाया गया।
2. इस दौरान जेल में क्रांतिकारियों द्वारा राजनीतिक बंदी की मांग के लिए भूख हड़ताल की गई जिसके कारण जतिन दास की 64 वे दिन भूख हड़ताल के कारण मृत्यु हो जाती है।
3. इस केस के अंतर्गत सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु को 23 मार्च 1931 को फांसी की सजा दी गई।
इन क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सेंट्रल असेंबली बम कांड के कारण नहीं हुई थी, अपितु लाहौर की घटना के कारण यह सजा दी गई।
नोट:- चंद्रशेखर आजाद को अंग्रेज सरकार गिरफ्तार नहीं कर सकी और 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क अंग्रेजों से मुठभेड़ के दौरान चंद्रशेखर आजाद शहीद हो गए।
नोट:- भारत नौजवान सभा नामक क्रांतिकारी की स्थापना भगत सिंह और यशपाल ने 1926 में की थी जिसका प्रमुख उद्देश्य देश के युवाओं को क्रांतिकारी गतिविधियों एवं देशभक्ति के प्रति जागरूक करना तथा किसान एवं मजदूरों के राज्य की स्थापना करना था।
बंगाल में क्रांतिकारी आंदोलन
इस दौरान बंगाल में भी क्रांतिकारियों द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष किया गया-
इंडियन रिपब्लिकन आर्मी
1. इसकी स्थापना 1930 में चटगांव में "सूर्यसेन" द्वारा की गई जो "मास्टर दा" के नाम से प्रसिद्ध थे।
2. इस संगठन का मुख्य उद्देश्य सशस्त्र विद्रोह के माध्यम से अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकना था।
3. इसके लिए उन्होंने चटगांव स्थित पुलिस तथा सैनिक शस्त्रागार को लूटने एवं रेल,तार,डाक आदि व्यवस्थाओं को ध्वस्त करने की योजना बनाई
4. चटगांव आर्मरी रेड- 18 अप्रैल 1930 को चटगांव के पुलिस शस्त्रागार पर गणेश घोष के नेतृत्व में हमला कर उसे लूट लिया गया तथा लोकीनाथ बाउल के नेतृत्व में सैनिक शस्त्रागार पर कब्जा करके हथियारों को लूट लिया गया परंतु यहां से गोला बारूद प्राप्त नहीं हो सके।
नोट:- इन क्रांतिकारी गतिविधियों में महिलाओं ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया, जिसमें प्रीतिलता वाडेकर तथा कल्पना दत्त का नाम प्रमुख है।
5. इस प्रकार चटगांव में विजय हासिल कर मास्टर सूर्यसेन ने अंतरिम सरकार का गठन किया जिसके राष्ट्रपति स्वयं सूर्यसेन बने।
6. इस घटना के बाद अंग्रेजों द्वारा क्रांतिकारियों के विरुद्ध तीव्र कार्रवाई की गयी तथा सूर्यसेन को 1933 में गिरफ्तार कर लिया गया।
7. 12 जनवरी 1934 को सूर्यसेन को फांसी पर लटका दिया गया तथा इनके साथ तारकेश्वर दत्त को भी फांसी की सजा हुई थी।
प्रथम तथा द्वितीय चरण के क्रांतिकारी राष्ट्रवाद में अंतर
1. प्रथम चरण की क्रांतिकारी व्यक्तिगत आत्मोत्सर्ग, व आत्मबलिदान में विश्वास करते थे जबकि द्वितीय चरण के क्रांतिकारी संगठनात्मक शक्ति में विश्वास करते थे।
2. प्रथम चरण में अलोकप्रिय अंग्रेज अधिकारियों की हत्या व हथियारों की लूट,डकैती आदि पर अधिक बल दिया गया जबकि द्वितीय चरण में इन पर अपेक्षाकृत कम बल दिया गया।
3. प्रथम चरण के क्रांतिकारियों की अंग्रेजों को हटाने के बाद की भविष्य की योजना धूमिल थी जबकि द्वितीय चरण के क्रांतिकारी समाजवादी लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना करना चाहते थे।
4. प्रथम चरण के क्रांतिकारियों ने अपना जनाधार नहीं बढ़ाया जबकि द्वितीय चरण के क्रांतिकारियों ने किसानों और मजदूरों के संघर्षों की बात कर उन्हें अपने आंदोलन से जोड़ा।
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