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    क्षेत्रीय राज्य और ब्रिटिश साम्राज्यवाद- (मराठा राज्य)

    क्षेत्रीय राज्य और ब्रिटिश साम्राज्यवाद- (मराठा राज्य)
    मराठा साम्राज्य-
    जिस समय औरंगजेब के शासनकाल में मुगल साम्राज्य अपने चरम पर था उसी समय दक्कन क्षेत्र में शिवाजी के नेतृत्व में मराठा साम्राज्य का उदय होता है। प्रारंभ में एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में उदित मराठा राज्य आगे चलकर भारत की एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरता है जिसकी स्थापना का श्रेय शिवाजी को दिया जाता है।
    शिवाजी का परिचय-
    जन्म- 20 अप्रैल 1627 ई० को शिवनेर के किले में
    पिता- शाह जी भोंसले
    माता- जीजाबाई
    संरक्षक/राजनीतिक गुरु- दादाजी कोंणदेव
    आध्यात्मिक गुरु- रामदास

    शिवाजी ने अपने सैन्य अभियान की शुरुआत बीजापुर के आदिलशाह के विरुद्ध की तथा 1643 ई० में सिंहगढ़ किले पर विजय प्राप्त की तथा 1646 में तोरण के किले पर अधिकार स्थापित कर लिया।
    1654 में इन्होंने पुरंदर के किले पर जीत दर्ज की।
    शिवाजी की इन प्रारंभिक विजयों को देखकर बीजापुर का सुल्तान सशंकित हो जाता है और वह शिवाजी की हत्या करने के लिए सरदार अफ़ज़ल खां को भेजता है परंतु शिवाजी अफजल खां को 1659 ई० में मार देते हैं।
    ०  दक्षिण में शिवाजी की बढ़ती ताकत को देखकर उसे नियंत्रित करने के लिए औरंगजेब अपने मामा शाइस्ता खां भेजता है परंतु 1663 ईसवी में शिवाजी शाइस्ता खां को पराजित कर देते हैं।
     सूरत का अभियान-
    सूरत एक समृद्ध क्षेत्र था जो मुगलों के नियंत्रण में था शिवाजी ने 1664 ईस्वी में इस पर आक्रमण किया तथा यहां से लगभग एक करोड़ की संपत्ति लूटकर अपने साथ ले गए इसे सूरत की प्रथम लूट के नाम से भी जाना जाता है।

    इस घटना के बाद औरंगजेब अधिक चिंतित हो उठा और उसने शिवाजी को पराजित करने के लिए कछवाहा राजा मिर्जा जयसिंह के नेतृत्व में लगभग एक लाख सैनिकों को भेजा। राजा जयसिंह ने शिवाजी पर विजय पाने के लिए बीजापुर के सुल्तान से संधि कर ली और पुरंदर को जीतने के लिए उस पर घेरा डाल दिया। पुरंदर के किले को बचा पाने में असमर्थ जानकर शिवाजी ने राजा जयसिंह के साथ 1665 में पुरंदर की संधि कर ली।
    पुरंदर की संधि(22 जून 1665 ई०)-
    इस संधि के द्वारा शिवाजी को जीते हुए अपने 35 किलो में से 23 किले मुगलों को देने पड़े
    शिवाजी को अपने पुत्र शम्भाजी को औरंगजेब के दरबार में 5000 के मनसब पर भेजना पड़ा।
    जब मुगलों को आवश्यकता हो तो शिवाजी उनकी सेवा में उपस्थित हों।
    इसी संधि के अंतर्गत शिवाजी औरंगजेब के दरबार में 1666 ई० में उपस्थित हुए,परंतु औरंगजेब ने उनके साथ अनुचित व्यवहार किया जिसका शिवाजी ने विरोध किया और तभी औरंगजेब ने उन्हें पकड़कर जयपुर महल में कैद कर दिया।लेकिन इसी वर्ष शिवाजी यहां से अपने आप को मुक्त कर लेते हैं।
    अपने मराठा राज्य में आने के बाद शिवाजी पुनः1670 ई० सूरत का अभियान करते हैं और उसे लूट लेते है।

    शिवाजी का राज्याभिषेक-
    अब शिवाजी के नेतृत्व में मराठा शक्ति बहुत बढ़ चुकी थी तथा 1674 ईस्वी तक वह अपने उन किलो को जीत लेते हैं जो उन्हें पुरंदर  संधि के अंतर्गत  मुगलों को वापस करने पड़े थे ।इसके बाद 6 जून 1674 ई० को अपना राज्याभिषेक करवाते हैं यह राज्य अभिषेक बनारस के प्रकांड विद्वान गंगाभट्ट के नेतृत्व में संपन्न हुआ था। 

    कर्नाटक अभियान-
    1678 ईस्वी में शिवाजी कर्नाटक अभियान पर जाते हैं जिसके अंतर्गत वह जिंजी के किले पर विजय प्राप्त करते हैं यह शिवाजी का अंतिम सैन्य अभियान था।

    इसके बाद शंभाजी विद्रोह कर शिवाजी से अलग हो जाते हैं और बीमारी के कारण 3 अप्रैल 1680 को शिवाजी की मृत्यु हो जाती है।
                         -शिवाजी का प्रशासन-
    शिवाजी की प्रशासनिक व्यवस्था के अंतर्गत सबसे ऊपर छत्रपति या राजा होता था जो कानून व्यवस्था, न्याय ,सेना आदि सभी का सर्वोच्च अधिकारी होता था। ऐसा माना जाता है कि शिवाजी ने हिंदू मान्यताओं पर आधारित प्रशासनिक व्यवस्था को सुदृढ़ किया था परंतु उनकी प्रशासनिक व्यवस्था में मुगल एवं दक्षिणी राज्यों की प्रशासनिक व्यवस्था का प्रभाव देखा जा सकता है।
     राजा के कार्यों में सहायता करने के लिए अष्टप्रधान परिषद होती थी।
     अष्ट प्रधान परिषद-
     इसके अंतर्गत 8 मंत्री आते थे जो प्रशासन से जुड़े निम्नलिखित मामलों को देखते थे-
     1. पेशवा- यह सबसे प्रमुख मंत्री( प्रधानमंत्री) होता था तथा संपूर्ण शासन व्यवस्था की देखभाल करता था।
     2. अमात्य या मजमुआदार - वित्त या अर्थमंत्री
     3. सुमंत- विदेश मंत्री, पड़ोसी तथा अन्य राज्यों से संबंधों की देखभाल के लिए इसकी नियुक्ति होती थी।
     4. वाकयानवीस- यह सूचनाओं को इकट्ठा करता था और गुप्त चर के रूप में कार्य करता था।
     5. चिटनिस- पत्राचार विभाग का प्रमुख
     6. सेनापति- सैन्य विभाग का प्रमुख
     7. न्यायाधीश- न्याय संबंधी मामलों को देखता था, यद्यपि सर्वोच्च न्याय अधिकारी राज्य में राजा होता था।
     8. पंडितराव- धार्मिक कार्यों का प्रमुख एवं मुख्य सलाहकार

    शिवाजी ने अपने राज्य को  प्रांतों/सूबों में विभाजित किया था जिनका प्रमुख राज्य प्रतिनिधि या वायसराय होता था जो राजा के द्वारा नियुक्त किया जाता था। प्रांतों को परगना और ताल्लुक़ में बांटा गया था, इनके नीचे 'तरफ' और 'मौजे' होते थे।
    शिवाजी द्वारा वसूले जाने वाले दो प्रमुख कर थे-
      चौथ- जो उत्पादन का 1/4 वसूला जाता था यह उन क्षेत्रों से वसूला जाता था जो शिवाजी के राज्य के समीपवर्ती थे और जहां शिवाजी का प्रत्यक्ष नियंत्रण नहीं था ,यदि यह राज्य चौथ देते रहते थे तो शिवाजी उन पर आक्रमण नहीं करते थे।
     सरदेशमुखी- उत्पादन का 1/10 होता था यह उन क्षेत्रों से वसूला जाता था जो शिवाजी के प्रत्यक्ष नियंत्रण में थे एवं उनके अधीन थे।
    शिवाजी की युद्ध पद्धति गोरिल्ला पद्धति पर आधारित थी।

    नोट:- शिवाजी की एक पत्नी जिनका नाम पुतलीबाई था वह शिवाजी की मृत्यु के साथ सती हो गई।

                   -शिवाजी के उत्तराधिकारी-
    शिवाजी के दो पुत्र- शंभाजी और राजाराम थे। 1680 ई० में शिवाजी की मृत्यु के बाद उनके बड़े पुत्र शंभाजी राजा बनते हैं।

    शंभाजी(1680- 89 ई०)
    इनको प्रारंभ से ही अपने सौतेले भाई,दरबारियों आदि से अंतर्कलह का सामना करना पड़ा।
    इन्होंने अपनी राजधानी रायगढ़ को बनाया जो मराठा राज्य की प्रारंभिक राजधानी थी।
    शंभाजी ने अपने विश्वासपात्र 'कविकलश' को सर्वोच्च अधिकारी के रूप में नियुक्त किया।
    इन्होंने पुर्तगाल तथा मैसूर के राजा चिक्का देवराय को पराजित किया था।
    ० औरंगजेब के विद्रोही पुत्र 'अकबर' को शंभाजी ने मराठा राज्य में शरण दी थी जिसके कारण औरंगजेब 1689 ई० में उन पर आक्रमण कर बंदी बनाकर उनकी हत्या कर देता है। 

    राजाराम(1689- 1700 ई०)
    शंभाजी की मृत्यु के बाद राजाराम गद्दी पर बैठता है।
    औरंगजेब का सेनापति जुल्फिकार खां रायगढ़ पर आक्रमण करता है और शंभाजी की पत्नी, उनके पुत्र शाहूजी और अन्य दरबारियों को कैद कर अपने साथ ले आता है।
    राजाराम मुगलों के आक्रमण के भय से राजधानी को रायगढ़ से जिंजी ले जाता है, मुगलों द्वारा जिंजी को घेर लिया जाता है तथा बाद 1698 ई० में जिंजी दुर्ग पर मुगलों का अधिकार हो जाता है।
    इसके बाद 1699 ईसवी में राजाराम द्वारा सतारा को मराठों की राजधानी बनाई जाती है।
    1700 में राजाराम की मृत्यु हो जाती है।

    शिवाजी द्वितीय(1700- 07 ई०)
    राजाराम के बाद  शिवाजी द्वितीय राजा बनता है जो राजाराम का अल्पवयस्क पुत्र था।
    राजाराम की पत्नी ताराबाई इसकी संरक्षिका होती है जो वास्तविक सत्ता की देखभाल करती है।
    ताराबाई एक योग्य महिला थी जिसके नेतृत्व में मराठे बरार, गुजरात,भड़ौच, सूरत आदि के सफल अभियान कर मराठा शक्ति को स्थापित करते हैं।

    शाहूजी महाराज(1707- 49 ई०)
    1707 ई० में औरंगजेब की अहमदनगर में मृत्यु हो जाती है जिसके बाद शाहूजी उसकी कैद से मुक्त हो जाते हैं।
    मुक्त होने के बाद 1707 ई० में ही शाहूजी का ताराबाई से खेड़ा नामक स्थान पर संघर्ष होता है जिसमें ताराबाई पराजित हो जाती है और शाहूजी महाराज शिवाजी द्वितीय को हटाकर छत्रपति बनते हैं।
    शाहूजी के शासनकाल में पेशवा का पद अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। उनके द्वारा 1713 में पेशवा के रूप में बालाजी विश्वनाथ की नियुक्ति की जाती है आगे से यह पद वंशानुगत हो जाता है। आगे चलकर से पेशवा ही मराठा साम्राज्य के वास्तविक कर्ता-धर्ता हो जाते हैं।
    शाहूजी महाराज के समय मराठा सत्ता दो भागों में बट जाती है सतारा में साहू जी महाराज शासन कर रहे होते हैं तो कोल्हापुर में शिवाजी द्वितीय का शासन होता है।

    नोट:- 1750 ई० में संगोला की संधि जो कि राजाराम द्वितीय(छत्रपति) और बालाजी बाजीराव (पेशवा) के बीच हुई थी इसके अंतर्गत मराठा छत्रपति केवल नाम मात्र के राजा रह गये तथा मराठा संगठन का वास्तविक नेता अब पेशवा बन गया और मराठा राजनीति का केन्द्र पूना बन जाता है।
                  -पेशवाओं के अधीन मराठा साम्राज्य-
    बालाजी विश्वनाथ(1713-20 ई०)-
    शाहूजी महाराज द्वारा 1773 ईस्वी में पेशवा के रूप में बालाजी विश्वनाथ की नियुक्ति की जाती है।
    छत्रपति शिवाजी के बाद मराठा साम्राज्य को आगे बढ़ाने का कार्य मुख्य रूप से बालाजी विश्वनाथ ने ही किया था इसलिए इन्हें मराठा साम्राज्य का द्वितीय संस्थापक कहा जाता है।
    बालाजी विश्वनाथ के प्रयासों से ही 1719 ईसवी में मुगलों और मराठों के बीच एक संधि(दिल्ली की संधि) होती है-
    1.जिसके अंतर्गत मराठों को शिवाजी का स्वराज क्षेत्र के साथ ही अन्य क्षेत्र मिलते हैं।
    2. मराठों को दक्कन के मुगल प्रांतों पर चौथ एवं सरदेशमुखी वसूलने का अधिकार मिल जाता है 
    3. शाहूजी की माता,पत्नी और पुत्र को मुगलों के चंगुल से मुक्ति मिलती है।
    4.  बदले में मराठों को  मुगलों की सेवा में 15000 सैनिक तथा दस लाख रुपए  प्रतिवर्ष देने थे।
    5. यह संधि फर्रूखसियर के समय तैयार होती है जिसमें बालाजी विश्वनाथ एवं सैयद बंधुओं की मुख्य भूमिका होती है परंतु फर्रूखसियर द्वारा इस पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया जाता है इसलिए रफी उद् दरजात को नया मुगल बादशाह बनाया जाता है और वह इस संधि पर हस्ताक्षर करता है।
    6.सर रिचर्ड टेम्पल ने इस संधि को मराठा साम्राज्य का मैग्नाकार्टा कहा है।
    बालाजी विश्वनाथ सैन्य एवं प्रशासनिक दोनों दृष्टियों से योग्य पेशवा साबित हुए परंतु 1720 ई ० में इनकी मृत्यु हो जाती है।

    बाजीराव प्रथम(1720 - 1740 ई०)-
    ० बाजीराव प्रथम बहुत ही प्रतिभाशाली पेशवा था उसने मालवा, गुजरात तथा पुर्तगाल आदि को जीतकर मराठा साम्राज्य का विस्तार किया।
    मराठों के परम शत्रु निजामउलमुल्क को उसने पराजित किया तथा उससे चौथ एवं सरदेशमुखी वसूला
    ० वह बुंदेलखंड में छत्रसाल की सहायता के लिए जाता है और वहीं पर एक मुस्लिम नृत्यांगना मस्तानी से उसकी भेंट होती है और उससे प्रेम हो जाता है।
    वह ऐसा महान योद्धा था जिसने कभी युद्ध नहीं हारा
    ० उसके जीवन के अंतिम दिन बहुत दर्दमय बीते और 1740 ई० उसकी मृत्यु हो जाती है।

    बालाजी बाजीराव(1740- 1761 ई०)-
    ० यह "नाना साहब" के नाम से भी जाना जाता था।
    ० इसके समय में मराठा साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार हुआ।
    ० 1750 ई० इसके समय ही संगोला की संधि होती है और छत्रपति नाम मात्र का राजा रह जाता है।
    ० 1751 ईस्वी में यह बंगाल के नवाब अलीवर्दी खां पर आक्रमण कर उससे चौथ बसूलता है तथा उड़ीसा का क्षेत्र पर अधिकार मिल जाता है।
    ० 1760 में हैदराबाद की निजाम को पराजित कर उसके बड़े भाग पर कब्जा कर लेता है।
    ० इसने  इमाद- उल -मुल्क को वजीर बनने में सहायता की थी जिससे अप्रत्यक्ष रूप से इसका मुगल सत्ता पर नियंत्रण स्थापित हो गया।
    ० दिल्ली के बाद यह पंजाब में तिमूर शाह अब्दाली को पराजित कर वहां से भगा देता है जोकि अहमद शाह अब्दाली का पुत्र था।

    पानीपत का तृतीय युद्ध(14 जनवरी 1761 ई०)-
    मराठों द्वारा अहमद शाह अब्दाली(अफगान) के पुत्र तिमुर शाह अब्दाली को पंजाब से खदेड़ दिया जाता है इस बात का बदला लेने के लिए अहमद शाह अब्दाली मराठों से युद्ध करता है और यह युद्ध पानीपत के तृतीय युद्ध के नाम से जाना जाता है इस युद्ध में अहमद शाह अब्दाली मराठों को बुरी तरह पराजित करता है।इसमें बालाजी बाजीराव के पुत्र विश्वास राव की मृत्यु हो जाती है एवं सदाशिवराव भाऊ जैसे अनेक योद्धा मारे जाते हैं तथा मराठा साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो जाता है।
    इसी सदमे के कारण जून 1761 में बालाजी बाजीराव की मृत्यु हो जाती है।

    माधवराव नारायण प्रथम (1761- 1772 ई०)-
    यह मराठा शक्ति को पुनः एकत्रित करने का कार्य करता है।
    यह निजाम को पराजित करता है तथा मैसूर के हैदरअली को चौथ देने पर विवश कर देता है।
    उत्तर की शक्तियों जाटों ,रोहेला और राजपूतों पर नियंत्रण स्थापित करता है।
    ० यह 1771 ई० में मुगल शासक शाहआलम द्वितीय ,जो अंग्रेजों के नियंत्रण में इलाहाबाद में निर्वासन जीवन जी रहे थे उन्हें दिल्ली लाकर संरक्षण प्रदान करता है।
    ० इसका अपने चाचा रघुनाथ राव राघोबा से संघर्ष होता है और  माधवराव ,रघुनाथराव को शनिवारबाड़ा(पुणे) में बंद कर देता है।
    ० 1772 ई० में माधवराव के क्षय रोग से मृत्यु हो जाती है।

    माधवराव के बाद उसका भाई नारायण राव पेशवा बनता है इस बात से रघुनाथ राव रुष्ट हो जाता है और वह नारायण राव की हत्या करवा देता है और रघुनाथ राव स्वयं को पेशवा घोषित कर देता है परंतु मराठा सरदार ,दरबारी एवं जनता रघुनाथ राव के इस कृत्य से बहुत नाराज होती है। मराठा सरदार, नारायण राव के पुत्र माधवराव द्वितीय, जो मात्र 40 दिन का था, को पेशवा बना देते हैं। इस बात से नाराज होकर रघुनाथ राव अंग्रेजों की शरण में चला जाता है जिससे प्रथम आंग्ल - मराठा युद्ध होता है।

          -प्रथम आंग्ल- मराठा युद्ध(1775- 82 ई०)-
    यह युद्ध पेशवा पद के लिए उत्पन्न हुए मराठों में मतभेद के कारण हुआ जिससे अंग्रेजों को मराठों के मामलों में हस्तक्षेप करने का मौका मिला।
    रघुनाथ राव जोकि पेशवा बनना चाहता था परंतु मराठा सरदारों एवं नाना फडणवीस ने अल्प वयस्क माधवराव द्वितीय को पेशवा बनाया ,जिससे रघुनाथराव अंग्रेजों से मिलकर सूरत की संधि करता है।
    सूरत की संधि(1775 ई०)के अनुसार अंग्रेजों ने रघुनाथ राव को सैन्य मदद(2500 सैनिकों की टुकड़ी) दी, बदले में रघुनाथ राव ने सालसेट एवं बसीन का क्षेत्र ,सूरत आदि अंग्रेजों को सौंप दिया।
    नाना फडणवीस ने फ्रांसीसियों को पश्चिमी तट पर बंदरगाह बनाने की अनुमति दे दी जिससे नाराज होकर अंग्रेजों ने पुणे पर हमला कर दिया, परंतु महादजी सिंधिया के नेतृत्व में अंग्रेजों को मराठों से मुंह की खानी पड़ी और उन्होंने 1779 ई० में  मराठों के सामने घुटने टेक दिए तथा बड़गांव की संधि द्वारा अंग्रेजों को 1975 के बाद से हासिल किए गए सभी क्षेत्रों को छोड़ना पड़ा।
    इस दौरान गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स था जिसने बड़गांव की संधि मानने से इनकार कर दिया और कर्नल गोडार्ड के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना भेजकर अहमदाबाद एवं बसीन पर कब्जा कर लिया तथा 1781 ई० में सिंधिया को पराजित होना पड़ा।
    सालबाई की संधि(1782 ई०)
    इस संधि द्वारा प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध का अंत हो जाता है और अंग्रेज माधवराव द्वितीय को पेशवा मान लेते हैं तथा अंग्रेज सिंधिया को उसके क्षेत्र वापस कर देते हैं और अंग्रेजों को सालसेट का क्षेत्र मिल जाता है तथा अगले 20 वर्ष तक मराठों और अंग्रेजों के बीच शांति स्थापित करने की बात कही गई।
    इस संधि द्वारा अंग्रेज हैदर अली को अलग-थलग करने में सफल हो जाते हैं।

           -द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध(1803- 05 ई०)-
    1800 ई० में नाना फडणवीस की मृत्यु हो जाती है और पेशवा बाजीराव द्वितीय उनके नियंत्रण से मुक्त हो जाता है और अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए मराठा सरदारों के बीच संघर्ष करवाता है।
    1801 में पेशवा द्वारा यशवंत राव होलकर के भाई बिट्ठू जी की हत्या कर दी जाती है जिसके कारण होलकर पुणे पर आक्रमण कर सिंधिया एवं पेशवा की सेना को पराजित कर देता है और पुणे पर अधिकार स्थापित कर लेता है।
    पेशवा बाजीराव द्वितीय पुणे से भागकर बेसीन में शरण लेता है और अंग्रेजों से बेसीन की संधि करता है।
    बेसीन की संधि(1802 ई०)
    - पेशवा द्वारा लार्ड वेलेजली की सहायक संधि को स्वीकार कर लिया जाता है और पेशवा अंग्रेजों के संरक्षण में  आ जाता है।
    - पेशवा पूना में अंग्रेजों की सेना रखना स्वीकारता है।
    - पेशवा किसी अन्य राज्य से संबंध स्थापित करने का अधिकार कंपनी को दे देता है।
    - इसके अतिरिक्त सूरत नगर, गुजरात, ताप्ती एवं नर्मदा के बीच के क्षेत्र आदि अंग्रेजों को दे देता है।
    - पेशवा ने निजाम से चौथ प्राप्त करने का अधिकार छोड़ दिया।

    इसके बाद वेलेजली 1803 ईस्वी में पूना को होल्कर से मुक्त करा कर पेशवा को दे देता है।
    ० बेसीन की संधि को भोसले अपमान समझता है और अंग्रेजों को चुनौती देता है परन्तु  विवश होकर भोंसले को अंग्रेजों से देवगांव की संधि(1803 ई०) करनी पड़ती है और कटक तथा वर्धा नदी का पश्चिमी क्षेत्र अंग्रेजों को देना पड़ता है।
    ० इसके बाद 1803 ईस्वी में ही सिंधिया अंग्रेजों से हार जाते हैं और सुर्ज़ी-अर्जनगांव की संधि द्वारा गंगा और यमुना के चित्र अंग्रेजों को देने पड़ते हैं।
    ० 1804 में यशवंत राव होलकर भारतीय राजाओं की संयुक्त सेना लेकर अंग्रेजों से युद्ध करता है परंतु परास्त हो जाता है और मजबूर होकर राजपुर घाट की संधि अंग्रेजों से करता है।

            -तृतीय आंग्ल- मराठा युद्ध(1817- 19 ई०)-
    इस समय लॉर्ड हेस्टिंग्स गवर्नर जनरल था,उसने पिंडारियों के विरुद्ध अभियान छेड़ा जिसके कारण तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध प्रारंभ हो जाता है।
    इसी अभियान के क्रम में भोसले, पेशवा, सिंधिया आदि को अपमानजनक संधि करने पर बाध्य कर देता है।
    अंग्रेजों से मुक्ति के लिए मराठा सरदार अंग्रेजों के विरुद्ध अभियान छेड़ते हैं लेकिन अंग्रेजों द्वारा एक एक करके सभी को पराजित कर दिया जाता है।
    इस युद्ध के बाद अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय का पूना क्षेत्र कंपनी में विलय कर लिया जाता है और उसे पेंशन दे दी जाती है।
    इस प्रकार अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीति के कारण मराठा जैसा सशक्त साम्राज्य छिन्न-भिन्न होकर समाप्त हो जाता है।




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