• 7.8.20

    खिलाफत एवं असहयोग आंदोलन

                    खिलाफत आंदोलन
    रोलेट एक्ट एवं जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद भारतीय जनता में अंग्रेजों के प्रति तीव्र आक्रोश था ऐसे में भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध खिलाफत आंदोलन प्रारंभ हो जाता है जिसका संबंध प्रथम विश्व युद्ध से था-
    1. प्रथम विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों की विजय होती है तथा ब्रिटेन द्वारा तुर्की साम्राज्य का विघटन कर ,तुर्की के बादशाह (जिसे "खलीफा" कहा जाता था) को उसके पद से हटाने का निर्णय लिया जाता है।
    2. सम्पूर्ण मुस्लिम जगत तुर्की के सुल्तान को अपना खलीफा अर्थात सर्वोच्च आध्यात्मिक नेता मानते थे तथा खलीफा पवित्र मुस्लिम स्थलों का संरक्षक था।
    3. ब्रिटेन के इस निर्णय से भारतीय मुसलमान अत्यधिक क्रोधित होते हैं और अंग्रेजों के विरुद्ध खिलाफत आंदोलन शुरू कर देते हैं।
    4. खिलाफत आंदोलन का संचालन करने के लिए 1919 में खिलाफत कमेटी का गठन किया जाता है जिसके प्रमुख सदस्य मोहम्मद अली, शौकत अली ,अबुल कलाम आज़ाद ,हकीम अजमल खान और हसरत मोहानी इत्यादि थे।
    5. खिलाफत आंदोलन का मुख्य उद्देश्य तुर्की के खलीफा को उसके पद पर पुनः स्थापित कर उसकी प्रतिष्ठा एवं सम्मान की पुनर्स्थापना करना था।
    6. खिलाफत कमेटी ने 23 नबंवर 1919 को "अखिल भारतीय खिलाफत कांफ्रेंस" का आयोजन किया, जिसका अध्यक्ष गांधी जी को बनाया गया जिसमें यह निर्णय लिया गया कि यदि खिलाफत की मांगों को स्वीकार नहीं किया गया अंग्रेजों के साथ का असहयोग किया जाएगा।
    7. परंतु सेवर्स की सन्धि द्वारा मई 1920 में तुर्की साम्राज्य का विभाजन कर दिया गया।
    8. जून 1920 में खिलाफत कमेटी का इलाहाबाद अधिवेशन हुआ जिसमें सरकारी विद्यालयों,न्यायालयों का बहिष्कार का कार्य प्रारंभ किया गया।

    परिणाम:-
    अली बंधुओं ने मुस्लिमों से सेना की नौकरी छोड़ने तथा आर्थिक स्तर पर सहयोग न करने के लिए कहा। परंतु अंग्रेजी सरकार ने अली बंधुओं को गिरफ्तार कर लिया जिससे 1922 तक आते-आते आंदोलन धीमा पड़ गया। 1924 में तुर्की में मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृत्व में खलीफा के पद को समाप्त करके लोकतांत्रिक सरकार का गठन किया जाता है जिससे खिलाफत आंदोलन भी समाप्त हो जाता है। 

    नोट:- खिलाफत आंदोलन के दौरान हिंदू-मुस्लिम एकता अपने चरम स्तर पर देखने को मिलती है।
       खिलाफत आंदोलन से ही असहयोग आंदोलन की रूपरेखा तैयार हो जाती है इसलिए खिलाफत एवं सहयोग को "जुड़वां आंदोलन" भी कहा जाता है।

                           असहयोग आंदोलन
    असहयोग आंदोलन गांधी जी द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर चलाया गया प्रथम आंदोलन था,जिसमें समाज के लगभग प्रत्येक वर्ग ने हिस्सा लेकर अंग्रेजों के प्रति असहयोग किया था। इस आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन को जन आंदोलन बनाकर उसके भौगोलिक एवं सामाजिक आधार को बढ़ाया।
    उदय के कारण-
    1. प्रथम विश्व युद्ध के बाद देश में बढ़ती आर्थिक समस्याएं
    2. 1919 का रोलेट एक्ट जैसा काला कानून तथा जलियांवाला बाग हत्याकांड
    3. 1919 के भारत परिषद अधिनियम से असंतुष्टि।
    4. अंग्रेजों का शोषणकारी चरित्र।
    5. खिलाफत आंदोलन के कारण देश में बढ़ती हिंदू मुस्लिम एकता एवं अंग्रेजों के प्रति रोष।

    इस समय तक गांधीजी  चंपारण अहमदाबाद और खेड़ा जैसे  आंदोलन कर चुके थे और अंग्रेजों के शोषित चरित्र से अच्छी तरह परिचित हो जाते हैं।
    असहयोग आंदोलन की औपचारिक शुरुआत 1 अगस्त 1920 को हुई जब गांधीजी द्वारा खिलाफत आंदोलन के मंच से यह घोषणा की गई कि यदि अंग्रेजों ने खिलाफत की मांगों का समर्थन नहीं किया तो असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया जाएगा।
    1 अगस्त 1920 को ही बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु हो जाती है, उनकी स्मृति में आंदोलन का संचालन करने के लिए 'तिलक फंड' का गठन किया जाता है जिसमें 6 माह के भीतर ही 1 करोड़ रुपए जमा हो जाते हैं। 
    सितम्बर 1920 में असहयोग आंदोलन को स्वीकृति प्रदान करने के लिए कांग्रेस का विशेष अधिवेशन कलकत्ता(अध्यक्षता- लाला लाजपत राय) में बुलाया जाता है। इसमें गांधी जी द्वारा प्रस्तुत असहयोग प्रस्ताव का विरोध लाला लाजपत राय, एनी बेसेंट तथा सी.आर.दास द्वारा किया गया परंतु बहुमत से यह प्रस्ताव पास हो गया लेकिन इस पर अंतिम निर्णय नागपुर अधिवेशन में लिया गया।

    नागपुर अधिवेशन- 
    1.कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन दिसंबर 1920 में नागपुर में आयोजित हुआ जिसकी अध्यक्षता वीरराघवाचारी द्वारा की गई। 
    2. इस अधिवेशन में सी.आर.दास द्वारा(जो पहले विरोध कर रहे थे) ही असहयोग प्रस्ताव पेश किया जाता है जिसे बहुमत से पास कर दिया गया। 
    3. इसके साथ ही इस अधिवेशन में भाषाई आधार पर कांग्रेस की प्रांतीय समितियों का पुनर्गठन तथा  यथासंभव हिंदी के प्रयोग करने का निर्णय लिया गया।
    4. इस अधिवेशन में ही कांग्रेस ने यह कहा कि अब संवैधानिक उपायों के स्थान पर शांतिपूर्ण एवं न्याय प्रिय तरीके से संवैधानिक उल्लंघन के द्वारा स्वराज के लक्ष्य को प्राप्त किया जाएगा।

    नोट:- नागपुर अधिवेशन के बाद एनी बेसेंट ,मोहम्मद अली जिन्ना,जी.एस.खरपड़े, बिपिन चंद्र पाल, आदि ने कांग्रेस छोड़ दी क्योंकि वह संवैधानिक तरीकों से आंदोलन चलाना चाहते थे।


    असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम
    गांधी जी ने असहयोग आंदोलन का लक्ष्य 1 वर्ष के भीतर स्वराज्य की प्राप्ति रखा तथा इस आंदोलन के दौरान दो प्रकार के कार्यक्रम अपनाएं गए।
    1. रचनात्मक/सकारात्मक कार्यक्रम-
         ० हिंदू मुस्लिम एकता पर बल देना।
          छुआछूत का विरोध करना।
          स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार-प्रसार एवं कताई बुनाई(चरखा) पर बल देना
         ० शिक्षा के प्रसार के लिए राष्ट्रीय विद्यालयों की स्थापना।
          पंचायतों की स्थापना।
         
    2. नकारात्मक कार्यक्रम-
          सरकारी स्कूल,कॉलेज,अदालतों आदि का बहिष्कार।
         ० चुनावों एवं विधानमंडलों बहिष्कार करना।
          वकालत का त्याग एवंअदालतों का बहिष्कार।
          सरकारी उपाधियों, सम्मानों,प्रशस्ति पत्रों का त्याग करना।
          भूराजस्व/लगान देने से मना करना।
          विदेशी सामानों का बहिष्कार।

    आंदोलन का विस्तार-
    असहयोग आंदोलन के दौरान गांधीजी द्वारा "कैसर- ए- हिंद" की उपाधि,बोअर पदक एवं जुलु युद्ध पदक को त्याग दिया गया तथा जमनालाल बजाज ने अपनी "राय बहादुर' की उपाधि अंग्रेजों को लौटा दी।
    इसी आंदोलन के दौरान मोतीलाल नेहरू ,जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल ,विट्ठल भाई पटेल ,सी.आर.दास ,राजेंद्र प्रसाद जैसे नेताओं ने वकालत को त्याग दिया।
    पश्चिमी एवं उत्तरी भारत, बिहार, बंगाल आदि क्षेत्रों में असहयोग आंदोलन तीव्र रूप से फैल गया तथा यहां अधिक सफलता मिली और यहां पर विद्यार्थियों ने स्कूल एवं कॉलेजों का बहिष्कार किया तथा कई राष्ट्रीय शिक्षण संस्थान स्थापित किए गए।
    नोट:- शिक्षण संस्थाओं का सर्वाधिक बहिष्कार बंगाल में किया गया था।
    बहिष्कार आंदोलन में सर्वाधिक सफल विदेशी कपड़ों का बहिष्कार था इस दौरान विदेशी कपड़ों की सामूहिक रूप से कई स्थानों पर होली  जलाई गई।
    नोट:- विदेशी कपड़ों की होली जलाने का विरोध रविंद्र नाथ टैगोर ने किया था।
    इस आंदोलन के दौरान शराब एवं ताड़ी की दुकानों पर धरना दिया गया जिससे अंग्रेजों को राजस्व की हानि हुई।
    इस आंदोलन में हिंदू मुस्लिम एकता सबसे प्रबल रूप से दिखाई देती है। जहां एक तरफ आर्य समाजी नेता स्वामी श्रद्धानंद को जामा मस्जिद से भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया वहीं दूसरी तरफ स्वर्ण मंदिर(अमृतसर) की चाबियां सैफुद्दीन किचलू को सौंप दी गई।
    महिलाओं ,किसानों ,मजदूरों ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया तथा जगह जगह पर हड़तालें में की गई।
    17 नवंबर 1921 में प्रिंस ऑफ़ वेल्स के भारत आगमन पर विरोध स्वरूप सामूहिक हड़ताल का आयोजन किया गया।

    अंग्रेजों ने इस आंदोलन को दबाने के लिए क्रूर दमन नीति का सहारा लिया तथा महत्वपूर्ण नेताओं जैसे मोतीलाल नेहरू,अलीबंधुओ,सी.आर.दास,लाला लाजपत राय आदि को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया।

    जी.एम सेन गुप्ता- यह बंगाल के प्रसिद्ध राष्ट्रवादी नेता थे जिन्होंने असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया था।

    चौरी चौरा कांड(5 फरवरी 1922)
    उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा नामक स्थान पर लोग शराब की बिक्री एवं खाद्यान्न की मूल्य वृद्धि का विरोध तथा धरना प्रदर्शन कर रहे थे जिन पर पुलिस वालों ने क्रूरतापूर्ण कार्रवाई की जिससे क्रुद्ध भीड़ ने पुलिस थाने पर हमला कर उसमें आग लगा दी और पुलिस वालों को जलाकर मार डाला। 
    इस प्रकार असहयोग आंदोलन के हिंसक रूप को देखकर 12 फरवरी 1922 को बारदोली कांग्रेस समिति की बैठक में गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया गया तथा केवल रचनात्मक कार्यों को जारी रखने का निर्देश दिया।
    नोट:- मोतीलाल नेहरू ,जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस आदि नेताओं ने गांधीजी के असहयोग आंदोलन को वापस लेने के निर्णय का विरोध किया था।
    10 मार्च 1922 को गांधीजी को विभिन्न आरोपों में गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया।

    योगदान-
    असहयोग आंदोलन से पहले गांधी जी ने 1 वर्ष के भीतर स्वराज प्राप्ति का लक्ष्य रखा था, उसे प्राप्त नहीं किया जा सका। परंतु इस आंदोलन में राष्ट्रीय आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया-
    1. इसने राष्ट्रीय आंदोलन के भौगोलिक आधार में वृद्धि की जिससे संपूर्ण भारत में एक बड़ा आंदोलन देखा जा सका।
    2. इस आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन की सामाजिक आधार को भी बढ़ाया तथा इसमें समाज के सभी वर्गों किसान, मजदूर ,महिला विद्यार्थियों आदि सभी ने हिस्सा लिया।
    3. इस आंदोलन के दौरान हिंदू मुस्लिम एकता अपने चरम स्तर पर दिखाई देती है।
    4. देश में राष्ट्रीयता की भावना एवं राजनीतिक जागरूकता में वृद्धि करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    5. आगे होने वाले आंदोलनों के लिए इसने एक बड़ा आधार प्रदान किया।
    6. इस आंदोलन ने अंग्रेजों के राजनीतिक और आर्थिक आधार को कमजोर कर दिया।
    7. गांधीजी के सत्य,अहिंसा और सत्याग्रह के साधनों पर देश की जनता का विश्वास बढ़ा।



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