जैन धर्म की प्रमुख विशेषताएं-
जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए हैं जिसमें अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी को ही जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
महावीर स्वामी का जीवन परिचय
बचपन का नाम -बर्धमान
जन्म तिथि : 540 या 599 ईसा पूर्व
जन्म स्थान - वैशाली के कुंडग्राम (मुजफ्फरपुर-बिहार)
पिता - सिद्धार्थ,जो ज्ञातृक कुल के प्रमुख थे
माता - त्रिशला या प्रियकर्णी ,जो लिच्छवि वंश की थीं
पत्नी - यशोदा
पुत्री - अनोज्जा या प्रियदर्शना
दामाद - जामालि
गृहत्याग: 30 वर्ष की आयु में
तपकाल :12 वर्ष
तपस्थल–जृम्भिक ग्राम (ऋजुपालिका नदी के किनारे) में साल वृक्ष के नीचे कैवल्य अर्थात सर्वोच्च ज्ञान की प्राप्ति 42 वर्ष की अवस्था में हुई।
निर्वाण:468 ई०पू०/527 ई०पू० में 72 वर्ष की आयु में पावा में निर्वाण की प्राप्ति हुई।
उपाधियां-दिगम्बर,जिन,अर्हत,केवलिन,महावीर तथा निर्ग्रन्थ
जैन धर्म की शिक्षाएं/सिद्धान्त-
पंच अणुव्रत- महावीर स्वामी की शिक्षाओं को पंच अणुव्रत कहा गया है जिसमें सम्मिलित हैं-
1. सत्य
2. अहिंसा
3. अस्तेय
4. अपरिग्रह
5. ब्रह्मचर्य
इसमें अंतिम अणुव्रत ब्रह्मचर्य को महावीर स्वामी ने जोड़ा जबकि सत्य,अहिंसा,अस्तेय और अपरिग्रह पहले से ही जैन धर्म की शिक्षाओं का भाग थे।पंच अणुव्रत का पालन जैन गृहस्थ करते थे।
पंच महाव्रत- सत्य,अहिंसा,अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य ही पंचमहाव्रत थे,इनका पालन कठोर था तथा जैन भिक्षु इनका पालन करते थे।
आचार संहिता- जैन धर्म की आचार संहिता त्रिरत्न कही गई है जिसमें सम्मिलित हैं
1.सम्यक श्रद्धा - सत में विश्वास और तदैव रूप आचरण ही सम्यक श्रद्धा है।
2.सम्यक ज्ञान - सत का ज्ञान ही सम्यक ज्ञान है।
3.सम्यक आचरण/चरित्र - सत चरित्र और सदाचरण का पालन करते हुए जल प्राणी क्लेश और अशोभन कर्मों से रहित हो जाता है तब यह स्थिति सम्यक चारित्र कहलाती है।
त्रिरत्न के अनुपालन से कर्म फल से भी विमुक्ति संभव है।
अहिंसा पर अत्यधिक बल- महावीर स्वामी ने अपनी शिक्षाओं में अहिंसा पर सर्वाधिक बल दिया है उन्होंने अत्यधिक कायाक्लेश का समर्थन करते हुए अहिंसा की अतिवादिता तक पहुंचकर वैचारिक हिंसा का भी निषेध किया है यही कारण है कि जैन धर्म में युद्ध एवं कृषि दोनों ही वर्जित है क्योंकि दोनों में ही हिंसा होती है।
जैन दर्शन- जैनों का दर्शन स्यादवाद या अनेकांतवाद या सप्तभंगीनय कहलाता है।इसके अंतर्गत सापेक्षता का सिद्धान्त महत्वपूर्ण है।
नोट:-जैन धर्म से संबंधित हैं-
1. आस्रव :- जीवो का भौतिक पदार्थों की ओर जाना आस्रव कहलाता है और इसी से वर्धन की उत्पत्ति होती है ।
2. बन्धन :- जीवो का भौतिक पदार्थों की ओर आकर्षण तथा उनसे संयुक्त होना बंधन कहलाता है।
3. कैवल्य :- आश्रव को हटाना ही कैवल्य है।
4:- संवर :- वर्तमान समय में भौतिक पदार्थों का जीव की तरफ प्रवाह का रुकना ही संवर है।
5:- निर्जरा :- पहले से संचित कर्मों को निकाल देना ही निर्जरा कहलाता है।
जैन सम्प्रदाय- स्वामी महावीर की मृत्यु के 200 वर्ष पश्चात पाटलिपुत्र में प्रथम जैन सभा का आयोजन किया गया इस सभा की अध्यक्षता आचार्य स्थूलभद्र ने की परंतु प्रथम जनसभा में ही जैन धर्म का विभाजन दो संप्रदायों में हो गया-
० श्वेतांबर- आचार्य स्थूलभद्र के अनुयायी श्वेतांबर कहलाए, यह लोग श्वेत वस्त्र धारण करते थे।
० दिगम्बर- आचार्य भद्रबाहु के अनुयाई दिगंबर कहलाए यह लोग नग्न रहते थे तथा वस्त्र धारण नहीं करते थे।
अन्य महत्वपूर्ण बातें-
1. जैन धर्म नास्तिक है अर्थात यह वेदों में विश्वास नहीं करता है।
2. जैन धर्म में कर्मकांड,यज्ञ, वर्ण व्यवस्था आदि का विरोध किया गया है।
3. जैन धर्म में दीक्षित होने वाला प्रथम जैन भिक्षु जामालि था और इसने ही जैन धर्म में प्रथम फूट डाली तथा महावीर स्वामी के क्रियमाणकृत सिद्धांत का विरोध करते हुए उनसे अलग होकर एक नवीन संप्रदाय बहुरतवाद की स्थापना की।
4. महावीर स्वामी ने किसी को भी अपना उत्तराधिकारी नियुक्त नहीं किया था।
5. महावीर स्वामी ने अपना पहला उपदेश 11 ब्राह्मणों को पावा में दिया ,इन 11 ब्राह्मणों को सम्मिलित रूप से गणधर कहा जाता है।
6. महावीर की मृत्यु के बाद सुधर्मन को जैन संघ का प्रथम अध्यक्ष बनने का गौरव प्राप्त हुआ।
7. महावीर स्वामी ने अपने उपदेश प्राकृत भाषा में दिए थे जबकि जैन धर्म की भाषा अर्धमागधी है।
8. जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ) थे जबकि 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे।
9. आचारांगसूत्र तथा भगवती सूत्र प्रमुख जैन ग्रंथ है-
# आचारांग सूत्र- इसमें जैन भिक्षुओं की जीवन चर्या एवं आचार नियमों का संकलन किया गया है।
# भगवती सूत्र - इसमें जैन मान्यताओं का विस्तृत विवरण एवं नारकीय कष्टों तथा स्वर्गिक सुख आदि का भी उल्लेख है।
10. प्रथम जैन भिक्षुणी चंदना थी ,जो चंपा नरेश की पुत्री थी।
11.मक्खलि गोशाल ने आजीवक सम्प्रदाय की स्थापना की थी।
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