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    7.8.20

    स्वराज पार्टी

                            स्वराज पार्टी
    पृष्ठभूमि
    1. असहयोग आंदोलन के बाद मार्च 1922 में गांधीजी को गिरफ्तार कर 6 वर्ष का कारावास दे दिया गया।
    2. इसके बाद कांग्रेस में आगे के आंदोलन को जारी रखने के विषय पर दो गुट बन जाते हैं-
    प्रथम गुट परिवर्तनवादियों का था जिसमें सी.आर.दास, मोतीलाल नेहरू,अजमल खान जैसे राष्ट्रवादी सम्मिलित थे जो इस बात का समर्थन कर रहे थे कि अब विधान परिषदों के बहिष्कार को छोड़कर चुनाव में भागीदारी करके आंदोलन को विधान परिषदों में ले जाना चाहिए तथा वहां सरकारी काम एवं प्रस्तावों में बाधा उत्पन्न कर असहयोग करना चाहिए।
    दूसरा गुट इस परिवर्तन का विरोधी था जिसमें सरदार बल्लभ भाई पटेल, राजेंद्र प्रसाद ,सी.राजगोपालाचारी जैसे नेता सम्मिलित थे जो इस बात का समर्थन कर रहे थे कि चुनाव में भागीदारी नहीं करनी चाहिए तथा गांधीजी के रचनात्मक कार्यों को ही आगे बढ़ाया जाना चाहिए।
    3. कांग्रेस का गया अधिवेशन(दिसंबर 1922)- इस अधिवेशन की अध्यक्षता सी.आर.दास द्वारा की गई। इस अधिवेशन में परिवर्तनवादियों(सी.आर.दास गुट) द्वारा विधान परिषद में प्रवेश के लिए चुनाव में भागीदारी का प्रस्ताव रखा परन्तु परिवर्तन विरोधी गुट( बल्लभ भाई पटेल गुट) की सहमति न होने के कारण यह प्रस्ताव पास ना हो सका।
    4. यह प्रस्ताव पास ना हो पाने की वजह से सी.आर. दास और मोतीलाल नेहरू कांग्रेस के क्रमशः अध्यक्ष और महामंत्री पद से इस्तीफा दे देते हैं।

    इस प्रकार दोनों गुटों में टकराव की स्थिति बनती है परंतु कोई नहीं चाहता था कि काग्रेस में सूरत जैसा विभाजन हो इसलिए 1923 में गांधीजी के मध्यस्थता से दोनों गुटों को अपने-अपने कार्य करने की अनुमति दे दी जाती है इस प्रकार स्वराज पार्टी को चुनाव में भागीदारी करने का रास्ता साफ हो जाता है।
    स्वराज पार्टी की स्थापना-
    1. स्वराज पार्टी की स्थापना 1 जनवरी 1923 को इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) में की गई।
    2. इसके अध्यक्ष सी.आर. दास तथा सचिव मोतीलाल नेहरू बने।
    3. इसकी अन्य प्रमुख सदस्यों में विट्ठल भाई पटेल, हकीम अजमल खान,श्रीनिवास,जयकर,मदन मोहन मालवीय जैसे नेता थे।
    4. स्वराजवादियों  का घोषणा पत्र/लक्ष्य- स्वराजवादियों का मुख्य उद्देश्य विधान परिषदों में प्रवेश कर-
          स्वशासन की मांग को विधान परिषदों में उठाना
          सरकारी संचालन एवं प्रस्तावों  में बाधा उत्पन्न करना
          अंग्रेजी सरकार की शोषणकारी चरित्र को उजागर करना।
          असहयोग को विधान परिषदों के अंदर ले जाना।
          यह सिद्ध करना की अंग्रेजी कानून भारतीयों के शोषण के लिए बने हैं।

    नोट:- 1923 में दिल्ली में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता अबुल कलाम आजाद ने की इस अधिवेशन में स्वराज पार्टी के कार्यों को मान्यता प्रदान कर दी गई।

    स्वराजवादियों की सफलताएं-
    1. 1923 में हुए चुनाव में केंद्रीय विधानसभा की 101 सीटों में से 42 सीटों पर स्वराज पार्टी ने विजय प्राप्त की। इसके साथ ही बंगाल एवं मध्य प्रांत में स्वराज पार्टी को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ।
    2. विट्ठल भाई पटेल 1925 में केंद्रीय विधानसभा के अध्यक्ष चुने जाते हैं जो इस पद पर पहुंचने वाले प्रथम भारतीय थे।
    3. स्वराजवादियों ने बजट जैसे मुद्दों पर सरकार का विरोध किया।
    4. 1928 के सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक को स्वराजवादियों के विरोध के कारण पारित नहीं किया जा सका।
    5. इन्होंने असहयोग आंदोलन के बाद उत्पन्न राजनीतिक शून्यता को भरने का कार्य किया।
    6. स्वराज वादियों के प्रभाव से 1919 के अधिनियम की 5 वर्षीय समीक्षा के लिए मुडीमैन समिति का गठन किया गया।
    7. सेना के भारतीयकरण के लिए गठित की गई 'स्क्रीन कमेटी' के  एक सदस्य मोतीलाल नेहरू भी बनाये गये।

    गांधी-दास पैक्ट
    1. बीमारी के आधार पर गांधीजी को 1924 में जेल से रिहा कर दिया गया और इसी दौरान नवंबर 1924 में गांधी एवं चितरंजन दास के बीच एक समझौता होता है जिसे गांधी द एक्ट के नाम से जाना जाता है।
    2. इस पैक्ट के अनुसार स्वराज पार्टी को कांग्रेस का अभिन्न अंग मान लिया जाता है  जिसकी पुष्टि 1924 के कांग्रेस के बेलगांव अधिवेशन(अध्यक्ष- गांधीजी) में कर दी जाती है।
    नोट:- यह एकमात्र कांग्रेस का अधिवेशन था जिसकी अध्यक्षता गांधीजी द्वारा की गई थी।

    1925 में चितरंजन दास की मृत्यु के बाद स्वराज पार्टी की गतिविधियां भी शिथिल पड़ने लगी। इसके अतिरिक्त मोतीलाल नेहरू से मतभेद के कारण लाला लाजपत राय व मदन मोहन मालवीय द्वारा स्वराज पार्टी छोड़ देने से यह कमजोर पड़ गई।

    स्वराज पार्टी की कमजोरियां/सीमाएं
    1. स्वराज पार्टी के गठन का मुख्य उद्देश्य था कि विधान परिषद में सरकार के साथ असहयोग करेंगे परंतु उन्होंने इस नीति को त्याग कर धीरे धीरे सहयोग का रास्ता अपना लिया।
    2. गठबंधन की राजनीति के अंतर्गत इनको सहयोग की प्राप्ति नहीं हो सकी।
    3. स्वराज पार्टी के नेताओं को विधान मंडलों से विशेषाधिकार एवं शक्तियां मिली थी परंतु वह उनका पूर्ण रूप से उपयोग नहीं कर सके।
    4. सांप्रदायिक तत्वों को रोकने में स्वराज पार्टी का असफल रहना।
    5. बंगाल में स्वराजवादियों ने काश्तकारों एवं किसानों का समर्थन ना करके जमीदारों का पक्ष लिया।

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