• 17.8.20

    सविनय अवज्ञा आंदोलन,दांडी मार्च,,गांधी-इरविन समझौता,गोलमेज सम्मेलन

                         सविनय अवज्ञा आंदोलन
    कांग्रेस के 1929 के लाहौर अधिवेशन में गांधी जी को नागरिक अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने की अनुमति दी जाती हैं,इसके बाद गांधी जी द्वारा ब्रिटिश सरकार के समक्ष 11 सूत्रीय मांगे रखी गयी जिन पर सरकार द्वारा कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी गयी जिससे गांधीजी अब सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने का निर्णय लेते हैं और इसकी शुरुआत दांडी मार्च से होती है-
    दांडी मार्च-
    1. इस यात्रा की शुरुआत गांधीजी अपने 78 सहयोगियों के साथ 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से करते हैं।
    2. 6 अप्रैल 1930 को गांधीजी नवसारी जिले में खंभात की खाड़ी पर स्थित "दांडी" नामक स्थान पर पहुंचते हैं तथा एक मुट्ठी नमक उठाकर नमक कानून का उल्लंघन करते हैं।
    नोट- इस आंदोलन के दौरान नमक को एक केंद्रीय मुद्दा बनाया गया क्योंकि नमक एक ऐसी वस्तुएं जो समाज के प्रत्येक वर्ग से जुड़ी हुई है और सरकार द्वारा इस अति आवश्यक वस्तु पर भी अधिक कर लिया जाता था।
    3. यह एक पैदल मार्च था जिसमें गांधी जी द्वारा अपने सहयोगियों के साथ लगभग 390 किमी की दूरी 24 दिन में तय की गई थी।
    4. गांधी जी के दांडी मार्च समर्थन में-
      ०  सी. राजगोपालाचारी द्वारा त्रिचनापल्ली से वेदराण्यम तक की यात्रा की गयी।
      मालाबार क्षेत्र में के.कलप्पन द्वारा कालीकट से पयनूर तक यात्रा की।
    नोट- सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी के दांडी मार्च की तुलना नेपोलियन के एलवा से पेरिस की ओर किए जाने वाले अभियान तथा मुसोलिनी के रोम मार्च से की।
    नमक कानून के उल्लंघन के बाद सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ हो जाता है और गांधी जी यहां पर प्रतिज्ञा करते हैं कि जब तक देश आजाद हो नही हो जाएगा तब तक वह साबरमती आश्रम वापस नहीं लौटेंगे।
    सविनय अवज्ञा का तात्पर्य है- विनम्रता पूर्वक कानून को मानने से मना कर देना। धीरे धीरे यह आंदोलन पूरे भारत में फैल जाता है जिसकी प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
    1. यह गांधी जी के नेतृत्व में प्रारंभ किया गया दूसरा जन आंदोलन था।
    2. यह आंदोलन भी अहिंसा पर आधारित था।
    3. इस आंदोलन में अंग्रेजों के विरुद्ध निम्न कार्यों पर बल दिया गया-
      भूमिकर नहीं देना
      सरकारी संस्थाओं का बहिष्कार करना
      विदेशी बिक्री की दुकानों पर शांतिपूर्ण धरना देना
      सामूहिक हड़ताल एवं जुलूस निकालना 
     4. सविनय अवज्ञा आंदोलन में व्यापारियों और महिलाओं की भागीदारी अत्यधिक रही।

    धरसना सत्याग्रह- 
    1. गांधी जी दांडी के बाद धरसना नमक कारखाने पर छापा मारने के लिये चल पड़े परन्तु यहां पहुंचने से पहले ही 5 मई 1930 को गांधीजी को गिरफ्तार कर यरवदा जेल में डाल दिया गया।
    2. इसके बाद अब्बास तैयबजी और कस्तूरबा गांधी ने इसका नेतृत्व किया परंतु इन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया।
    3. अंत में सरोजिनी नायडू द्वारा के नेतृत्व में सत्याग्रही जैसे ही धरसना पहुंचे पुलिस ने भयंकर लाठीचार्ज कर दिया, जिसमें बड़ी संख्या में आंदोलनकारी घायल हो गए, इसकी निंदा विश्व की विश्वभर की मीडिया द्वारा की गयी।

    जैसे जैसे यह आंदोलन जोर पकड़ता गया वैसे वैसे अंग्रेजों द्वारा इसका दमन किया जाने लगा और बड़े नेताओं के साथ साथ एक वर्ष के भीतर ही लगभग 60000 लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया परंतु सरकार इस आंदोलन को रोकने में नाकाम रही।

    खुदाई खिदमतगार- 
    इस संगठन की स्थापना भारत के उत्तरी पश्चिमी सीमा प्रांत में खान अब्दुल गफ्फार खान द्वारा की गई।
    खान अब्दुल गफ्फार खान पेशावर निवासी तथा पख्तून जाति के थे,इन्हें सीमांत गांधी, फक-ए-अफगान तथा बादशाह खान भी कहा जाता था।
      सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत में इस संगठन के द्वारा एक अहिंसात्मक आंदोलन चलाया गया, जिसे लाल कुर्ती आंदोलन भी कहा जाता है क्योंकि इसके सदस्य लाल कुर्ता धारण करते थे।
    खुदाई खिदमतगारों ने राष्ट्रवाद के समर्थन तथा उपनिवेशवाद के विरुद्ध संघर्ष किया था।
    गढ़वाल रेजीमेंट के सिपाही वीरचंद्र सिंह ने लाल कुर्ती आंदोलनकारियों पर गोली चलाने से इंकार कर दिया था।

    नोट- खान अब्दुल गफ्फार खां पर एक पुस्तक एकनाथ ईश्वर द्वारा "नॉन वायलेंट सोल्जर ऑफ इस्लाम" भी लिखी गई।

    जियातरंग आंदोलन- 
    1. पूर्वोत्तर भारत  के मणिपुर,नागालैंड क्षेत्र में जनजातियों द्वारा "यदुनाथ" के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध यह आंदोलन चलाया गया।
    2. जब यह आंदोलन हिंसक हो गया तो अंग्रेजों ने यदुनाथ को गिरफ्तार कर 1931 में फांसी पर लटका दिया।
    3. इसके बाद इस आंदोलन का नेतृत्व नागा महिला रानी गाइडिल्यु द्वारा किया गया जो कि एक क्रांतिकारी महिला थी।
    4. गाइडिल्यु ने जनजातियों को संगठित कर अंग्रेजों से लगातार संघर्ष(गुरिल्ला युद्ध) किया परंतु बाद में इन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया तथा 1947 में आजादी के बाद ही यह जेल से रिहा हो सकी।

    नोट- रानी गाइडिल्यु ने मात्र 13 वर्ष की उम्र में पूर्वोत्तर में अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन का नेतृत्व किया था। इन्हें "रानी" की उपाधि जवाहरलाल नेहरू द्वारा दी गयी थी।

    सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान ही साइमन कमीशन की रिपोर्ट प्रकाशित होती है जिस पर विचार करने के लिए प्रथम गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया जाता है।

    प्रथम गोलमेज सम्मेलन-
    1. इसका आयोजन नवंबर 1930 से जनवरी 1931 के मध्य सेंट जेम्स पैलेस,लंदन में किया गया, इसमें साइमन कमीशन की रिपोर्ट में प्रस्तावित सुधारों पर विचार करना था।
    2. इस सम्मेलन की अध्यक्षता ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड द्वारा की गई थी।
    3. इस सम्मेलन में मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा, भारतीय राजाओं के प्रतिनिधियों,भीमराव अंबेडकर आदि ने तो भाग लिया परंतु कांग्रेस इस सम्मेलन में सम्मिलित नहीं हुई
    4. कांग्रेस के भाग ना लेने से प्रथम गोलमेज सम्मेलन बिना किसी निष्कर्ष के ही समाप्त हो गया।

    गांधी-इरविन समझौता(5 मार्च 1931)
     द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रयास किए गए इसके तहत महात्मा गांधी और तत्कालीन वायसराय लार्ड मिल के मध्य एक समझौता हुआ जिसे गांधी इरविन समझौता कहा जाता है-
    1. कांग्रेस द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में सम्मिलित होने के लिए तैयार हो गई
    2. गांधी जी को सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित करना पड़ा।
    3. ब्रिटिश सरकार, ऐसे युद्ध बंदी जिन पर हिंसा का आरोप नहीं था,उन्हें रिहा करने पर राजी हो गई।
    4. शराब की दुकानों तथा विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर शांतिपूर्ण धरना दिया जा सकता था।
    5. तटीय प्रदेशों में बिना नमक कर दिए नमक बनाने का अधिकार दे दिया गया।

    नोट- इस समझौते में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा से नहीं बचाया जा सका जिसके कारण जनता में तीव्र आक्रोश पैदा हो गया।
    सरोजिनी नायडू द्वारा इस दौरान गांधीजी और लॉर्ड इरविन को "दो महात्मा" कहकर संबोधित किया गया।
    गांधी इरविन समझौता में महत्वपूर्ण भूमिका तेज बहादुर सप्रू और एम.आर जयकर ने निभाई थी।

    कांग्रेस का करांची अधिवेशन
    1. मार्च 1931 में सरदार पटेल की अध्यक्षता में करांची अधिवेशन हुआ।
    2. इसमें गांधी-इरविन समझौते को मंजूरी प्रदान की गयी।
    3. इसी अधिवेशन में मौलिक अधिकार तथा राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रम(दोनों संकल्प जवाहर लाल नेहरु द्वारा प्रारूपित किये गए थे) के प्रस्ताव पारित किये गये।
    4. इसी अधिवेशन में गांधीजी ने कहा था कि "गांधी एकदिन मर जाएगा परन्तु वह गांधीवाद के रूप में सदैव जीवित रहेगा।"
    नोट- सुभाष चंद्र बोस ने कराची अधिवेशन को महात्मा गांधी की लोकप्रियता और सम्मान की पराकाष्ठा कहा है।

    द्वितीय गोलमेज सम्मेलन
    1. इस सम्मेलन का आयोजन 7 सितंबर 1931 से 1 दिसंबर 1931 के मध्य सेंट जेम्स पैलेस,लंदन में किया गया। इसकी अध्यक्षता भी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड द्वारा की गई।
    2. इस सम्मेलन में कांग्रेस का नेतृत्व महात्मा गांधी कर रहे थे जो कि कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि थे। इसके अतिरिक्त मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा, दलित वर्ग-भीमराव अंबेडकर, रियासतों के प्रतिनिधियों आदि ने भाग लिया।
    3. गांधीजी ने कहा कि कांग्रेस पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करती है परन्तु मुस्लिम लीग,राजे-रजवाडों तथा भीमराव अंबेडकर ने उनकी इस बात का विरोध किया।
    4. इसमें सभी पार्टियों द्वारा अपनी अलग-अलग मांगों को रखा गया जिससे यह सम्मेलन भी बिना किसी नतीजे के समाप्त हो गया।
    नोट- इसी सम्मेलन के दौरान जब गांधीजी ने ब्रिटेन के सम्राट जॉर्ज पंचम से भेंट की तो चर्चिल ने गांधीजी को अर्धनंगा फकीर कहा था।
    (महात्मा गांधी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए एम.एस. राजपूताना नामक जहाज से लंदन गए थे और वहां किंग्सले हाल में ठहरे थे।)
    द्वितीय गोलमेज सम्मेलन की असफलता के बाद गांधीजी खाली हाथ भारत लौट आए और उन्होंने पुनः सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने की घोषणा की। इसके बाद ही जनवरी 1932 में गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया।

    सविनय अवज्ञा आंदोलन का दूसरा चरण
    1. आंदोलन की प्रारंभ होते ही बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया तथा सरकार ने आंदोलनकारियों के विरुद्ध तीव्र दमन की नीति बनाई।
    2. सभी स्तरों पर कांग्रेस को प्रतिबंधित कर दिया गया।
    3. अंग्रेजों द्वारा किए गए दमन की प्रतिक्रिया में जनता में भी तीव्र गुस्सा और आक्रोश बढ़ गया तथा बहिष्कार, धरना प्रदर्शन आदि किया जाने लगा।
    4. धीरे-धीरे नेताओं की गिरफ्तारी एवं जनता के उत्पीड़न के बाद यह आंदोलन धीमा पड़ गया और अप्रैल 1934 में इस आंदोलन को वापस ले लिया गया

    तृतीय गोलमेज सम्मेलन
    1. यह सेंट जेम्स पैलेस, लंदन में नवंबर 1932 से दिसंबर 1932 के मध्य आयोजित किया गया।
    2. इसकी अध्यक्षता भी रैम्जे मैकडोनाल्ड द्वारा की गई।
    3. इस सम्मेलन में कांग्रेस ने भाग नहीं लिया था परन्तु रियासतों के प्रतिनिधियों,भीमराव अम्बेडकर आदि लोगों ने भाग लिया।
    4. यह सम्मेलन भी बिना किसी निष्कर्ष के समाप्त हो गया और 24 दिसंबर 1932 को तीनो गोलमेज सम्मेलन को लेकर ब्रिटिश सरकार द्वारा श्वेत पत्र जारी किया गया।

    नोट- तेज बहादुर सप्रू और भीमराव अंबेडकर ने तीनों गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया था






     


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