• 19.8.20

    हरिजन उद्धार यात्रा,कांग्रेस समाजवादी पार्टी,भारत शासन अधिनियम 1935 तथा 1937 के प्रांतीय चुनाव

                गांधीजी की हरिजन उद्धार यात्रा
    पूना समझौते के बाद गांधी जी ने छुआछूत को समाप्त करने के लिए तथा दलितों के सामाजिक उत्थान के लिए कई प्रयास किए इसमें से एक महत्वपूर्ण कार्य हरिजन उद्धार यात्रा था-
    1. दलितों को गांधीजी 'हरिजन' कहकर पुकारते थे।
    2. गांधी जी ने छुआछूत के उन्मूलन के लिए नवंबर 1933 में वर्धा से हरिजन उद्धार यात्रा प्रारंभ की।
    3. इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य हरिजनों के साथ सदियों से चले आ रहे सामाजिक-धार्मिक भेदभाव की समाप्ति के लिये देश एवं समाज को जागरूक करना था।
    4. जुलाई 1934 तक गांधीजी देशभर में ट्रेन, पैदल ,बैलगाड़ी आदि से यात्रा कर अस्पर्शता के विरुद्ध कार्य करते रहे।
                    कांग्रेस समाजवादी पार्टी
    1. कांग्रेस समाजवादी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अंतर्गत एक पार्टी थी।
    2मई 1934 में पटना में जय प्रकाश नारायण, आचार्य नरेंद्र देव ,रामवृक्ष बेनीपुरी आदि ने मिलकर "बिहार कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी" का गठन किया।
    3. इसके बाद अखिल भारतीय स्तर पर समाजवादी पार्टी की आवश्यकता महसूस हुई इसलिए अक्टूबर 1934 को बॉम्बे कॉन्फ्रेंस के दौरान "ऑल इंडिया कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी' का गठन किया गया। जयप्रकाश नारायण इसके सामान्य सचिव और मीनू मसानी संयुक्त सचिव बने।
    4. इसके अन्य सदस्य अच्युत पटवर्धन, अशोक मेहता, डॉ राम मनोहर लोहिया, युसूफ मेहराले, पुरुषोत्तम विक्रम दास आदि थे।
    5. कांग्रेस समाजवादी पार्टी का उद्देश्य कांग्रेस के युवा वर्ग को कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ जाने से रोकना एवं धीरे-धीरे सुधारात्मक उपायों को अपनाकर लोकतांत्रिक समाजवाद की स्थापना करना था।

    नोट:- सुभाष चंद्र बोस और जवाहरलाल नेहरू विचारधारा के स्तर पर वामपंथी थे तथा इन्होंने ऑल इंडिया कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का समर्थन किया था परंतु इसे कभी भी औपचारिक रूप से ज्वाइन नहीं किया।

                   लखनऊ अधिवेशन(1936)
    1. कांग्रेस का 1936 का अधिवेशन लखनऊ में हुआ जिसकी अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू ने की।
    2. इस अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि देश की समस्याओं जैसे गरीबी, बेरोजगारी,असमानता आदि का समाधान समाजवाद के बिना संभव नहीं है।
    3. इसी अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू ने कांग्रेस की वर्किंग कमेटी में समाजवादी नेता जेपी नारायण,अच्युत पटवर्धन तथा आचार्य नरेंद्र देव को भी सम्मिलित किया।

              भारत शासन अधिनियम 1935
    इस अधिनियम के पारित होने के पूर्व भारत के शासन का स्वरूप एकात्मक था लेकिन इस अधिनियम द्वारा भारत में सर्वप्रथम संघात्मक सरकार की स्थापना की गई, भारतीय संघ का निर्माण भारतीय प्रांतों तथा देशी रियासतों से मिलकर होना था, प्रांतों का संघ में विलय अनिवार्य था जबकि देसी रियासतों का विलय ऐच्छिक था परंतु कुछ देसी रियासतों के प्रतिकूल रवैये के कारण भारतीय संघ व्यावहारिक रूप से अस्तित्व में नहीं आ सका

    यह अधिनियम एक लंबा एवं जटिल प्रलेख था इसमें 321 अनुच्छेद एवं 10 अनुसूचियां थी इस अधिनियम की महत्वपूर्ण विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
    1. इसके द्वारा संघ सूची (59 विषय), प्रांतीय सूची(54 विषय) समवर्ती सूची (36 विषय) का निर्माण हुआ। संघ सूची पर कानून बनाने का अधिकार संघ सरकार को ,प्रांतीय सूची पर प्रांतीय सरकार को तथा समवर्ती सूची पर दोनों ही कानून बना सकते थे यदि समवर्ती सूची के किसी एक विषय पर संघ व प्रांत दोनों कानून बनाते थे तो संघ सरकार का कानून मान्य था।
    2. प्रांतों से द्वैध शासन प्रणाली समाप्त कर दी गई और उन्हें प्रांतीय स्वायत्तता दे दी गई लेकिन यह द्वैध शासन प्रणाली केंद्र मेंं लागू कर दी गई अर्थात संघ सूची के विषय को आरक्षित व हस्तानांतरित दो भागों में बांंट दिया गया।
    3. प्रांतीय स्वायत्तता से संबंधित उपबंध 1 अप्रैल 1937 को लागू हुआ तथा इसके अंतर्गत भारत के 11 प्रांतों मेंं चुनाव हुए, जिसमें 5 प्रांतों में कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत प्राप्त किया औऱ बम्बई, असम व पश्चिमोत्ततर प्रांत में सबसे बड़े राजनीतिक दल के रूप में उभरी और गठबंधन की सरकार बनाई।
    4. 11 में से 6 प्रांतों में विधानमंडल को द्विसदनात्मक बनाया गया।
    5. दो नए प्रांतों बिहार एवं उड़ीसा का निर्माण इसी एक्ट द्वारा हुआ।
    6. सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का विस्तार हुआ मुसलमानों और सिखों के साथ-साथ हरिजनों और ईसाइयों को भी अलग से प्रतिनिधित्व दिया गया इसलिए "आरक्षण एवं संरक्षण का अधिनियम" भी कहा जाता है।
    7. भारत में महिलाओं को पहली बार मताधिकार दिया गया लेकिन केवल उच्च वर्ग की महिलाओं को ही यह अधिकार प्राप्त था।
    8. इस अधिनियम द्वारा भारत में एक संघीय न्यायालय की स्थापना की गई लेकिन यह भारत का अंतिम अपीलीय न्यायालय नहींं था क्योंकि इसके विरुद्ध अपील ब्रिटेन स्थित प्रिबी काउंसिल में की जा सकती थी।
    9. इसके द्वारा भारत में संघ लोक सेवा आयोग का गठन किया गया।
    10. इस अधिनियम द्वारा वर्मा को भारत से अलग कर दिया गया, अदन को ब्रिटिश उपनिवेश बना दिया गया तथा बरार को मध्य प्रांत का अंग घोषित कर दिया।
    इस एक्ट की आलोचना करते हुए पंडित नेहरू ने इसे दासता का एक नया चार्टर कहा ,पंडित नेहरू ने ही इसे ब्रेकरहित इंजन और इंजन रहित रेलगाड़ी की संज्ञा दी। इस एक्ट को निरंकुशता का भी एक्ट कहा जाता है।

                     1937 के प्रांतीय चुनाव
    कांग्रेस सहित अधिकांश राजनीतिक दलों ने भारत शासन अधिनियम 1935 का विरोध किया था।
    परन्तु भारत शासन अधिनियम 1935 के आधार पर फरवरी 1937 के प्रांतीय विधानसभाओं के चुनाव में कांग्रेस ने सम्मिलित होने का निर्णय लिया और अपने चुनावी घोषणा पत्र में सभी राजनीतिक बंदियों की रिहाई, कृषि व्यवस्था में परिवर्तन ,श्रमिकों को धरना प्रदर्शन हेतु संगठन बनाने का समर्थन आदि को पूरा करने का वचन दिया।
    1. इन चुनावों में कांग्रेस ने बड़ी जीत दर्ज की और पांच प्रान्तों संयुक्त प्रांत, बिहार, मध्य प्रान्त व बरार,उड़ीसा तथा मद्रास में कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत प्राप्त किया।
    2. कांग्रेस बम्बई,असम तथा उत्तर पश्चिम प्रान्त में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी।
    3. केवल पंजाब ,बंगाल और सिंध में कांग्रेस सबसे बड़ा दल बनने से वंचित रह गई।
    4. जुलाई 1937 में कांग्रेस ने अपनी 6 प्रांतों- संयुक्त प्रांत, मध्य प्रांत, मद्रास, बम्बई, बिहार व उड़ीसा में अपनी सरकार बनाई तथा मंत्रिमंडल का गठन किया। इसके अतिरिक्त बाद में कांग्रेस ने असम तथा उत्तर पश्चिम प्रान्त में भी सरकार बनाई।
    5. द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीयों की सहमति के बिना ब्रिटेन ने भारत को युद्ध में सम्मिलित कर लिया जिसका विरोध करते हुए अक्टूबर 1939 में कांग्रेस मंत्रिमंडलों ने इस्तीफा दे दिया इस प्रकार 28 माह तक कांग्रेस मन्त्रिमंडलों का कार्यकाल रहा।
    6. अपने कार्यकाल के दौरान कांग्रेस की सरकारों ने निम्नलिखित कार्य किये-
      कृषि में सुधार
      जमीदारी प्रथा को समाप्त करना
      नागरिक स्वतंत्रता
        क्रांतिकारियों की रिहाई 
      सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान जब्त भूमि को वापस लौटाया
      शराब का निषेध ,मंदिरों में प्रवेश सम्बन्धी कार्य, शिक्षा पर बल देना आदि सामाजिक कार्य।
    परंतु कांग्रेस की प्रांतीय सरकारें कोई बहुत बड़े बदलाव नहीं कर सकी क्योंकि इनके पास अधिकार तथा संसाधन सीमित थे।

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