1. साइमन कमीशन 1919 के भारत परिषद अधिनियम में यह प्रावधान किया गया था कि इस अधिनियम की समीक्षा के लिए 10 वर्ष बाद एक आयोग का गठन किया जाएगा इसी के अंतर्गत ब्रिटिश सरकार द्वारा नवंबर 1927 में साइमन कमीशन(जिसे विधिक आयोग भी कहते हैं) का गठन किया गया।
नोट:- दो वर्ष पहले साइमन कमीशन का गठन होने का प्रमुख कारण तत्कालीन कंजरवेटिव पार्टी की सरकार को यह अहसास था कि अगले चुनाव में उनकी हार हो सकती है और लेबर पार्टी सत्ता में आ सकती है जो भारत की प्रति उदार नजरिया रखती थी।
2. साइमन कमीशन में कुल 7 सदस्य थे तथा इसके अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे। इन सदस्यों में ही एक क्लीमेंट रिचर्ड एटली थे जो आगे चलकर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनते हैं।
3. इस कमीशन के सातों सदस्य अंग्रेज थे इसलिए इसे श्वेत कमीशन भी कहा जाता है तथा किसी भारतीय को इसमें सदस्य नहीं बनाया गया था ,जो कि भारत में इसके विरोध का प्रमुख कारण था।
4. इसके साथ ही यह आत्म निर्णय के सिद्धांत का खुला उल्लंघन था ,इसलिए इसका पूरे भारत में विरोध किया गया।
5. दिसंबर 1927 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन मद्रास में होता है जिसकी अध्यक्षता एम.ए.अंसारी द्वारा की जाती है इस अधिवेशन में साइमन कमीशन का प्रत्येक स्तर पर विरोध करने का निर्णय लिया गया।
6. फरवरी 1928 साइमन कमीशन सबसे पहले बम्बई आया जिसका यहाँ व्यापक स्तर पर विरोध किया गया तथा "साइमन वापस जाओ" के नारे लगाए और उसी स्थान स्थान पर काले झंडे दिखाकर विरोध प्रकट किया गया।
7. साइमन कमीशन का विरोध पूरे भारत में चरम स्तर पर पहुंच गया लाहौर में इसके विरोध का नेतृत्व लाला लाजपत राय कर रही थे, इसको दबाने के लिए सांडर्स ने लाठीचार्ज कर दिया जिसमें घायल होकर नवम्बर 1928 में लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई। इसका बदला भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और राजगुरु द्वारा सांडर्स की हत्या करके लिया जाता है।
8. इन विरोधों के बावजूद 27 मई 1930 को साइमन कमीशन की रिपोर्ट प्रकाशित होती है जिसकी सिफारिशे इस प्रकार थी-
० प्रांतों में लागू द्वैध शासन व्यवस्था को समाप्त कर केंद्रीय शासन व्यवस्था लाई जाए।
० प्रांतों में उत्तरदायी सरकार की स्थापना की जाए।
० भारत के लिए संघीय संविधान बनाया जाए।
० प्रांतीय विधानमंडलों में सदस्यों की संख्या में वृद्धि की जाए।
० गवर्नर जनरल तथा गवर्नर अल्पसंख्यकों के हितों का विशेष ध्यान रखें।
साइमन कमीशन द्वारा प्रस्तुत सिफारिशों पर विचार करने के लिए गोलमेज सम्मेलनों का आयोजन किया गया।
नोट:- मद्रास की जस्टिस पार्टी ,पंजाब की यूनियनिस्ट पार्टी तथा मोहम्मद सफी के नेतृत्व वाले वाली मुस्लिम लीग(सम्पूर्ण मुस्लिम लीग नहीं) ने साइमन कमीशन का समर्थन किया था।
नेहरू रिपोर्ट(1928)
1. देशभर में साइमन कमीशन के विरोध को देखते हुए तत्कालीन भारत सचिव लॉर्ड बर्किनहेड ने भारतीयों को चुनौती दी कि वह एक ऐसा संविधान या कानून बनाकर दिखाएं जिस पर सम्पूर्ण भारतीय जनता एवं सभी दलों की सहमति हो।
2. बर्किनहेड की इसी चुनौती को स्वीकार करते हुए कांग्रेस ने फरवरी 1928 में दिल्ली में एम.ए.अंसारी की अध्यक्षता में एक सर्वदलीय बैठक बुलाई जिसमें 29 दलों ने भाग लिया।
3. दूसरा सर्वदलीय सम्मेलन बम्बई में हुआ, इस बैठक के बाद मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता एक 8 सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया, जिसे "नेहरू कमेटी" कहते हैं इसके सदस्यों में सुभाष चंद्र बोस, तेज बहादुर सप्रू, एम.एस.अणे,सरदार मंगरु सिंह,जी.एस.प्रधान,अली इमाम और शोएब कुरैशी थे।
4. इस कमेटी का सचिव जवाहरलाल नेहरू को बनाया गया था।
5. इस कमेटी का मुख्य उद्देश्य देश के लिए एक नया कानून या संविधान का प्रारूप तैयार करना था।
6. इस कमेटी द्वारा अगस्त 1928 में लखनऊ के सर्वदलीय सम्मेलन में अपनी रिपोर्ट सौंपी गयी जिसे सभी ने स्वीकृत कर लिया परंतु बाद में कुछ पार्टियों एवं समुदायों द्वारा इसका विरोध किया जाने लगा।
7. नेहरू रिपोर्ट के प्रमुख सुझाव-
० भारत को डोमिनियन स्टेट का दर्जा प्रदान करना।
० 19 मौलिक अधिकारों को संविधान में शामिल किया जाए।
० केंद्र तथा राज्यों में पूर्ण उत्तरदाई सरकार की स्थापना।
० सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली के स्थान पर संयुक्त निर्वाचन प्रणाली लागू की जाए।
० भाषाई आधार पर प्रांतों का गठन किया जाए।
० केंद्र में द्विसदनात्मक प्रणाली की स्थापना हो जिसमें निम्न सदन का चुनाव प्रत्यक्ष रुप से और उच्च सदन का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से किया जाए।
० सिंध को बम्बई से अलग करके अलग प्रान्त बनाया जाए।
6. नेहरू रिपोर्ट में डोमिनियन स्टेट के दर्जे की मांग की गई थी जबकि कांग्रेस की वामपंथी विचारधारा से संबंधित सुभाष चंद्र बोस और जवाहरलाल नेहरू "पूर्ण स्वतंत्रता" की मांग पर अड़े थे।
नोट:- सुभाष चन्द्र बोष और जवाहर लाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज की मांग को लेकर नवंबर 1928 में "ऑल इंडिया इंडिपेंडेंस लीग" की स्थापना की गई।
7. नेहरू रिपोर्ट से हिंदू महासभा, मुस्लिम लीग( संयुक्त निर्वाचन प्रणाली को लेकर विरोध) तथा सिख समुदाय के लोग संतुष्ट नहीं थे।
इन परिस्थितियों में दिसंबर 1928 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन(अध्यक्ष- मोतीलाल नेहरू) में निर्णय लिया गया कि अंग्रेज़ भारत को एक वर्ष के भीतर डोमिनियन स्टेट का दर्जा प्रदान करें अन्यथा सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ कर दिया जाएगा।
जिन्ना की 14 सूत्रीय मांगे(जिन्ना फार्मूला)
नेहरू रिपोर्ट की संयुक्त निर्वाचन प्रणाली एवं अन्य कुछ मांगों से जिन्ना संतुष्ट नहीं थे और उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर मार्च 1929 में लीग की दिल्ली में बैठक बुलाई जिसमें अपनी 14 सूत्रीय मांगें रखी जिन्हें जिन्ना फार्मूला कहा जाता है-
1. प्रांतों को स्वायत्तता प्रदान की जाए।
2. अवशिष्ट शक्तियां प्रांतों के पास रहें।
3. पृथक निर्वाचन को बनाये रखा जाना चाहिए।
4. केंद्रीय विधानमंडल में मुस्लिमों को एक तिहाई सीटें प्रदान की जाएं।
5. कोई ऐसा प्रस्ताव जिससे किसी धर्म विशेष के लोग प्रभावित होते हो तो उस समुदाय के दो तिहाई लोगों की सहमति के बाद ही इसे पास किया जाना चाहिए।
6. सरकारी सेवाओं में मुस्लिमों को उचित अवसर प्रदान करना।
7. सभी विधान मंडलों और निर्वाचित निकायों का पुनर्गठन कर उसमें अल्पसंख्यकों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया जाए।
8. केंद्रीय तथा प्रांतीय मन्त्रिमंडलों में भी मुस्लिमों को एक तिहाई आरक्षण मिले।
9. सभी संप्रदायों को धर्म ,पूजा, आचार विचार के प्रसार की स्वतंत्रता प्रदान की जाए।
10. भविष्य के संविधान में मुसलमानों की धर्म ,संस्कृति शिक्षा व भाषा के समुचित विकास को सुनिश्चित किया जाए।
11. सिंध को बम्बई प्रांत से अलग कर दिया जाए।
12. केंद्रीय सभा संविधान संशोधन तभी कर सकती है जब उसे राज्यों की स्वीकृति मिल जाए।
13. पंजाब ,बंगाल तथा पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत का पुनर्गठन इस तरह से हो कि वहां मुस्लिम अल्पसंख्यक ना होने पाएं।
14. पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत तथा बलूचिस्तान में संवैधानिक सुधार लागू किए जाएं।
इस प्रकार जिन्ना की मांग नेहरू रिपोर्ट और कांग्रेस के विरुद्ध थी जिसकी सभी मांगों को स्वीकार किया जाना संभव नहीं था।
कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन
1. दिसंबर 1929 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन रावी नदी के तट पर स्थित लाहौर में हुआ जिसकी अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू ने की।
2. एक ऐतिहासिक अधिवेशन था जिसमें "पूर्ण स्वराज" का लक्ष्य रखा गया और प्रत्येक वर्ष 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाने का निर्णय लिया गया।
नोट:- 26 जनवरी 1930 को रावी नदी के तट पर प्रथम स्वतंत्र दिवस मनाया गया।
3. इसी अधिवेशन के द्वारा एक नागरिक अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने की अनुमति प्रदान की गई।
इस प्रकार नेहरू रिपोर्ट बिना किसी निष्कर्ष के महत्वहीन हो जाती है और अब राष्ट्रीय आंदोलन का लक्ष्य पूर्ण स्वतंत्रता हो जाता है।
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