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    क्षेत्रीय राज्य और ब्रिटिश साम्राज्यवाद -(पंजाब राज्य)

    क्षेत्रीय राज्य और ब्रिटिश साम्राज्यवाद -(पंजाब राज्य)

    पंजाब राज्य-
    मुगल काल के समय भारत के उत्तरी पश्चिमी क्षेत्र पंजाब में गुरु नानक द्वारा सिख धर्म की स्थापना की जाती है, आगे चलकर सिखों के 10 गुरु होते हैं जिसमें अंतिम गुरु गोविंद सिंह थे जिन्होंने सिखों की सुरक्षा के लिए खालसा पंथ की स्थापना की थी। सिख गुरुओं का मुगल शासकों से संघर्ष चलता रहता था परंतु औरंगजेब के शासन काल तक वह एक राज्य के रूप में संगठित नहीं हो पाए। 1707 में औरंगजेब की मृत्यु हो जाती है तथा 1708 में गुरु गोविंद सिंह की भी एक पठान द्वारा हत्या कर दी जाती है। गुरु गोविंद सिंह ने बंदा बहादुर को सिखों की सुरक्षा का उत्तरदायित्व सौंपा था।


    बंदा बहादुर(1708- 1716 ई०)-
    1.यह जम्मू कश्मीर का रहने वाला था और इसका नाम लक्ष्मणदास था।
    2. यह सिखों के पहले राजनीतिक नेता था और जिसने पंजाब राज्य की स्थापना की थी और सिखों को संगठित करने का कार्य किया था।
    3. इसने गुरु नानक और गुरु गोविंद सिंह के नाम के सिक्के चलवाये।
    4. 1712 ई० में इसने बहादुर शाह प्रथम को पराजित किया था।

    5. इसने दो प्रथाएं सरबत खालसा और गुरु मत्ता प्रारंभ की थी।

    6. 1716 ई० में मुगल शासक फर्रूखसियर द्वारा किसे मृत्युदंड दे दिया जाता है।

    इसके बाद पंजाब क्षेत्र कई छोटे-छोटे भागों में विभाजित हो जाता है जिन्हें मिसल कहते हैं इन मिसल की संख्या 12 थी।
    सिखों को पानीपत के तृतीय युद्ध(1761 ई०) के बाद अपना राज्य विस्तार करने का अवसर प्राप्त होता है क्योंकि मराठा कमजोर हो जाते हैं तथा अहमद शाह अब्दाली अपने क्षेत्र में वापस लौट जाता है।
    इन 12 मिसल में से एक मिसल थी सुकरचकिया, जिसका प्रमुख रणजीत सिंह होता है जो आगे चलकर सिख राज्य का राजा बनता है।
    रणजीत सिंह(1792- 1839 ई०)-
    इनका जन्म 1780 में हुआ था और उनके पिता का नाम महासिंह था।
    रणजीत सिंह के सामने प्रारंभ से ही यह प्रमुख चुनौती थी कि इन सभी मिसलों पर किस प्रकार प्रमुखता हासिल की जाए।
    ० पश्चिमी क्षेत्र अफगानिस्तान,ईरान आदि से पंजाब पर आक्रमण होते रहते थे। अफगानिस्तान के राजा जमान शाह द्वारा पंजाब पर आक्रमण किया जाता है जिससे रणजीत सिंह का संघर्ष होता है। रणजीत सिंह द्वारा जमान शाह को भारत से बाहर खदेड़ दिया जाता है इसी क्रम में जमान शाह की 12 तोपें चिनाव नदी में गिर जाती हैं रणजीत सिंह बाद में इन तोपों को निकलबाकर जमान शाह को भेज देता है इस बात से खुश होकर जमान शाह लाहौर  क्षेत्र रणजीत सिंह को प्रदान कर देता है।
    रणजीत सिंह के राज्य की दो राजधानियां थी जिसमें लाहौर राजनीतिक राजधानी थी और अमृतसर धार्मिक राजधानी। इस प्रकार पंजाब के पूरे क्षेत्र पर(सभी मिसलों पर) रणजीत सिंह का अधिकार हो जाता है।
    ० अंग्रेजों की निगाहें पंजाब के उपजाऊ क्षेत्र पर लगी हुई थी इसलिए 1809 ईसवी में रणजीत सिंह और अंग्रेज चार्ल्स मेटकॉफ के बीच अमृतसर की संधि होती है जिसमें सतलज नदी के पश्चिमी के क्षेत्र पर रणजीत सिंह का शासन तथा इसके पूर्व भाग में अंग्रेजों के शासन को स्वीकार कर लिया जाता है।
    रणजीत सिंह ने अफगान शासक शाहशुजा की राजा बनने में मदद की थी जिससे प्रसन्न होकर शाहशुजा रणजीत सिंह को कोहिनूर हीरा उपहार स्वरूप देता है।
    ० 1839 में रणजीत सिंह की मृत्यु हो जाती है और उनके उत्तराधिकारी कमजोर साबित होते हैं जिससे पंजाब राज्य विभाजित होने लगता है।
    अंतिम सिख राजा दिलीप सिंह बनते हैं परंतु यह अल्प व्यस्क था इसलिए इसकी संरक्षिका माता जिंदन कौर बनती है जो एक महत्वाकांक्षी महिला थी जिस कारण भी अंग्रेजों का सिखों से युद्ध होता है।
    इसके साथ ही अंग्रेजों की नजर पहले से ही पंजाब राज्य पर थी ,ऐसी स्थिति में अंग्रेज पंजाब को अपने अधिकार में लेने के लिए संघर्ष छेड़ देते हैं जिससे आंग्ल सिख युद्ध की शुरुआत होती है।

              -प्रथम आंग्ल- सिख युद्ध(1845- 46 ई०)-
    ० इस समय गवर्नर जनरल लॉर्ड हार्डिंग था।
    ० इस युद्ध के कारणों में सिख राज्य के आपसी वैमनस्य, सिख सेना का नियंत्रण से बाहर होना, अंग्रेजों की आक्रमक नीति आदि थे।
    सिख सेना ने दिसम्बर 1845 ई० जैसे ही सतलुज नदी को पार किया लॉर्ड हार्डिंग ने युद्ध की घोषणा कर दी।
    युद्ध के दौरान कई लड़ाइयां लड़ी गई जैसे- मुदकी,फ़िरोज़शाह,बदोवाल,भैरोवाल आदि। परंतु फरवरी 1846 में एक निर्णायक संघर्ष के दौरान सिख सेना पराजित हो गई।
    युद्ध के बाद लाहौर की संधि होती है।

    लाहौर की संधि(9 मार्च 1846 ई०)
    ० सिखों को युद्ध हर्जाने के रूप में डेढ़ करोड़ रूपये अंग्रेजों को देने पड़े।
    ० सिखों को सतलज पार के प्रदेश छोड़ने पड़े।
    ० दिलीप सिंह को राजा स्वीकार कर लिया तथा जिंदन कौर को उनकी संरक्षिका मान लिया।
    सिखों को अपनी सेना को कम करना पड़ा।
    ० एक अंग्रेज रेजिडेंट को लाहौर में नियुक्त किया गया जिसका खर्च सिख राज्य को देना था।
    अंग्रेजी सेना वर्ष 1846 के अंत तक लाहौर में रहेगी जिसका खर्च सिख राज्य वहन करेंगे।

    भैरोवाल की संधि(दिसम्बर 1846 ई०)-
    इस संधि में कहा गया कि जब तक राजा दिलीप सिंह वयस्क नहीं हो जाते हैं तब तक अंग्रेजी सेना लाहौर में ही रहेगी तथा उनकी संरक्षिका जिंदन कौर को पेंशन देखकर शेखपुरा भेज दिया जाता है।

    नोट:- इस युद्ध के बाद ही कोहिनूर हीरा महारानी विक्टोरिया के पास चला जाता है।

           -द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध(1848- 1849 ई०)-
    ० 1848 में लॉर्ड डलहौजी भारत का गवर्नर जनरल बनता है। और वह एक मौके की तलाश में होता है कि किस प्रकार सिख राज्य को अंग्रेजी राज्य में मिलाया जाए।
    इसी समय मुल्तान के गवर्नर मूलराज और हजारा के गवर्नर चतर सिंह द्वारा विद्रोह कर दिया जाता है जिसे दबाने के लिए डलहौजी, गफ के नेतृत्व में पंजाब पर आक्रमण कर देता है।
    इस दौरान पहली लड़ाई जिसे चिलियांवाला युद्ध भी कहते हैं। यह युद्ध अनिर्णायक रहता है।जिससे डलहौजी गफ को हटाकर नेपियर को पंजाब भेजता है।
    दूसरी लड़ाई गुजरात(पंजाब) में नेपियर के नेतृत्व में लड़ी गई जिसे 'तोपों का युद्ध' भी कहा जाता है इस युद्ध में सिखों की अंतिम रूप से हार हो जाती है।
    ० जिसके बाद मार्च 1849 में डलहौजी द्वारा संपूर्ण पंजाब राज्य का विलय अंग्रेजी राज्य में कर लिया जाता है।
    दिलीप सिंह तथा उनकी माता जिंदन कौर को वार्षिक पेंशन देकर लंदन भेज दिया जाता है।

    नोट:- हेनरी लॉरेंस, जिसे सिख राज्य में रेजिडेंट नियुक्त किया गया था,इस विलय के विरोध में अपना इस्तीफा दे देता है।



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