हरिपुरा अधिवेशन
1. कांग्रेस का 1938 में हरिपुरा(गुजरात) अधिवेशन हुआ।
2. इस अधिवेशन के अध्यक्ष सुभाष चंद्र बोस निर्विरोध चुने गए।
3. सुभाष चंद्र बोष ने जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय योजना समिति की स्थापना की।
नोट- सुभाष चंद्र बोस को 1938 में कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा शांतिनिकेतन में 'देशनायक' की उपाधि से सम्मानित किया गया।
सुभाष चंद्र बोस ने 1919 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की तथा 1920 में भारतीय सिविल सेवा(ICS) की परीक्षा उत्तीर्ण की परंतु उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने के लिए 1921में आईसीएस से इस्तीफा दे दिया।
त्रिपुरी अधिवेशन(1939)
1. कांग्रेस का 1939 का अधिवेशन त्रिपुरी(मध्यप्रदेश) में हुआ।
2. इस अधिवेशन के अध्यक्ष सुभाष चंद्र बोस चुने गए जिसमें उन्होंने गांधीजी समर्थित उम्मीदवार पट्टाभि सितारमैय्या को पराजित किया था।
3. पट्टाभि की हार पर गांधी जी ने कहा कि "पट्टाभि की हार मेरी अपनी हार है।"
4. कार्यकारिणी के गठन के प्रश्न को लेकर सुभाष चंद्र बोस और गांधीजी में मतभेद होने के कारण सुभाष चंद्र बोस ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।
5. सुभाष के इस्तीफे के बाद डॉ राजेंद्र प्रसाद कांग्रेस के अध्यक्ष बने।
फारवर्ड ब्लॉक
1. कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद सुभाष चन्द्र बोष ने 3 मई 1939 को "फारवर्ड ब्लॉक" की स्थापना की, यह पार्टी वामपंथी विचारधारा पर आधारित थी।
2. फारवर्ड ब्लाक ने देश की आजादी के लिए जन जागृति अभियान शुरू किया, जब सितंबर 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध प्रारंभ हुआ तो सुभाष चंद्र बोस का स्पष्ट मत था कि भारत के पास एक सुनहरा मौका है कि अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष तेज कर देश को आजाद करा लिया जाए परंतु गांधीजी उनके इस मत से सहमत नहीं थे।
3. सुभाष चंद्र बोस ने कहा यदि कांग्रेस अंग्रेजों के विरुद्ध अभियान नहीं करेगी तो फारवर्ड ब्लॉक अकेले ही अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ देगी।
4. फॉरवर्ड ब्लॉक के सदस्यों ने कलकत्ता स्थित "हॉलवेट स्तम्भ"( जो कि भारत की गुलामी का प्रतीक था) को नष्ट कर दिया।
5. इस प्रकार की घटनाओं के बाद अंग्रेज सरकार ने फॉरवर्ड ब्लॉक के मुख्य नेताओं सहित सुभाष चंद्र बोस को गिरफ्तार कर लिया।
सुभाष चंद्र बोस जेल में आमरण अनशन पर बैठ गए जिसके कारण उनके गिरते स्वास्थ्य को देखते हुए सरकार ने उन्हें रिहा कर घर में नजरबंद कर दिया। परंतु अंग्रेजों को चकमा देकर सुभाष चंद्र बोस गुप्त तरह से यहां से पेशावर पहुंच गए जहां इनकी मुलाकात कीर्ति किसान पार्टी के नेता 'भगतराम तलवार' से हुई इनके साथ सुभाष चंद्र बोस पेशावर से काबुल पहुंचे और यहां से मास्को होते हुए जर्मनी की राजधानी बर्लिन पहुंचते हैं।
नोट- सुभाष चंद्र बोस काबुल में उत्तमचंद्र मल्होत्रा नामक भारतीय व्यापारी के यहां रुके थे।
सुभाष चंद्र बोस द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन के शत्रु राष्ट्रों से मदद प्राप्त कर ब्रिटेन के विरुद्ध अभियान करना चाह रहे थे।
1. जर्मनी, जो कि ब्रिटेन का शत्रु देश था, से सहायता प्राप्त करने के लिए सुभाष चंद्र बोस मई 1942 में एडोल्फ हिटलर से मिलते हैं परंतु वह सीधे तौर पर सहायता देने से मना कर देता है और कहता है की यदि आप चाहें तो मित्र राष्ट्र जापान से मदद ले सकते हैं।
2. जर्मन विदेश मंत्रालय की सहायता से सुभाष चंद्र बोस ने "द फ्री इंडिया सेंटर" की स्थापना की जहां से वह आजादी के लिए ब्रिटिश विरोधी पर्चे छपवाते थ तथा भाषण देते थे।
3. इसके बाद नेताजी जर्मनी से मेडागास्कर होते हुए पूर्वी एशिया पहुंचते हैं और 1943 में सिंगापुर में इनकी मुलाकात एक वयोवृद्ध क्रांतिकारी रासबिहारी बोस से होती है जिन्होंने सुभाष को भारतीय स्वतंत्रता परिषद का अध्यक्ष नियुक्त किया।
4. अक्टूबर 1943 में सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में अस्थायी सरकार का गठन किया जिसके प्रधानमंत्री सुभाष चंद्र बोस बने इस सरकार को धुरी राष्ट्रों सहित लगभग 9 देशों ने मान्यता प्रदान की।
नोट:- सुभाष चंद्र बोस ने यूरोप में भारतीय युद्धबंदियों को भर्ती कर लगभग 10,000 सैनिकों की एक सेना बनाई इसे "द फ्री इंडियन लीजन" कहा जाता है। इसमें से ज्यादातर सैनिक उत्तरी अफ़्रीका के रोमेल से गिरफ्तार किए गए थे।
आज़ाद हिन्द फौज
1. आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना मूल रूप से कैप्टन मोहन सिंह ने की थी जो अंग्रेजी सेना में भारतीय अफसर थे।
2. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान के "मलय अभियान" में ब्रिटिश सेना पराजित हो गई जिससे ब्रिटिश सेना के भारतीय सैनिकों को मिलाकर सितंबर 1942 में कैप्टन मोहन सिंह ने आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया तथा इसके प्रथम सेनापति बने।
3. कैप्टन मोहन सिंह की गिरफ्तारी के बाद रास बिहारी बोस आजाद हिंद फौज का पुनर्गठन करते हैं और रास बिहारी बोस ने आज़ाद हिन्द फौज का नेतृत्व एवं कमांड जुलाई 1943 में सुभाष चंद्र बोस को सौंप दिया।
4. सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज में सुभाष बिग्रेड,नेहरू बिग्रेड,गांधी बिग्रेड तथा रानीझांसी बिग्रेड(महिला रेजिमेंट) का गठन किया।
5. इस दौरान सुभाष चंद्र बोस ने "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" तथा "दिल्ली चलो" के अपने प्रसिद्ध नारे दिए।
6. 21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर में सुभाष चंद्र बोस भारत की अस्थाई सरकार का गठन करते हैं जिसे आजाद हिंद सरकार भी कहा जाता है।
7. आजाद हिंद फौज ने जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश भारत पर आक्रमण किया तथा आजाद हिंद फौज ने अंडमान और निकोबार दीप समूह अंग्रेजों से जीत लिये जिनका नाम नेताजी ने "शहीद द्वीप" और "स्वराज द्वीप" रखा।
8. इसके साथ ही आजाद हिंद फौज और जापानी सेना ने पूर्वोत्तर भारत के इंफाल और कोहिमा पर आक्रमण किया परंतु विपरीत दशाओं एवं अंग्रेजी सेना की मजबूत स्थिति के कारण इन्हें पीछे हटना पड़ा।
9. जुलाई 1944 में सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिंद रेडियो पर गांधीजी को 'राष्ट्रपिता' कहकर कहकर संबोधित किया तो गांधीजी द्वारा सुभाष को 'नेताजी' कहकर पुकारा गया।
द्वितीय विश्व युद्ध जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया इसलिए आजाद हिंद फौज के सामने कोई रास्ता नहीं बचा और इसके सैनिकों को गिरफ्तार कर भारत लाया गया जिन पर प्रसिद्ध 'लाल किला मुकदमा' चलाया जाता है।
लाल किला मुकदमा(1945-46)
1. आजाद हिंद फौज के अधिकारियों पर लाल किला में राजद्रोह का मुकदमा चलाया जाता है।
2. इस मुकदमे में मुख्य अभियुक्त कर्नल प्रेम सहगल,मेजर शहनवाज और कर्नल गुरुदयाल सिंह को बनाया गया।
3. आजाद हिंद फौज के अधिकारियों के बचाव के लिए कांग्रेस ने मुकदमा लड़ने के लिए "आजाद हिंद फौज बचाव समिति" का गठन किया इस समिति का नेतृत्व भूलाभाई देसाई ने किया तथा इसमें उनके सहयोगी जवाहरलाल नेहरू, तेज बहादुर सप्रू, आसफ अली ,कैलाश नाथ काटजू आदि थे।
4. अंग्रेजों द्वारा इन तीनों अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सजा दी गई परंतु भारतीय वकीलों की तीव्र पैरवी तथा जनता में इनकी लोकप्रियता को देखते हुए अंग्रेज सरकार को इन अभियुक्तों की सजा को माफ करना पड़ा।
नोट:- लाल किला मुकदमा में कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग ने आपस में सहयोग किया था।
द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने रूस से सहायता प्राप्त करने का निश्चय किया परंतु दुर्भाग्य से 18 अगस्त 1945 को एक हवाई दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो जाती है परंतु इस दुर्घटना एवं नेताजी की मृत्यु के बारे में आज तक निश्चित रूप से पता नहीं चल पाया है।
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