सी.आर.फार्मूला(10 जुलाई 1944)
एक तरफ कांग्रेस के नेतृत्व में 1942 से भारत छोड़ो आंदोलन चलाया जा रहा था वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम लीग द्वारा पृथक पाकिस्तान की मांग की जा रही थी। ऐसी स्थिति में ब्रिटिश सरकार द्वारा किये जाने वाले संवैधानिक सुधारों पर कोई आम राय नहीं बन पा रही थी इसी संवैधानिक गतिरोध को दूर करने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर भी प्रयास किए गए जिसमें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चक्रवर्ती राजगोपालाचारी द्वारा कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के बीच गतिरोध को दूर करने के लिए एक फार्मूला प्रस्तुत किया जिसे राजगोपालाचारी फॉर्मूला या राजाजी फार्मूला के नाम से जाना जाता है इसमें निम्नलिखित प्रावधान किए गए थे-
1. प्रांतों में अस्थाई सरकार की स्थापना हो इस कार्य में मुस्लिम लीग कांग्रेस का समर्थन करें।
2. भारतीय स्वतंत्रता की मांग का समर्थन मुस्लिम लीग द्वारा किया जाए।
3. युद्ध के उपरांत एक आयोग द्वारा उत्तर पश्चिम तथा उत्तर पूर्व भारत, जहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, में जनमत संग्रह कराया जाए और इसके आधार पर यह निर्धारित किया जाए कि वह भारत में रहना चाहते हैं या पृथक होना।
4. अगर देश का विभाजन होता है तो प्रतिरक्षा,वाणिज्य, संचार तथा आवागमन जैसे महत्वपूर्ण विषयों के संचालन के लिए दोनों के मध्य एक संयुक्त समझौता किया जाएगा।
5. यह सभी शर्तें तभी लागू होंगी जब ब्रिटेन भारत को पूर्ण रुप से स्वतंत्र कर देगा।
गांधीजी ने सी.आर. फार्मूला का समर्थन किया था तथा इसके आधार पर उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना से बातचीत प्रारंभ की परंतु मुस्लिम लीग ने सी.आर.फार्मूला को अस्वीकृत कर दिया क्योंकि जिन्ना मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में जनमत संग्रह के लिए केवल मुस्लिम व्यक्तियों के लिये ही वोटिंग अधिकार के पक्षधर थे तथा जिन्ना के अनुसार विभाजन की स्थिति में प्रतिरक्षा,वाणिज्य, संचार आदि के लिए संयुक्त समझौता या कॉमन सेंटर की कोई आवश्यकता नही है।
इसके अतिरिक्त सिख समुदाय एवं हिंदू महासभा ने सी.आर.फार्मूला का विरोध किया।
नोट:- राजगोपालाचारी फॉर्मूला अप्रत्यक्ष रूप से विभाजन तथा पाकिस्तान की मांग का ही समर्थन कर रहा था इस प्रकार कांग्रेस के मंच में प्रथम बार राजगोपालाचारी फॉर्मूला में ही विभाजन को स्वीकार किया गया था।
राजगोपालाचारी स्वतंत्र भारत के प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल थे तथा यह दक्षिण भारत के प्रसिद्ध गांधीवादी एवं कांग्रेसी नेता थे। कांग्रेस से मतभेद के चलते इन्होंने 1959 में "स्वतंत्र पार्टी" का गठन किया था यह राजाजी के नाम से प्रसिद्ध थे इन्हें 1954 में "भारत रत्न" से भी सम्मानित किया गया था।
1952 से 1954 तक राजाजी मद्रास प्रान्त के मुख्यमंत्री रहे थे यह प्रसिद्ध लेखक भी थे जिन्हें 'चक्रवर्ती थिरुमगम’ नामक पुस्तक के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था। इसके अतिरिक्त वह प्रसिद्ध हिंदी समर्थक थे और इन्होंने दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए अत्यधिक कार्य किये।
वेवेल योजना(जून 1945)
मई 1945 तक द्वितीय विश्व युद्ध अंत की ओर पहुंच चुका था किंतु अभी भी भारत पर जापान के आक्रमण का खतरा बना हुआ था इसलिए ब्रिटिश सरकार पर यह दबाव था कि वह भारतीयों का समर्थन प्राप्त करें।इसके अतिरिक्त ब्रिटेन में चुनाव भी होने वाले थे ऐसे में चर्चिल सरकार यह दिखाना चाहती थी कि वह भारत में संवैधानिक सुधारों के लिए प्रतिबद्ध है।
इन परिस्थितियों में लॉर्ड वेवेल,जो कि 1943 में वायसराय बनकर भारत आया था,को यह जिम्मेदारी सौंपी गई की वह भारतीय नेताओं से विचार विमर्श करके एक समझौता करें अतः जून 1945 में वेवेल योजना प्रस्तुत की गई जिसके प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे-
1. वायसराय तथा सेनापति(कमांडर इन चीफ) को छोड़कर वायसराय की कार्यकारिणी परिषद के सभी सदस्य भारतीय होंगे। यह भारतीय सदस्य सभी राजनीतिक दलों के होंगे।
2. परिषद में हिंदू-मुस्लिमों की संख्या बराबर रखी जाएगी साथ ही अन्य समुदायों को भी प्रतिनिधित्व दिया जाएगा।
3. विदेश विभाग का प्रभारी भारतीय को ही बनाया जाएगा।
4. नवगठित परिषद, भारत शासन अधिनियम 1935 के ढांचे तहत "अंतरिम सरकार" के रूप में कार्य करेगी, जिसमें अकारण वीटो (विशेषाधिकार) का प्रयोग नहीं किया जाएगा। यद्यपि वायसराय की वीटो शक्ति को समाप्त नहीं किया गया।
5. युद्ध के उपरांत संविधान निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ की जाएगी।
वेवेल योजना पर भारतीय नेताओं से चर्चा करने के लिए 25 जून 1945 को वायसराय लॉर्ड वेवेल द्वारा शिमला में एक सम्मेलन बुलाया गया चूंकि इस दौरान अधिकतर भारतीय नेता जेल में थे इसलिए पहले भारतीय नेताओं को जेल से रिहा किया गया ताकि वह शिमला में होने वाले सर्वदलीय सम्मेलन में भाग ले सकें परंतु शिमला सम्मेलन भी निम्नलिखित कारणों से सफल ना हो सका-
1. मुस्लिम लीग चाहती थी कि वायसराय की कार्यकारिणी परिषद में मुस्लिमों की नियुक्ति केवल मुस्लिम लीग ही करे,जिसे कांग्रेस ने अस्वीकृत कर दिया।
2. इसके साथ ही जिन्ना ने मुस्लिम लीग की लिये वीटो शक्ति की मांग की ताकि अगर कोई निर्णय मुस्लिमों के पक्ष में ना हो तो वह इसे रोक सके।
इन सब बातों को लेकर कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग में सहमति नहीं बन पाने के कारण शिमला सम्मेलन विफल हो गया और जुलाई 1945 में वेवेल प्रस्ताव वापस ले लिया गया।
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